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तीन हजार क्षत्राणियों का अग्नि प्रवेश..

  • रमेश शर्मा
    आठ मार्च को पहली बार 1907 में न्यूयार्क की सड़कों पर महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिये एक विशाल प्रदर्शन किया था लेकिन भारतीय इतिहास में आठ मार्च की तिथि एक ऐसी घटना का स्मरण कराती है जिसमें तीन हजार राजपूतानियों ने अपने स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा के लिए अग्नि में प्रवेश किया था । यह चित्तौड़ का दूसरा बड़ा जौहर था । जो महारानी कर्णावती के नेतृत्व में हुआ था। तीन हजार क्षत्राणियों ने अपना बलिदान दिया था। इसमें छोटी नन्ही बालिकाओं से लेकर बुजुर्ग महिलाएँ भी थीं । रानी कर्णावती को ही इतिहास की कुछ पुस्तकों में रानी कर्मवती भी लिखा है। वे बूँदी के राजा नरबद हाड़ा की पुत्री थीं। उनका विवाह चित्तौड़ के महान सम्राट राणा संग्राम सिंह से हुआ और वे चित्तौड़ की महारानी बनीं। उनके पति राणा संग्राम सिंह इतिहास की कुछ पुस्तकों में राणा साँगा के नाम से ख्यात हैं। राणा संग्राम सिंह ने पेशावर की सीमा पर जाकर भगवा ध्वज फहराया था। लेकिन विश्वासघात के चलते उन्हें घायल होकर खानवा के युद्ध से निकलना पड़ा था। उनके साथ विश्वासघात केवल युद्ध भूमि तक ही सीमित न रहा था अपितु घायल अवस्था में भी एक विश्वासघाती ने विष देकर उनकी हत्या कर दी थी । तब रानी कर्णावती ने अपने वालवय पुत्र विक्रमजीत को गद्दी पर बिठाकर राजकाज देखने का कार्य आरंभ किया। लेकिन चित्तौड़ में राज परिवार के ही कुछ लोग बालवय राजकुमार को शासक बनाने के पक्ष में नहीं थे । वे भी भीतर ही भीतर सत्ता परिवर्तन का षड्यंत्र कर रहे थे । इस घटनाक्रम से गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह अवगत था। उसने चित्तौड़ पर धावा बोल दिया । रानी कर्णावती के कंधों पर मेवाड़ के सम्मान की रक्षा का दायित्व था और वे इसके लिए दृढ़ संकल्पित थीं । उन्होंने अपने दोनों बेटों विक्रमजीत सिंह और उदय सिंह को गुप्त मार्ग से पन्ना धाय के संरक्षण में बूंदी भेजा और सेनापतियों की बैठक बुलाकर हमले का सामना करने की नीति अपनाई । चित्तौड का अपना इतिहास रहा है । चित्तौड के राजपूतों ने अपने प्राण देकर अपने स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा की है । वर्तमान परिस्थिति को भाँप कर भी मेवाड़ के बहादुर राजपूतों ने अपने प्राण देकर भी मेवाड़ की रक्षा का संकल्प लिया । उन्होंने समर्पण के बजाय निर्णायक युद्ध करके वीरगति को प्राप्त करने का निर्णय लिया। राजपूताने की भाषा में इस रणनीति को साका और जौहर कहते हैं। रानी कर्णावती द्वारा विश्वस्त राजपूतों ने साका करने और राजपूतानियो ने जौहर करने का निर्णय लिया। रात्रि एक विशाल चिता तैयार की गई और राजपूतानियों ने अग्नि में प्रवेश किया ।

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