Home » कर्नाटक में ऐतिहासिक हो रही राजनीतिक सत्ता की लड़ाई

कर्नाटक में ऐतिहासिक हो रही राजनीतिक सत्ता की लड़ाई

  • आलोक मेहता
    कर्नाटक अपने ऐतिहासिक स्मारकों और संस्कृतियों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। कर्नाटक के अधिकांश स्मारकों के महान ऐतिहासिक संबंध हैं। टीपू सुल्तान पैलेस, मैसूर पैलेस मैसूर के राजा के बारे में एक महान इतिहास को दर्शाता है, जिन्होंने कभी इस क्षेत्र को हासिल करने से अंग्रेजों को हराया था। कर्नाटक राज्य पर नंद साम्राज्य, मौर्य साम्राज्य, सातवाहन, कदंब, पश्चिमी गंगा, बादामी चालुक्य, राष्ट्रकूट साम्राज्य, पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य और चोल का शासन रहा है, हम्पी यहां यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में से एक है। राज्य की अखंडता में कई पुराने मंदिरों, पुराने स्मारकों का बहुत बड़ा योगदान है।मैसूर पैलेस, चामुंडेश्वरी मंदिर, गुफा मंदिर और कई अन्य प्राचीन स्मारक जैसे अधिकांश स्थान कर्नाटक की कला और संस्कृति परंपरा को परिभाषित करते हैं। बैंगलोर को सिलिकॉन सिटी के रूप में भी जाना जाता है, जो दुनिया की कई शीर्ष कंपनियों को आकर्षित करती है। लेकिन इस बार लोकतांत्रिक ढंग से सत्ता के लिए हो रही चुनावी लड़ाई से एक नया अध्याय लिखता दिखाई दे रहा है| संभवतः अब तक देश में हुए विधान सभाओं के चुनावों की तुलना में धन बल का सर्वाधिक असर दिख रहा है | कांग्रेस अपने अस्तित्व और भविष्य के लिए अधिकाधिक संसाधन और नेताओं को दांव पर लगा रही है | वहीं भारतीय जनता पार्टी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों वाले कद्दावर नेताओं को बाहर भेजकर अपने विकास और जन कल्याण कार्यों तथा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के धुंआधार प्रचार अभियान पर विजय पताका फहराना छह रही है | आज तक किसी प्रधान मंत्री ने कर्नाटक में न तो इतनी यात्राएं की और न ही इस तरह का चुनावी अभियान चलाया | पुराने महारथियों में येदुरप्पा , देवेगौड़ा , सीतारमैया के लिए यह अंतिम शक्ति परीक्षा है |
    यदि धन बल की बात करें तो चुनाव की आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद से अब तक राज्य में 305 करोड़ रुपए की नकदी और सामान जब्त किया गया है। 2018 के चुनावों के दौरान, चुनावों में कुल जब्ती 83 करोड़ रुपए थी। इस साल के चुनावों से पहले बरामदगी में नकद (110 करोड़), शराब (74 करोड़), सोना और चांदी (81 करोड़), मुफ्त उपहार (22 करोड़) और ड्रग्स/नशीले पदार्थ (18 करोड़) शामिल हैं। चुनाव की घोषणा से पहले करीब 58 करोड़ रुपये की जब्ती की गई थी। पिछले अनुभव को याद करें तो भारतीय जनता पार्टी के लिए कर्नाटक में सत्ता तक पहुंचने का सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा है। 2008 में बीजेपी पहली बार सरकार में आई थी। 2008 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के इतिहास रचा। बीजेपी ने 110 सीटों पर कब्जा कर बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बनाई। कर्नाटक के साथ दक्षिण भारत में पहली बार बीजेपी पहली बार सरकार बनाने में सफल हुई।