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औरंगजेब द्वारा कठोर यातनाएँ, जुबान काटी, चीरा लगाकर नमक भरा

  • रमेश शर्मा
    पिछले दो हजार वर्षों में संसार का स्वरूप बदल गया है । बदलाव केवल शासन करने के तरीके या राजनैतिक सीमाओं में ही नहीं हुआ अपितु परंपरा, संस्कृति, जीवनशैली और सामाजिक स्वरूप में भी हुआ है । किंतु भारत इसमें अपवाद है । असंख्य आघात सहने के बाद भी यदि भारतीय संस्कृति और परंपराएँ दिख रहीं हैं तो इसके पीछे ऐसे बलिदानी हैं जिन्होंने कठोरतम प्रताड़ना सहकर भी अपने स्वत्व की रक्षा की है । झुकना या रंग बदलना स्वीकार नहीं किया । ऐसे ही बलिदानी हैं सम्भाजी महाराज जिन्हें धर्म बदलने के लिये 38 दिनों तक कठोरतम यातनाएँ दीं गईं जिव्हा काटी गई, शरीर में चीरे लगाकर नमक भरा गया पर वे अपने स्वत्व पर अडिग रहे ।
    सम्भाजी महाराज छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र थे। उन्हें धोखे से बंदी बनाकर इतनी क्रूरतम प्रताड़ना दी गयी जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती । प्रताड़ना का यह दौर कोई 38 दिन चला । प्रतिदिन नयी क्रूरता और यातना। उल्टा लटकाया गया, पिटाई की गई, आँखे निकाली गईं, शरीर के विभिन्न अंगों में चीरा लगा कर नमक भरा गया । जिव्हा काटी गई । उनपर दबाब था कि वे मतान्तरण स्वीकार कर लें । सनातन धर्म त्याग कर इस्लाम अपना लें । लेकिन वे न डिगे । जब यातना देने वाले थक गये तब और उनके एक एक अंग काटकर प्राण लिये और कचरे की तरह नदी में फेका गया ।
    ऐसे अमर बलिदानी वीर छत्रपति सम्भाजी राजे महाराज का जन्म 14 मई 1657 को पुरन्दर के किले में हुआ था माता यसुबाई भी युद्ध कला में निपुण थीं पर बालक संभा जी को माँ का संरक्षण न मिल पाया । जब वे केवल दो वर्ष के थे तभी माता का निधन हो गया था । उनका पालन पोषण दादी के संरक्षण में हुआ । वे कुल बत्तीस वर्ष इस संसार में रहे । और उनके शासन की अवधि कुल नौ वर्ष रही । उनका पूरा जीवन संघर्ष में बीता । माता के निधन के साथ जो संघर्ष आरंभ हुआ वह जीवन की अंतिम श्वाँस तक रहा । जब वे केवल नौ वर्ष के थे तब से स्वयं अपने जीवन की सुरक्षा करना और युद्ध से रिश्ता जुड़ गया था ।
    छत्रपति शिवाजी महाराज का निधन 3 अप्रैल 1680 को हुआ था । तब कुछ समय तक शिवाजीे महाराज के अनुज राजाराम को हिन्दु पदपादशाही पर सत्तारूढ़ कर दिया था । और अंत में 16 जनवरी 1681 को सम्भाजी महाराज का विधिवत्‌ राज्याभिषेक हुआ । इसी वर्ष औरंगजेब का एक विद्रोही पुत्र अकबर ने दक्षिण भारत भाग आया था । और संभाजी महाराज से शरण की याचना की । छात्रपति श्री सम्भाजी महाराज जितने वीर और पराक्रमी थे उतने भावुक भी उन्होंने शहजादे अकबर को अपने यहाँ शरण और सुरक्षा प्रदान की । इससे औरंगजेब और बौखलाया । यह वही शहजादा अकबर था जो संभाजी महाराज के बलिदान के बाद अपने परिवार के साथ राजस्थान चला गया था ।और वहाँ वीर दुर्गादास राठौर के संरक्षण में रहा । सम्भाजी महाराज ने चारों ओर मोर्चा लिया था । एक ओर मुग़लों से तो दूसरी ओर पोर्तगीज एवं अंग्रेज़ों से भी । इसके साथ अन्य आंतरिक शत्रु थे सो अलग । इतने संघर्ष के बीच भी उन्होंने मराठा साम्राज्य को विस्तार दिया ।
    1689 पुर्तगालियों को पराजित करने के बाद वे से संगमेश्वर में वे व्यवस्था बनाने लगे । संभाजी महाराज ने तीन दिशाओं में एक साथ युद्ध किये । मुगलों से, निजाम से और पुर्तगालियों से भी । पर वे कोई युद्ध न हारे । और यदि हारे तो एक विश्वासघात के कारण हारे । यह 31 जनवरी 1689 का दिन था । वे संगमेश्वर थे और अपना राजकीय कार्य पूरा करके रायगढ़ जाने वाले थे । जब वे संगमेश्वर में थे तभी उन्हें मार्ग में फंसाने की योजना बन गई थी । जब उन्होंने अपनी यात्राकी तिथि निर्धारित तभी कुछ ग्रामवासी उनसे आकर मिले । ये लोग गणोजी शिर्के के साथ आये थे । गणोजी को वे अपना विश्वासपात्र मानते थे । वह किसी रिश्ते में उनकी पत्नि का भाई लगता था । गणोजी ने बताया कि क्षेत्रवासी उनका सम्मान करना चाहते हैं । यह आग्रह कुछ इस प्रकार किया गया कि सम्भा जी टाल न सके ।

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