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दो चरणों के चुनावी अनुमान वास्तविकता से दूर

  • कैलाश चंद्र पंत
    लोकसभा के दो चुनावी चरण पूरे होने के बाद राजनीतिक दल और विश्लेषक अनुमान लगा रहे हैं । विपक्षी दल चुनावों में मतदाता प्रतिशत के आधार पर अनुमान अपने पक्ष में सिद्ध करने में लगे हुए हैं। इसी कारण जब चुनाव आयोग ने अंतिम मतदाता प्रतिशत की घोषणा की तो वे चुनावों में गड़बड़ की आशंका व्यक्त करने लगे हैं। लेकिन सच्चाई ये है कि तुष्टिकरण की राजनीति से नाराज भारतीय मतदाता ने विपक्षी गठबंधन को नकारने का निर्णय काफी पहले कर लिया था । तुष्टिकरण की नीतियों से बहुसंख्यक समाज की नाराजी राममंदिर को लेकर पहले से ही थी । मतदाता के घावों पर सनातन धर्म संबंधी बयानों ने नमक छिड़कने का काम ही किया। इसके बचाव में कांग्रेस व अन्य गठबंधन से जुड़े दलों ने जातिवाद का दांव चला। इस चाल से (यदि विपक्षी दलों की बात को स्वीकार कर लिया जाये) तो अल्पसंख्यक, दलित, पिछड़े वर्ग के मतदाता भारी संख्या में मतदान करते। ऐसा क्यों नहीं हुआ? भाजपा और एनडीए का अनुमान भी तर्क की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। क्योंकि जिस मोदी लहर की बात की जा रही थी और चार सौ पार का नारा लगाया जा रहा था उसका समर्थन मतदान प्रतिशत नहीं करता । वैसी स्िथति होती तो यह प्रतिशत पिचत्तर के आंकड़े को पार करता।
    वास्तव में तात्कालिक निष्कर्षों के पूर्व कई तथ्यों का विश्लेषण आवश्यक होता है। जैसे मतदान के प्रति उत्साह प्रदर्शित करने वाला वर्ग कौन रहा? युवा और महिला वर्ग के मतदाताओं का क्या रवैया रहा? तीसरे और अंतिम तथ्य के रूप में निर्णय देने के पूर्व मतदाता का आकलन किन तत्वों पर निर्भर था। वैसे तो भारत जैसे विभिन्नता वाले विशाल देश में चुनाव परिणामों का आकलन आसान नहीं होता। लेकिन आमतौर पर भारतीय मतदाता अपना मानस किस आधार पर बनाता है इसका विश्लेषण कर शायद हम सही नतीजे पर पहुंच सकते हैं। परंतु यह विश्लेषण तथ्यों की पूरी जानकारी के बिना नहीं हो सकता ।
    यह सर्वमान्य तथ्य है कि जनता को एक प्रभावशाली नेतृत्व आकर्षित करता रहा है। इस बात से इंकार करना हडवादिता ही कही जाएगी कि आज भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत आगे हैं। ऐसा क्यों है ? उनकी छवि एक ईमानदार नेता की रही है जिसने पच्चीस साल तक लगातार गुजरात और भारत की सत्ता संभाली है। इस पूरी अवधि में उन पर एक भी दाग नहीं लग पाया। वरना कहावत है ‘ काजर की कोठरी में कितनों ही सयानप जाए, एक लीक लागि है पै लागि है ।’ यानी सत्ता की कोठरी में रहते हुए निष्कलंक रहना बहुत बड़ी उपलब्धि है। इसी कारण जनता उन पर विश्वास करती है।