वैसे इसके पहले बीजेपी राज्य में सत्ता का स्वाद गठबंधन में रहकर चख चुकी थी। जब 2006 के विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, बहुमत की कमी के चलते वो सरकार नहीं बना पाई थी। बाद में गठबंधन करके कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सत्ता संभाली। हालांकि कुछ समय बाद कांग्रेस का साथ छोड़कर जेडीएस ने बीजेपी से गठबंधन किया और कुमारस्वामी के नेतृत्व में बीजेपी-जेडीएस की सरकार बनी। 2008 के बाद बीजेपी को सत्ता के लिए तरसना पड़ गया था। 2013 में महज 40 सीटें बीजेपी को मिलीं। हालांकि 2018 के चुनावों में बीजेपी 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। बावजूद इसके बीजेपी सरकार नहीं बना पाई थी। एचडी कुमारस्वामी 2018 के बाद कांग्रेस के सहयोग से मुख्यमंत्री बने। हालांकि 2019 में हुए राजनीतिक उलटफेर ने बीजेपी को सरकार में आने का मौका दे दिया। फिलहाल राज्य की सत्ता चला रही बीजेपी इस बार अकेले चुनावी मैदान में है। बीजेपी के सामने इस चुनाव में राज्य के सत्ता परिवर्तन के ट्रेंड तोड़ने के साथ सरकार में वापसी की चुनौती है। बीजेपी की तरह कांग्रेस भी कर्नाटक में अपने दम पर चुनावी मैदान में उतरी है। कांग्रेस को राज्य में इस बार सत्ता हासिल करने की उम्मीद है। हालांकि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के लिए कर्नाटक एक मजबूत गढ़ रहा है। 1952 से 1983 तक मैसूर (मौजूदा कर्नाटक) में कांग्रेस की सरकार रही। 1983 के चुनाव में कांग्रेस पहली बार सत्ता से बाहर हुई है। उस समय जनता दल ने कांग्रेस को हराया था। हालांकि कांग्रेस के लिए सत्ता का ये सूखा ज्यादा दिन नहीं रहा। साल 1989 में जब चुनाव हुए तो कांग्रेस ने फिर जबरदस्त जीत के साथ सत्ता में वापसी की।
    दूसरी ओर, जेडीएस ने 2018 में भाजपा के साथ सीधे मुकाबले वाली सभी सीटों में से 25 प्रतिशत पर जीत हासिल की. जेडीएस के लिए, जिन सीटों पर उसका भाजपा के साथ सीधा मुकाबला था भाजपा के 16 प्रतिशत की तुलना में इसकी टैली 25 प्रतिशत रही | भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधे मुकाबले वाली सीटों का जो नतीजा रहता है, उसी तरह कांग्रेस के साथ सीधे मुकाबले वाली सीटों में जेडीएस भी दो-तिहाई (65-72 प्रतिशत) सीटें जीतती है | कांग्रेस के लिए यह संख्या एक तिहाई (27-35 फीसदी) से कम है.हालांकि, सीधे मुकाबले के दौरान दोनों पार्टियों का स्ट्राइक रेट एक जैसा नहीं रहा है |2008 और 2013 में जेडीएस के खिलाफ कांग्रेस का स्ट्राइक रेट 60 प्रतिशत था जो कि 2004 और 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ जेडीएस के स्ट्राइक रेट के बराबर था | 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने पुराने मैसूर क्षेत्र में पैठ बनाने का नतीजा क्या हुआ. दरअसल भाजपा ने यहां मूलत: जेडीएस के क्षेत्रों में अपने पैर जमाए | इससे कांग्रेस उतनी प्रभावित नहीं हुई जितना असर जेडीएस पर पड़ा | अब यदि जे डी एस कांग्रेस को नुकसान पहुंचा पाई , तो भाजपा का रास्ता अधिक सुगम हो सकेगा | मतदाता सारे समीकरणों को बदलने की अद्भुत क्षमता दिखा सकते हैं |

Swadesh Bhopal group of newspapers has its editions from Bhopal, Raipur, Bilaspur, Jabalpur and Sagar in madhya pradesh (India). Swadesh.in is news portal and web TV.

@2023 – All Right Reserved. Designed and Developed by Sortd