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दुिनया के ओर-छोर तक कैसे पहुंची बुद्ध कथा

  • डॉ. (श्रीमती) बिनय
    भारत की कथाओं ने दूर-दूर तक की यात्राएं की हैं, वैसे ही जैसे भारत के व्यापारियों ने सात समुन्दर पार पहुंचकर बहुमूल्य वस्तुओं का व्यापार किया। किंवदन्ती है कि भारत की काली मिर्च और लौंग के आयात में रोम दिवालिया हो गया था। हाथीदांत, मसाले, नील और कपास का भरचक व्यापार था भारत का योरोप के साथ। व्यापार और व्यापारियों की आवाजाही के साथ भारत की कथा-संपदा ने भी योरोप की यात्राएं की। पंचतन्त्र की कथाएं यूनान के ईसप की कथाओं के साथ प्रसिद्ध हुई तो अरब की ‘सहस्त्र रजनी रचित’ की कथाएं रूपांतरित होकर देश-देशांतर की सीमाएं लांघकर फलती-फूलती रहीं। कथा-यात्रा की इसी श्रृंखला में एक और महत्वपूर्ण कड़ी है बौद्ध-कथाओं का देशाटन।
    अश्वघोष के ‘बुद्धचरितम’ तथा बौद्ध ‘जातक कथाओं’ का यह देशाटन अत्यंत रोचक-
    और रोमांचक है। लगभग ग्यारहवीं शती का एक यूनानी (ग्रीक) धर्मग्रन्थ है-‘वारलाम और योआसफ’ नाम से। यह ‘वारलाम और योआसफ’की कथा वास्तव में प्रथम शताब्दी के संस्कृत कवि अश्वघोष के ‘बुद्धचरितम्ा्’का रूपान्तरण है।
    वारलाम और योआसफ की कथा एवं बुद्ध कथा की तुलना सर्वप्रथम पुर्तगाल के लेखक ‘दिओगो द क्योटो’ने अपनी पुस्तक ‘इण्डियन एण्टीक्विटी’में की थी। इस कथा का मूलरूप बुद्ध-कथा में है, इसका सर्वप्रथम संकेत फ्रेंच विद्धान ‘लेबुले’ने दिया था। अब यह एक स्थापित सत्य है कि ‘वारलाम और योआसफ’कवि अश्वघोष रचित ‘बुद्ध-चरितम्ा्’एवं अन्य बुद्ध-कथा-स्त्रोतों का ईसाईकरण है।
    बौद्ध-धर्म के साथ-साथ बुद्ध की कथा ने भी भारत के बाहर अपनी लोकप्रियता बनाई-बढ़ाई। एक कथा के रूप में यह कहानी इतनी लोकप्रिय हुई कि समय के साथ-साथ जनता यह भी भूल गई कि मूलतः यह कथा बुद्ध से जुड़ी है। दूसरी शती में मेसोपोटामिया में जन्मे संत ‘मनी’के साथ एक नए धर्म का प्रसार हुआ जिसे मनीकियन संप्रदाय के रूप में जाना गया। इस धर्म का फैलाव उन स्थानों पर हुआ जहां पहले से ही बौद्ध धर्म अपनी जड़ जमाए हुए था। फलतः संत मनी का धर्म बौद्ध धर्म के साथ ऐसा घुल मिल गया कि मनी के नाम तक को बुद्ध की संज्ञा प्राप्त हुई।
    बौद्ध धर्म का यही प्रभाव बाद में अरब के मुस्लिम समाज तक फैल गया। अनेक अंतर्राष्ट्रीय विद्वानों ने मुसलमान धर्म पर बौद्ध धर्म के प्रभाव को लेकर अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए हैं, जिनमें जर्मनी के विद्वान इग्नाज गोल्डजीहर ने अपने शोधपूर्ण मोनोग्राफ ‘वोर्लेत्सुंगेन उबेर्डेन इस्लाम’में अनेक महत्वपूर्ण समान धर्मी तथ्य व्यक्त किए हैं। सूफीमत और बौद्धमत के मध्य भी अनेक समानताएं देखी जाती हैं।
