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ज्ञानवापीः मंदिर के अवशेषों पर ही बनी थी मस्जिद

  • प्रमोद भार्गव
    भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की सर्वे रिपोर्ट ने प्रमाणित कर दिया कि वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में स्थित एक हजार साल से भी ज्यादा पुराने विशाल हिदू मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाई गई है। यहां काशी विश्वनाथ का बड़ा हिंदू मंदिर था। इसके अवशेषों के प्रतीक चिन्ह सर्वेक्षण में मिले हैं। इसी संरचना के ऊपर मस्जिद बना दी गई थी। मस्जिद के निर्माण में भी मंदिर के पत्थरों का प्रयोग किया गया। एक स्थान पर महामुक्ति मंडप लिखा होने के साथ हनुमान और गणेश की खंडित मूर्तियां मिली हैं। ये खुलासे एएसआई की रिपोर्ट से हुए हैं। तथ्यों के आधार पर प्राचीन विश्वनाथ मंदिर के ध्वस्त अवशेषों पर मस्जिद की दीवारों के अंदरूनी और बाहरी तौर पर विद्यमान बताए गए हैं।
    मंदिर की दीवारों और दरवाजों को चिनकर मस्जिद का वर्तमान ढांचा खड़ा किया गया है। पुराने विश्वनाथ मंदिर के अलावा समूचे परिसर में अनेक देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर थे, जिनमें से कुछ आज भी मौजूद हैं। इन साक्ष्यों के संदर्भ में साक्ष्य और इतिहास पुस्तकें भी प्रस्तुत की गई थीं। दरअसल भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के अंतर्गत अधिनियम की धारा 57 (13) के तहत सामान्य इतिहास की पुस्तकों में भी वर्णित ऐतिहासिक तथ्य को साक्ष्य के तौर पर मान्यता प्राप्त है। इस संदर्भ में 1937 में प्रकाशित इतिहासकार डॉ. अनंत सदाशिव अल्तेकर की पुस्तक हिस्ट्री ऑफ बनारस‘ अदालत में प्रस्तुत भी की गई थी। प
    ुस्तकों के अनुसार वर्तमान में जो ज्योतिर्लिंग स्थापित है, उसकी प्राण-प्रतिष्ठा 1780 में महारानी अहिल्याबाई ने कराई थी। बीती सदी के अंत तक जो भी लोग विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करने गए हैं, उन्हें स्पष्ट रूप से दिखाई देता था कि एक टूटे प्राचीन मंदिर के ढांचे पर कथित मस्जिद बनाई जा रही है। मंदिर का चबूतरा और आलीशान सफेद पत्थर के स्तंभ स्पष्ट दिखाई देते थे। इसी परिसर में एक कुआ है, जिसमें बताते हैं, वह शिवलिंग हैं, जो तोड़े गए मंदिर में स्थापित था। इस आशय के यहां बोर्ड भी लगे हैं। कूप के ऊपर लोहे का जाल डाल दिया है। इस मामले में भाजपा प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम-1991 की वैद्यता को चुनौती भी दी गई थी। 1991 में केंद्र सरकार द्वारा सभी धर्मस्थलों से जुड़े विवादों में यथास्थिति बनाए रखने की दृष्टि से यह कानून बनाया था। हालांकि अयोध्या के राम जन्मस्थल-बाबरी मस्जिद विवाद को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया था।
