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- इंजी. राजेश पाठक
2023 -24 की तीसरी तिमाही की आर्थिक वृद्धि के आंकड़े निकल कर आ चुके हैं, जिसने सबको चौंका दिया है। बताया गया है कि जीडीपी 8.4 % रही है। इस तिमाही में 25.60 लाख करोड़ उपभोग (कंसम्पशन )का आंकड़ा आया है; जबकि सबसे बड़ा उछल आया है निवेश में जो कि 14.8 लाख करोड़ का है; 3.4 लाख करोड़ का व्यय सरकार ने किया . पिछले वित्तीय वर्ष 2022 -2023 में चारों तिमाही को मिलाकर कुल 160 लाख करोड़ की कुल वस्तु और सेवा (गुड्स and सर्विस produce) का उत्पादन किया था, या यूँ कहें सकल घरेलु उत्पादन हुआ था। जबकि इस वर्ष चौथी तिमाही के अंत में अनुमान है कि ये लगभग 173 लाख करोड़ के आंकड़े को छू लेगा। ख़ास बात ये भी है कि जिन सेक्टर से सर्वाधिक रोजगार प्राप्त होता है, ऐसे मैन्युफैक्चरिंग और निर्माण में वृद्धि 11.6% और 9.5% हुआ है. ये ऐसा आश्चर्य जनक परिणाम है, जिसने सब को चौंका दिया है। और कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें इसने जरूर भारी धक्का पहुँचाया होगा, खास तौर पर रघुराम राजन को जो कि उपहास उड़ाते हुए कहते हुए पाए गए थे कि जीडीपी यदि 5% भी रही तो हम बड़े भाग्यशाली होंगे ।
आज उन्हें 2013 का वर्ष याद करने की जरूरत है। सन 2013 में दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह जब भारत के प्रधान मंत्री थे, और इन्फ्लेशन बढ़कर 11.0 6 % पर पंहुंच गया, तो रिज़र्व बैंक के विदेश से लौटे तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने इसको नियंत्रित करने के उद्देश्य से रेपो-रेट में बढ़ोत्तरी कर 8% कर दी। लेकिन 2014 में मोदी सरकार सत्ता में आई। उसने कठोर वित्तीय अनुशासन का पालन करते हुए , इन्फ्लेशन को नीचे लाना शुरू कर दिया. और जब 5.8%, 2014 में ; 4.9% , 2015 में; और, 2016 में इन्फ्लेशन नीचे पहुँच 4.5 % पर आ गया, तो सरकार को लगा कि रेपो रेट कम हो जाना चाहिए . जिससे बाज़ार में पैसा आये और उद्धोग-धंधे में उछाल आये। रेपो रेट वो होता है जिस व्याज दर पर रिज़र्व बैंक अन्य बैंकों को, और लोगों को ऋ ण देता है। रेपो रेट कम होगा तो आम लोगों को, व्यवसायीयों को भी कम दर पर आसानी से लोन मिल सकेगा . आम लोग खरीददारी करेंगे, व्यवसायी पैसे लगायेंगे उत्पदान बढ़ेगा, लोगों को व्यवसाय मिलेगा। पर पता नहीं क्यूँ इस आसान सी बात को रघुराम राजन सुनने को तैयार ही नहीं थे। इस बीच आरोप लगता है कि वो ये जानबूझ के कर रहें हैं। यहाँ तक कि मांग उठाने लगीं कि इसकी जांच होनी चाहिए।