    लगभग 767-815 ईसवी में पहलवी भाषा से अरबी भाषा में अनुदित तीन पुस्तकों का जिक्र मिलता है जो बुद्ध-कथा से संबंधित है। ये तीन पुस्तकें हैं- ‘किताब अल बुद्धः’, ‘किताब बालाहवार व बुद्धासफ’तथा ‘किताब बुद्धासफमुफराद’। उक्त तीनों ही पुस्तकों में बुद्ध-कथा का ही रूपांतरण है, यद्यपि इनमें बुद्ध-कथा के माध्यम से मुस्लिम सिद्धांतों को उभारने का प्रयत्न किया गया है।
    बुद्ध-कथा के अरबी संस्करण के पश्चात्य कथा जोर्जिया क्षेत्र के माध्यम से योरोप की ओर बढ़ी। जोर्जिया में ही इस कथा ने ईसाई रूप धारण कर लिया था। बुद्ध कथा का प्रथम ईसाईकरण जोर्जियन भाषा की रचना ‘दी विस्डम ऑफ बालाहवार’ में हुआ। जोर्जियन भाषा में ईसाई रूप लेने के उपरांत ऑर्थोडॉक्स ईसाईयों के देश ग्रीस में ‘वारलाम और योअासफ’ नाम से इस बुद्ध कथा ने पूर्णतया ईसाई धर्मग्रंथ का रूप धारण किया। ग्रीक वारलाम और योआसफ के बाद दसियों अन्य योरोपीय भाषाओं में इस कथा का विस्तार हुआ।
    बुद्ध-कथा ने जब ईसाई धर्मग्रंथ का स्वरूप लिया तब मूल कथा में अनेक परिवर्तन हुए। अनेक नए धार्मिक विचार उसमें जुड़े। अनेकानेक नए दृष्टांत आदि के साथ कथा ने एक नवीन स्वरूप के साथ नवीन कथा का भ्रम उत्पन्न किया। इन सब नवीनताओं के बावजूद बुद्ध-कथा का मूल मर्म अछूता ही बना रहा। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि यूनान के पवित्र पर्वत ‘आथोस’के एक प्राचीन मठ (मोनास्टेरी) में योआसफ नाम के ‘कल्पित संत’ या यों कहें कि बुद्ध के रूपांतरित कथा के परिवर्तित नाम, संत योआसफ की अस्थियां तक सुरक्षित हैं। वे लोग योआसफ नाम के अपने इस संत का ‘फीस्ट-डे’ भी प्रतिवर्ष 9 सितम्बर को मनाते हैं जो ऑर्थोडॉक्स ईसाई कैलेंडर के अनुसार 27 अगस्त कहलाता है। मोनास्टेरी में रहने वाले वे ईसाई संत और उस देश के धर्मपरायणों की धार्मिक भावना यह मानने को तैयार नहीं कि बोधिसत्व से बुधासफ और बुधासफ से युधासफ होता हुआ बुद्ध का ही नाम सदियों की अवधि तथा देश-देशांतर की दूरी पार करता हुआ योआसफ बन गया है।
    कोई सोच भी नहीं सकता कि इस कथा के देशाटन का ही परिणाम है कि ‘शेक्सपीयर के मर्चेण्ट ऑफ वेनिस’ में ‘थ्री कास्केट’ का प्रसंग जुड़ा है जो बौद्ध धर्म के त्रिपिटक का प्रतीक है। लंदन विश्वविद्यालय के पौर्वात्य एवं अफ्रीकी शिक्षण-संस्थान के प्राध्यापक डॉ. डेविड मार्शल लैंग ने अपनी पुस्तक ‘द विस्डम ऑफ बालाहवार–ए क्रिश्चियन लिजेण्ड ऑफ़ द बुद्ध’ के प्रारंभिक कथन में ‘बुद्ध कथा’ को मध्ययुगीन अति लोकप्रिय कथा के रूप में स्वीकार करते हुए ‘शेक्सपीयर’ के ‘मर्चेण्ट ऑफ वेनिस’ में इस कथा के समाहित होने को विशेष रूप से रेखांकित किया है। बुद्धकथा की यह योरोप यात्रा सदियों पूर्व के भारत की वैश्विक प्रवृत्ति का, भारतीय भाषा साहित्य के व्यापक परिदृश्य का, भारतीय संस्कृति के विश्वव्यापी प्रभाव का गौरवपूर्ण उदाहरण है।

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