    इस कानून के मुताबिक 1947 से पहले जो धर्मस्थल जिस स्थिति में थे, उसी स्थिति में रहेंगे, यह बाध्यकारी षर्त जुड़ी है। इसी बूते वाराणसी की अंजुमन इंतजामिया का दावा था कि ज्ञानवापी मस्जिद को इसी कानून के तहत सुरक्षा मिलनी चाहिए। मसलन अंजुमन भली भांति जानता था कि मंदिर की बुनियाद पर मस्जिद टिकी है। अब सर्वे रिपोर्ट ने इस सच्चाई का खुलासा भी कर दिया है। मंदिरों को तोड़े जाने और धर्मांतरण का सिलसिला इस्लामिक शासकों के भारत में आने के साथ ही शुरू हो गया था। इनमें वाराणसी का काशी विश्वनाथ मंदिर तो है ही, इसके अलावा मथुरा का कृष्ण जन्मभूमि मंदिर भी है। इस मंदिर को तोड़कर षाही ईदगाह मस्जिद बना दी गई है। दिल्ली की कुतुबमीनार भी इसी संकट से गुजरी है।
    कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस परिसर में 27 हिंदू व जैन मंदिर तोड़कर इसे वर्तमान रूप दिया था। हालांकि कुतुबमीनार का निर्माण दिल्ली के तोमर राजाओं ने कराया था, ऐसे साक्ष्य डाॅ हरिहर निवास द्विवेदी ने अपनी पुस्तक ‘दिल्ली के तोमर‘ में दिए हैं।‘ वाराणसी पर मुस्लिमों के आक्रमण और मंदिरों को तोड़े जाने की ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में बात करें तो जिन इतिहासकारों ने इतिहास घटना और साक्ष्यों के आधार पर लिखा, उन सब ग्रंथों में मुस्लिम शासकों द्वारा वाराण्सी में विश्वनाथ मंदिर को तोड़े जाने के साथ अन्य एक हजार मंदिरों को तोड़ने का उल्लेख भी मिलता है।
    1193 में थानेश्वर के युद्ध में पृथ्वीराज के मारे जाने तथा 1194 में काषी तथा कन्नौज के गाहड़वाल के राजा जयचंद को हराने के बाद मोहम्मद गोरी ने अपने सेनापति कुतुबुद्ीन ऐबक को बनारस पर हमला करने के लिए भेज दिया। इस युद्ध में हिंदुओं की हार हुई और किले पर ऐबक ने कब्जा कर लिया। इसके बाद लूट और यहां के एक हजार मंदिर तोड़ने की शुरूआत हुई। लूट की संपत्ति को 1400 ऊंटों पर लादकर ऐबक ने गोरी के पास भेज दी। इससे खुष होकर गोरी ने कुतुबुद्दीन को दिल्ली का सुल्तान बना दिया और खुद अपने देश लौट गया। 1376 में फिरोजशाह तुगलक के शासनकाल में बनारस में अनेक मस्जिदों का निर्माण हुआ, जो तोड़े गए मंदिरों के अवशेषों से बनाई गईं थीं। यही वह कालखंड था, जिसमें तलवार के बल से हिंदुओं का बड़ी संख्या में धर्म परिवर्तन कराया गया। हालांकि कुछ साधु-संत इस विषम स्थिति में भी मंदिरों के पुनर्निर्माण में अपने प्राणों की आहुतियां दे-देकर लगे रहे।
    विश्वनाथ मंदिर भी तोड़ने के बाद अवशेषों से फिर खड़ा कर दिया। लेकिन 1436 से 1480 के दौरान उत्तर भारत का शासन लोदी-वंश के हाथ आ गया। इस वंष के दूसरे बादशाह सिकंदर लोदी ने 1494 में उन सभी मंदिरों को फिर से तोड़ दिया, जिनका पुनर्निर्माण हो गया था। विष्वनाथ मंदिर को तो पूरी तरह खण्डर में तब्दील कर दिया गया था। इस तोड़-फोड़ का चित्रण संस्कृत के ग्रंथ ‘त्रिस्थली सेतु‘ (1580) और ‘वीरमित्रोदय‘ (1620) में मिलता है। अकबर के शासनकाल 1585 में टोडरमल ने अपने गुरू पंडितराज भट्टनारायण के आग्रह पर विश्वनाथ मंदिर फिर से बनवाया। किंतु 1669 में क्रूरतम शासक औरंगजेब की आज्ञा से एक बार फिर पुनर्निमित सभी मंदिरों को तोड़ दिया गया। इसी समय विश्वनाथ मंदिर के स्थान पर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई।

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