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‘मैं हूं मोदी का परिवार’ विपक्ष के लिए पड़ सकता है भारी

  • अवधेश कुमार
    ‘मैं हूं मोदी का परिवार’ टैगलाइन 2024 के चुनाव का एक प्रमुख नारा बन गई है। यह वैसे ही है जैसे 2019 लोकसभा चुनाव में में ‘मैं हूं चौकीदार’ एक बड़ा नारा बना और सर्वे बताते हैं कि उसका असर लोकसभा चुनाव पर हुआ। आम धारणा यही है कि ‘मैं हूं मोदी का परिवार’ 2024 लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के मतदान करने की प्रक्रिया निर्धारित करने का एक कारक बन सकता है। 3 मार्च को बिहार की राजधानी पटना में गठबंधन की रैली में लालू प्रसाद यादव ने कल्पना नहीं की होगी कि वह जो कुछ बोल रहे हैं उसकी ऐसी प्रतिक्रिया हो सकती है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा परिवारवाद पर हमला करने का अपने तरीके से जवाब ही दिया था। उसमें यह पूछने की क्या आवश्यकता थी कि मोदी बताएं कि उनका कोई परिवार क्यों नहीं है, संतान क्यों नहीं है? वह यहां तक चले गए कि कह दिया कि नरेंद्र मोदी हिंदू भी नहीं है। माता-पिता की मृत्यु पर उनके बच्चे अपने बाल दाढ़ी सब साफ करवाते हैं जबकि उन्होंने नहीं किया। ऐसे हमले पर प्रति हमला बिलकुल स्वाभाविक था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे हमले का आक्रामक और लोगों के दिलों को स्पर्श करने वाली भाषा शैली में प्रत्युत्तर देने में प्रवीण है। इसलिए उन्होंने कहा कि आज इंडी गठबंधन के लोग, जो परिवारवाद, भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं, वह मुझसे मेरे परिवार के बारे में पूछते हैं, 140 करोड़ भारतीय ही मेरा परिवार है। इस तरह भाजपा के पास विरोधियों विशेषकर आईएनडीआईए गठबंधन के विरुद्ध एक बड़ा मुद्दा हो गया है।
    2019 आम चुनाव के पहले से राहुल गांधी राफेल विमान को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसी तरह निशाने पर ले रहे थे। उन्होंने ‘चौकीदार चोर है’ का नारा लगाया था । ‘चौकीदार चोर है’ के समानांतर प्रधानमंत्री ने ‘मैं भी चौकीदार’ का नारा दिया और देखते-देखते भाजपा नेताओं कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने सोशल मीडिया पर ‘मैं भी चौकीदार’ में अपना परिचय लिख दिया। राहुल गांधी और पूरे विपक्ष के लिए यह उल्टा पड़ गया। प्रश्न है कि क्या ‘मैं हूं मोदी का परिवार’ नारा भी विपक्ष के लिए फिर उल्टा पड़ जाएगा?
    यह ऐसा भावनात्मक विषय है जो लोगों के दिलों पर सीधा असर डालता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब कहते हैं कि हमने देश के लिए अपना जीवन लगाया है और अंतिम सांस तक देश हित में लगा दूंगा तो एक बड़ा समूह इसे स्वीकार करता है।
    अगर चुनाव को कुछ समय के लिए परे रख दें तब भी यह विचार करना चाहिए कि क्या किसी व्यक्ति पर इस तरह की टिप्पणी उचित है? हमारे देश में अविवाहित रहकर यानी परिवार न बसा कर या परिवार का त्याग कर देश, समाज, धर्म की सेवा या आत्म साधना में जीवन लगाने वालों की बड़ी संख्या है। राजनीति में सभी विचारधाराओं में ऐसे लोग रहे हैं जिनका सम्मान समाज में हमेशा रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार इस मामले में इसलिए शीर्ष पर हैं क्योंकि वहां जीवनदानी प्रचारकों की सबसे ज्यादा संख्या है और भाजपा सहित सभी संगठनों में ऐसे लोग हैं। समाजवादियों में भी ऐसे लोग रहे हैं।
