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डबल इंजन की सरकार का प्रहार और विपक्ष समर्थित नक्सलियों की बौखलाहट

  • डॉ. आनंद सिंह राणा
    वामपंथी उग्रवाद को दुनिया भर में माओवादी और भारत में नक्सलवादी के रूप में जाना जाता है। भारत में नक्सली हिंसा की शुरुआत वर्ष 1967 में पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग जिले के नक्सलबाड़ी नामक गांव से हुई और इसीलिये इस उग्रपंथी आतंक को ‘नक्सलवाद’ के नाम से जाना जाता है। यह छत्तीसगढ़,उड़ीसा, झारखंड और आंध्र प्रदेश और पूर्वी भारत के कम विकसित राज्यों में फैल गया। यह माना जाता है कि नक्सली माओवादी राजनीतिक भावनाओं और विचारधारा का समर्थन करते हैं। माओवाद, साम्यवाद का एक रूप है जिसे माओ त्से तुंग द्वारा विकसित किया गया। इस सिद्धांत के समर्थक सशस्त्र विद्रोह, जनसमूह और रणनीतिक गठजोड़ के संयोजन से राज्य की सत्ता पर कब्जा करने में विश्वास रखते हैं। वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्र को ‘रेड कॉरिडोर’ कहा जाता है।
    पीपुल्स वार ग्रुप के नाम से प्रसिद्ध भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) की स्थापना के बाद से, वामपंथी चरमपंथियों द्वारा हिंसा देश के अंदरूनी हिस्सों जैसे आंध्र प्रदेश, झारखंड, बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में फैल गई थी। स्वयूको ‘क्रांतिकारी’ कहने वाले इन चरमपंथियों ने चीनी राज्य की धुन गाते हुए भारतीय राज्य के खिलाफ सक्रिय युद्ध छेड़ दिया, जो उनके अनुसार, एक आदर्श प्रकार था। कुछ पुराने लोगों को यह नारा भी याद है, ‘चीन के चेयरमैन हमारे चेयरमैन हैं’। चेयरमैन माओत्से तुंग द्वारा स्थापित चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के नेतृत्व में चीन में संपूर्ण कम्युनिस्ट क्रांति देखी गई, जिसके बाद बाद में कम्युनिस्ट राज्य, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) की स्थापना हुई। यही पीआरसी आज तक भारतीय कम्युनिस्टों को अपना आदर्श प्रतीत होता है। उन्होंने माओ की विचारधारा के प्रति निष्ठा की भी शपथ ली जहां उन्होंने उपदेश दिया था, ‘राजनीतिक शक्ति बंदूक की नली से बहती है’। लेकिन चीन के विपरीत, जहां कुओमितांग, राष्ट्रवादी पार्टी सीसीपी से युद्ध हार गई और अंततः खुद को चीन गणराज्य (जिसे वर्तमान में ताइवान के रूप में जाना जाता है) तक सीमित करने के लिए मजबूर होना पड़ा, भारत में, कम्युनिस्टों द्वारा ऐसी कोई जीत हासिल नहीं की जा सकी। इसलिए क्रांति की आड़ वामपंथी आतंकवादी संगठनों को जन्म दिया गया, जिसकी एक उपज नक्सलवाद है।
    2009 में, यूपीए सरकार ने ‘ऑपरेशन ग्रीन हंट’ शुरू किया, जो आंध्र, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे माओवाद प्रभावित राज्यों में बड़े पैमाने पर सेना की तैनाती के साथ एक बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई थी। हालांकि कम्युनिस्टों की आलोचना के कारण, तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदम्बरम ने बाद में यू-टर्न ले लिया और कहा कि ऐसा कोई ऑपरेशन नहीं हुआ था और यह मीडिया का आविष्कार था, लेकिन जमीन पर सेना की तैनाती वास्तव में हुई थी। 2013 तक, तथाकथित ‘रेड कॉरिडोर’ पर 84000 से अधिक सैनिक तैनात थे।
    सन्ा 2014 में, सरकार बदलने के साथ, नक्सलियों के खिलाफ भारत की लड़ाई को अभूतपूर्व बढ़ावा मिला।
