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स्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता की जरूरत

  • प्रो. (डॉ.) रवीन्द्रनाथ तिवारी
    विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा लोगों को शिक्षित करने, स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में जागरूकता फैलाने, नई दवाओं, अनुसंधान और यह सुनिश्चित करने के लिए कि स्वास्थ्य सुविधाएं हर जगह, हर व्यक्ति के लिए सुलभ हों, प्रत्येक वर्ष 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देने और गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने के लिए सुधार करने हेतु जागरूक करना है। विश्व स्वास्थ्य दिवस संगठन की 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में विश्व स्वास्थ्य दिवस 2023 की थीम “सभी के लिए स्वास्थ्य” है। संगठन का मानना है कि “यह आज और कल की स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिए कार्रवाई को प्रेरित करने का एक अवसर भी है।”
    प्राचीन भारतीय परंपरा में स्वास्थ्य को सर्वाधिक महत्व दिया गया है। यम-नियम, आसन, प्राणायाम आदि इसी परंपरा का हिस्सा हैं। वेद ज्ञान की आध्यात्मिक परंपरा का एक हिस्सा आयुर्वेद भी है जिसमें उपचार की विभिन्न विधियों का वर्णन है। जिस प्रकार वेदों में जीवन के लगभग सारे आयाम जैसे आचार, व्यवहार, आध्यात्मिक जीवन, स्वास्थ्य, ज्योतिष आदि आते हैं, उनमें से एक आधुनिक चिकित्सा का आयाम भी है। अर्थात् ये कहना उपयुक्त होगा कि आधुनिक चिकित्सा की जड़ें वेदों में निहित है। ऋग्वेद में ब्रह्मांड विज्ञान का ज्ञान है जो आयुर्वेद और योग दोनों के आधार पर स्थित है। चिकित्सा की प्राचीन भारतीय प्रणाली में औषधि के साथ-साथ मंत्रों का भी प्रयोग किया गया था। यह मानना था कि रोगी को देखने के साथ-साथ उसके प्राकृतिक वातावरण को भी देखना चाहिए। चरक संहिता में 500 तथा सुश्रुत संहिता में 700 से अधिक औषधियों का उल्लेख है। स्टील के उपकरणों का प्रयोग घावों को सिलने, तरल पदार्थ निकालने, गुर्दे की पथरी निकालने और प्लास्टिक सर्जरी करने के लिए किया जाता था।
    वर्तमान में भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में अत्यधिक कार्य किए जाने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य की आधारभूत सुविधाओं के अतिरिक्त जागरूकता, स्वास्थ्य में कम व्यय जैसे मुद्दे भी हैं। वर्तमान में भारत में मेडिकल कॉलेजों की संख्या आवश्यकता से कम है। सरकार ने मेडिकल कॉलेजों में सीटों की संख्या लगभग 1 लाख तक करने का लक्ष्य रखा है। आधारभूत संरचना तथा प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं में अत्यधिक कार्य किए जाने की आवश्यकता है। वर्तमान स्वास्थ्य खर्च जीडीपी का 2.1 प्रतिशत है, जिसमें वृद्धि किए जाने की आवश्यकता है। केंद्रीय बजट 2023-24 में फार्मास्यूटिकल्स उद्योग द्वारा अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करने तथा निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों द्वारा चिकित्सा अनुसंधान को बढ़ावा देने की बात कही गयी है। बजट में स्वास्थ्य के लिए कुल आवंटन सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.1 प्रतिशत है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के लिए बजट में कुल आवंटन 89,155 करोड़ रुपये रहा, जो पिछले वर्ष के 86,200 करोड़ रुपये से लगभग 0.34 प्रतिशत अधिक है। आयुष्मान भारत राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (एबीडीएम) को 341.02 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। यह आवंटन वित्तवर्ष 23 के आवंटन से 70.51 प्रतिशत अधिक है, जो 200 करोड़ रुपये था। इस बजट में देश को वर्ष 2047 तक एनीमिया मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है।

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