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अंगदाता का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार प्रेरणादायी

प्रमोद भार्गव
ओडिशा सरकार ने एक अभूतपूर्व पहल करके अंगदाताओं को अभिप्रेरित करने का काम किया है। अब यहां अंगदान को बढ़ावा देने की दृष्टि से अंगदान करने वालों का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने यह घोषणा तमिलनाडु सरकार से प्रेरित होकर की है। तमिलनाडु में यह शुरुआत सितम्बर 2023 में की गई थी। इस सुविधा से परिजन सम्मान और गर्व का अनुभव करेंगे। नतीजतन दुर्घटनाग्रस्त एवं संज्ञाशून्य लोगों के अंगदान से ऐसे लोगों के प्राण बचाए जा सकेंगे,जो एक दुर्लभ अंग मिल जाने से जी उठ सकते हैं। फिलहाल देश में अंगदान करने वालों का औसत प्रति दस लाख में से एक व्यक्ति का है। जबकि अंगों की जरुरत की सूचि में प्रत्येक आठवें मिनट में एक व्यक्ति जुड़ रहा है। हालांकि अनुवांशिकी जीव विज्ञानी इस कोशिश में लगे हैं कि मानव या पशु शरीर के भीतर ही पर्याप्त मात्रा में अंगों का उत्पादन शुरू हो जाए।
भारत में मिलावटी खान-पान और सड़क दुर्घटनाओं के चलते लोगों के जीवनदायी अंग खराब हो रहे हैं। गोया, पांच लाख लोगों की मौत अंगों की अनुपलब्धता के चलते प्रति वर्ष हो जाती है। दो लाख यकृत, 50 हजार हृदय और डेढ़ लाख लोग गुर्दा संबंधी बीमारियों से प्रति वर्ष काल के गाल में समा जाते हैं। हालांकि गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए कई लोग अपना गुर्दा दान देने लगे हैं। लेकिन पूरे साल में पांच हजार रोगियों को ही गुर्दा दान में मिल पाता हैं। इनमें 90 फीसदी गुर्दे महिलाओं के होते हैं। भविष्य में महिलाओं को अंगदान न करना पड़े इसके लिए अंगों का कृत्रिम तरीके से उत्सर्जन किया जाना जरूरी है। वैसे किसी स्वस्थ्य व्यक्ति की प्राकृतिक मृत्यु होने पर उसके अंगों से आठ लोगों का जीवन बचाया जा सकता है। इस स्थिति में व्यक्ति के यकृत, गुर्दें, आंत,अग्नाश्य,आंखें,हृदय और फेफड़ों जैसे अंगों के अलावा त्वचा और हड्डी के ऊतकों का दान आसानी से किया जा सकता है।
मानव त्वचा से महज एक स्तंभ कोशिका (स्टेम सैल) को विकसित कर कई तरह के रोगों के उपचार की संभावनाएं उजागर हो गई हैं। माना जा रहा है कि यदि स्तंभ कोशिका मानव शरीर के क्षय हो चुके अंग पर प्रत्यारोपित करने से अंग विकसित होने लगता है। करीब दस लाख स्तंभ कोशिकाओं का एक समूह सुई की एक नोक के बराबर होता है। ऐसी चमत्कारी उपलब्धियों के बावजूद समूचा चिकित्सा समुदाय इस प्रणाली को रामबाण नहीं मानता। शारीरिक अंगों के प्राकृतिक रूप से क्षरण अथवा दुर्घटना में नष्ट होने के बाद जैविक प्रक्रिया से सुधार लाने की प्रणाली में अभी और बुनियादी सुधार लाने की जरूरत है। इधर वंशानुगत रोगों को दूर करने के लिए स्त्री की गर्भनाल से प्राप्त स्तंभ कोशिकाओं का भी दवा के रूप में इस्तेमाल शुरू हुआ है। इस हेतु गर्भनाल रक्त बैंक भी भारत समेत दुनिया में वजूद में आते जा रहे हैं। इस चिकित्सा प्रणाली के अंतर्गत प्रसव के तत्काल बाद गर्भनाल काटने के बाद यदि इससे प्राप्त स्तंभ कोशिकाओं का संरक्षण कर लिया जाए तो इनसे परिवार के सदस्यों का दो दशक बाद भी उपचार संभव है। इन कोशिकाओं का उपयोग दंपत्ति की संतान के अलावा उनके भाई-बहन तथा माता-पिता के लिए भी किया जा सकता है। गर्भनाल से निकले रक्त को शीत अवस्था में 21 साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है। लेकिन इस बैंक में रखने का शुल्क कम से कम एक-डेढ़ लाख रुपए है। ऐसे में यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि गरीब लोग इन बैंकों का इस्तेमाल कर पाएंगे? सरकारी स्तर पर अभी इन बैंकों को खोले जाने का सिलसिला शुरू ही नहीं हुआ है। निजी अस्पताल में इन बैंकों की शुरुआत हो गई है और 75 से ज्यादा बैंक अस्तित्व में आकर कोशिकाओं के संरक्षण में लगे हैं। इस पद्धति से जिगर, गुर्दा, हृदय रोग, मधुमेह और स्नायु जैसे वंशानुगत रोगों का इलाज संभव है।

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