    मोदी सरकार ने न केवल वामपंथी उग्रवाद से निपटने में अधिक दृढ़ विश्वास दिखाया बल्कि उसने अपना दृष्टिकोण भी बदल दिया – एक संकीर्ण जवाबी हमले से प्रेरित दृष्टिकोण से बहु-आयामी रणनीति तक।
    अब छत्तीसगढ़ गढ़ की ओर चलते हैं जहां लोकतंत्र के समानांतर नक्सलियों की सरकार चलती थी, जिसे सूत्रों के अनुसार तत्कालीन सरकार का समर्थन प्राप्त था। प्रथम चरण के लोक सभा चुनाव को प्रभावित करने के लिए नक्सली पूर्व सरकार के मुख्यमंत्री के इशारे पर बड़ी घटना को अंजाम देने वाले थे परंतु डबल इंजन की सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक कर विफल कर दिया। आखिर नक्सलियों और पूर्व सरकार में क्या गठजोड़ था? आखिर पूर्व मुख्यमंत्री और उनके पिता की शह पर नक्सलियों ने क्या- क्या किया? नक्सलियों ने चुनावों के लिये धनराशि वसूली, राजनैतिक हत्याकांड को अंजाम दिया, लोकतांत्रिक प्रक्रिया की हत्या की,तेन्दुपत्ता का अवैध धन संग्रह किया और 5 साल पिछली भूपेश बघेल सरकार को समर्थन दिया। इसलिए पिछली सरकार ने नक्सलियों पर कार्यवाही को रोका गया है। पूर्व सरकार और मुख्यमंत्री ने नक्सलियों से भाजपा एवं 50 हिन्दू नेताओं की हत्या करवाई है। राजनादगांव में भी नक्सलवाद को समर्थन लेने और देने के लिये चुनाव लड़ने गये जबकि विधानसभा चुनाव अपने भतीजे से लड़ा है। पिछली सरकार ने पुलिस को रोक कर रखा था। अपने जवानों को मुफ्त में मरवा रही थी। अब पुलिस बिना किसी राजनीतिक दबाव के काम कर रही है।
    लोकसभा चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षाबलों ने बड़ा एक्शन लिया और कांकेर में सुरक्षा बलों ने मंगलवार को 29 नक्सलियों को एनकाउंटर में मार गिराया। इस मुठभेड़ में नक्सली कमांडर शंकर राव भी मारा गया। सन्ा 2024 की शुरुआत के बाद से, माओवादियों के गढ़ बस्तर क्षेत्र में सुरक्षा बलों के साथ अलग-अलग मुठभेड़ में 79 नक्सली मारे गए हैं।
    हाल के दिनों में सुरक्षाबलों ने नक्सलियों के विरुद्ध अपनी रणनीति में बदलाव किया है। नए ‘ऑपरेशन प्रहार’ में सुरक्षा बलों ने पिन पॉइंटेड ऑपरेशन किये हैं। बीते कुछ दिनों सुरक्षाबलों ने 2 बड़े ऑपरेशन किए हैं जिसमें मात्र 15 दिनों में 42 नक्सली ढेर किये जा चुके हैं। सूत्रों की मानें तो नक्सली बैकफुट पर हैं, और सुरक्षा बलों का अपरहैंड है। ऐसे में सुरक्षा बलों ने टॉप नक्सली कमांडरों की एक हिट लिस्ट तैयार की है और आने वाले दिनों में इनके खिलाफ भी ऑपरेशन होगा।
    ‘ऑपरेशन प्रहार’ के तहत उन बड़े नक्सलियों को निशाना बनाने की तैयारी है जो भोले भाले युवाओं का ब्रेनवाश कर उनको नक्सल गतिविधियों में शामिल करने के लिए उकसाते हैं। सुरक्षा बलों ने जो टॉप 17 की सूची तैयार की है। उसमें पी. एल. जी. ए. -1, का सबसे बड़ा नक्सली कमांडर मांडवी हिडमा शामिल है, जिसके बारे में सुरक्षा बलों को हाल ही में पता चला है कि वो सुकमा के जंगलों में छिपकर सुरक्षा बलों को निशाना बना सकता है। सूत्रों के अनुसार इस सूची में केवल हिडमा ही नहीं कई दूसरे नक्सली नेता भी शामिल हैं। सूची में मुप्पला लक्मना राव को सुरक्षा बलों ने टॉप लिस्ट में शामिल किया है, जानकारी के अनुसार ये नक्सली कमांडर इस समय छत्तीसगढ़ के माड़ इलाके में अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है।

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