    समाजवादी नेताओं ने भी अपने जीवन काल में वंशवाद और परिवारवाद को बड़ा मुद्दा बनाया, पर प्रत्युत्तर में इस तरह उनके परिवार न होने पर किसी ने प्रश्न नहीं उठाया। उठाया भी नहीं जाना चाहिए। नरेंद्र मोदी आज प्रधानमंत्री हैं तो लगता है कि उनके पास सारे सुख साधन हैं और इसलिए हमला करने पर लोग प्रभावित हो जाएंगे। उन्होंने जब परिवार से परे होकर संघ का प्रचारक बनकर अपनी विचारधारा के अनुरूप राष्ट्र सेवा का व्रत लिया होगा तो इसकी कल्पना नहीं रही होगी की राजनीति में किसी समय में शीर्ष पर जा सकते हैं।
    वास्तव में आज पार्टियों में एक ही परिवार से निकले हुए लोगों के हाथों नेतृत्व और निर्णय की मुख्य कमान रहने राजनीति का सबसे बड़ा रोग बना हुआ है। इसके कारण योग्य, ईमानदार, सक्षम और समर्पित लोगों का उनकी क्षमता के अनुसार राजनीति में अवसर मिलना बाधित है। व्यवस्था में ऐसे लोग भी परिवारवादी नेतृत्व के समक्ष नतमस्तक होकर हां में हां मिलाने और अपने को उनके साथ एडजस्ट करने को विवश हैं। ज्यादातर परिवारवादी नेतृत्व ने सत्ता का हर स्तर पर दुरुपयोग किया है। देख लीजिए इनमें ज्यादातर के परिवार या वे स्वयं भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं। लालू प्रसाद यादव को तो चारा घोटाले के तीन मामलों में सजा भी मिल चुकी है।
    किसी राजनीतिक परिवार से अगली पीढ़ी का राजनीति में सक्रिय होना और परिवार के हाथों ही नेतृत्व सिमटे रहने में मूलभूत अंतर है। परिवारवादी नेतृत्व वालों पर हमला होगा या उनकी आलोचना होगी तो निश्चित रूप से वे तिलमिलाएंगे। इसका उत्तर यह नहीं हो सकता जो लालू प्रसाद यादव जी ने दिया है। यह राजनीतिक विरोधियों की आलोचना आलोचना के संदर्भ में स्थापित मर्यादाओं का दुर्भाग्यपूर्ण अतिक्रमण है।
    सच यही है कि परिवारवादी नेतृत्व या परिवार के कारण योग्य अक्षम लोगों का राजनीति में प्रभावी होने जैसी दुष्प्रवृत्ति का कोई सकारात्मक उत्तर दिया ही नहीं जा सकता है। जिस मंच पर लालू जी ने प्रधानमंत्री पर हमला किया उसी से उन्होंने अपनी बेटी रोहिणी आचार्य को राजनीति में लॉन्च भी किया। लालू जी का नरेंद्र मोदी पर हमला दुर्भाग्यपूर्ण व दुखद है। लोकसभा चुनाव में यह उल्टा पड़ जाए तो उसमें किसी को आश्चर्यजनक नहीं होना चाहिए। भाजपा के पास आज भी अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों की लंबी फौज है जो कहीं न कहीं अपने इर्द-गिर्द भाजपा सहित अलग-अलग संगठनों में जीवनदानी परिवारविहीन लोगों को काम करते देखते हैं और उनके प्रति सम्मान रखते हैं।
    आज किसी भी पार्टी की यह हैसियत नहीं की इतनी बड़ी संख्या के प्रति हमले का समान रूप से सामना कर सके। जिस तरह 2019 में जगह-जगह भाजपा के नेता , समर्थक और कार्यकर्ता मैं हूं चौकीदार का नारा लगाते थे और आम लोग भी उनके साथ आ जाते थे ठीक वही दृश्य इस चुनाव में आने वाले समय में दिखाई पड़ेगा। कार्यकर्ता लोगों के बीच जाएंगे और कहेंगे कि देखिए मोदी जी ने तो देश के लिए अपना जीवन लगा दिया, अपने लिए या अपने रिश्तेदारों के लिए कुछ किया नहीं और लालू प्रसाद यादव तथा आईएनडीआईए गठबंधन के नेता उनके उनको बिना परिवार का बताकर हमला कर रहे हैं तो लोगों की प्रतिक्रिया कैसी होगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है।

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