    दूसरा तत्व होता है शासन करते हुए दृढ़ता, स्पष्टता और आत्मविश्वास। इसके साथ ही अपने कहे गये शब्दों के प्रति ईमानदार रहना । मोदी ने कहा था हम कश्मीर में धारा 370 हटायेंगे और देश का सविंधान वहां भी लागू करेंगे । उन्होंने यह काम कर दिखाया । जनता को शायद याद न हो कि 1952 से ही तब भारतीय जनसंघ ने कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय करने की मांग को लेकर नारा दिया था – ‘एक देश में दो विधान नहीं चलेंगे! एक देश में दो प्रधान नहीं चलेंगे ! एक देश में दो निशान नहीं चलेंगे! इन्हीं नारों के साथ जनसंघ के संस्थापक डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बिना परमिट के जम्मू कश्मीर में प्रवेश किया था। वे गिरफ्तार कर लिए गए थे। वहीं जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में उनका निधन हुआ था। कालचक्र कभी स्थिर नहीं रहता। नरेंद्र मोदी को इसका श्रेय दिया जाना चाहिए कि वे कश्मीर के अलगाववादियों की धमकियों से बेखौफ रह कर वह कर दिखाया जिसकी कल्पना भी विपक्षी दल नहीं कर सकते थे। सिर्फ इतना ही नहीं घाटी से आतंकवाद को समाप्त करने की घोषणा भी लगभग पूरी कर दिखाई। पाकिस्तान और चीन जब तब भारतीय भूमि पर घुसपैठ करते या आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देते रहे थे। मोदी ने दृढ़तापूर्वक दोनों को सबक सिखा दिया। आज भारतीय सेना का मनोबल ऊंचा है। उसे भारत के राजनीतिक नेतृत्व पर विश्वास है।
    इन साहसी निर्णयों के अलावा मोदी ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध निर्णायक युद्ध छेड़ दिया है। ऐसा करने वाले मोदी का राजनीति सफर सर्वथा निष्कलंक है। इसलिए जनता उनके कठोर निर्णयों का समर्थन करती है।
    नरेंद्र मोदी की नेतृत्व क्षमता का सबसे कठिन दौर कोरोना महामारी से मुकाबला था। जीवन रक्षा के अलावा आर्थिक ढांचे को गतिशील रखने की चुनौती थी। दोनों ही क्षेत्रों में मोदी के साहस, दृढ़ता और गतिशीलता का साक्ष्य जनता को मिल गया था। गरीब परिवारों को मुफ्त राशन देने का कार्य असाधारण था । वैक्सीन बनाकर विश्व को चमत्कृत कर दिया। गरीब देशों को वैक्सीन भेजकर भारतीय संस्कृति की उदारता से परिचित करा दिया। यह उसी आर्थिक गतिशीलता का परिणाम है कि चन्द्रयान का सफल प्रक्षेपण कोरोना काल के बाद कर दिखाया।
    आपदा को अवसर में बदलने का नारा कोरा नारा नहीं था। आज भारत विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और तीसरे स्थान पर पहुंचने की तैयारी है। इन सबसे ऊपर आम आदमी से संवाद का अद्भुत कौशल नरेन्द्र मोदी को सर्वाधिक लोकप्रिय बनाता है।
    इसके विपरीत विपक्षी गठबंधन और कांग्रेस एक अच्छे नेता को तैयार करने में असफल रहे हैं। कांग्रेस भले ही राहुल गांधी के नेतृत्व को निखारने की कोशिश कर रही हो पर आज की वास्तविकता तो यह है कि गठबंधन के दल भी उन्हें नेता मानने को तैयार नहीं और स्वयं कांग्रेस पार्टी के नेता भी उनकी असफलताओं से पीड़ित होकर कांग्रेस से नाता तोड़ रहे हैं।
    क्या ये सारे तथ्य भारतीय मतदाता के सामने नहीं हैं? क्या इनका प्रभाव मतदान में नहीं हुआ होगा या शेष चरणों में होगा? क्या हसीन सपने दिखाकर, जातिवाद का भूत जगा कर, विभाजनकारी तत्वों से गठबंधन कर कांग्रेस या उसका गठबंधन मतदाता को आकृष्ट कर सकेंगे? क्या मतदाता आज भी मध्ययुग में जी रहे हैं? तठस्थ मूल्यांकन करते हुए चार जून तक इंतज़ार करते रहिए। तब तक सटोरियों के बाजार में दाम ऊंचे- नीचे होते रहेंगे।

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