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एक देश-एक कानून के प्रबल समर्थक थे डॉ. मुखर्जी

  • कैलाश विजयवर्गीय
    भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने ही सबसे पहले देश में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की तुष्टीकरण की राजनीति का विरोध किया था। देश की आजादी के बाद कांग्रेस सरकार के विरोध में डॉ मुखर्जी ने ही सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाई थी। जवाहर लाल नेहरू को संसद और सड़कों पर घेरकर डॉ मुखर्जी ने प्रखर राष्ट्रवाद के मार्ग को प्रशस्त किया था। संसद में डॉ मुखर्जी के प्रश्नों का उत्तर देते समय तत्कालीन प्रधाननंत्री नेहरू बौखला जाते थे। इसी बौखलाहट में नेहरू ने प्रेस पर भी प्रहार किए थे। उस समय नेहरू के प्रभाव के कारण डॉ मुखर्जी के कार्यों को कम करके आंका गया। आज केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार डॉ मुखर्जी के सपनों को साकार करने में लगी है। भारत की एकता-अखंड़ता, विकास, महिलाओं और शिक्षा के क्षेत्र में डॉ मुखर्जी के योगदान को नकारते हुए कांग्रेस और कम्युनिस्टों ने उनके बारे में गलत प्रचार किया था।
    डॉ मुखर्जी के बारे में यह भ्रम फैलाया गया था कि उन्होंने हिन्दू कोड बिल का विरोध किया था। इतिहास के पन्नों को पलटे तो डॉ मुखर्जी ने सबसे पहले देश में समान नागरिक संहिता लाने के लिए जोरदार आवाज उठाई थी। नेहरू मंत्रिमंडल में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय संभालने वाले डॉ मुखर्जी ने मतभेद होने के बाद इस्तीफा दे दिया था। नेहरू-लियाकत पैक्ट को हिंदुओं के साथ धोखा मानते हुए 1950 में उन्होंने नेहरू के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया था। सोची समझी नीति के तहत अंग्रेजी हुकूमत ने मुस्लिम कानूनों में कोई बदलाव नहीं किया था। देश की स्वतंत्र होने से पहले अंग्रेजी सरकार ने हिन्दू कानूनों में सुधार का प्रारूप बनाया था। देश के स्वतंत्र होने के बाद हिन्दू कोड को लागू करने के लिए पहले कानून मंत्री डॉ भीमराव आम्बेडकर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। नेहरू के रूख को देखते हुए डॉ आम्बेडकर ने भी सरकार से इस्तीफा दे दिया था। डॉ मुखर्जी ने उस समय हिन्दू कोड बिल को भारतीय न बनाने पर सरकार की तीखी आलोचना की थी। उनका कहना था वह जानते है कि ऐसा क्‍यों नहीं किया गया। नेहरू सरकार की मुस्लिम समुदाय को छूने की हिम्‍मत नहीं है। वह हिंदुओं के साथ जो करना चाहती है वह कर सकती है।
    आज राजनीतिक कारणों से तथाकथित समाजवादी नेता समान नागरिक संहिता का विरोध कर रहे हैं पर उस समय समाजवादी नेता आचार्य जेबी कृपलानी ने नेहरू का विरोध किया था। उन्होंने मुस्लिमों के लिए एक विवाह के लिए कानून लाने की आवाज उठाई थी। तुष्टीकरण की नीतियों के कारण ही हिन्दू कोड बिल को भारतीय नहीं बनाया गया। उस समय के मुस्लिम सांसद नेहरू के इस कार्य से बहुत खुश हुए थे।
    डॉ मुखर्जी ने पश्चिम बंगाल को पाकिस्तान में जाने से बचाने के लिए बड़ी भूमिका निभाई थी। हिन्दुओं पर अत्याचारों का विरोध करने के कारण डॉ मुखर्जी को सांप्रदायिक नेता के तौर पर प्रस्तुत किया था। भारतीय संस्कारों के प्रबल समर्थक डॉ मुखर्जी ने मुस्लिम लीग के साथ सरकार चलाई थी। कलकत्ता विश्वविद्यालय में इस्लामिक अध्ययन केंद्र की स्थापना डॉ मुखर्जी ने कराई थी। महाबोधि सोसायटी के पहले गैर बौद्ध के तौर पर नेतृत्व किया था। मुस्लिम लीग की विभाजनकारी नीतियों के विरोध में ही डॉ मुखर्जी हिन्दू महासभा में शामिल हुए थे। आज जम्मू-कश्मीर आतंकवाद से मुक्त होकर विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। कश्मीर में बाबा अमरनाथ के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की उमड़ी भारी भीड़ वहां के परिवर्तन की गवाही दे रही है। डॉ मुखर्जी के एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं चलेंगे को नारे को केंद्र की लोकप्रिय नरेंद्र मोदी सरकार ने साकार किया है। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद राज्य में नए अध्याय का प्रारम्भ किया गया। अयोध्या में भगवान श्रीराम भव्य मंदिर में जल्दी ही भक्तों को दर्शन देने वाले हैं। एक देश में एक कानून के लिए आवाज उठाने वाले डॉ मुखर्जी का यह सपना भी जल्दी पूरे होने वाला है। देश में समान नागरिक संहिता के लिए बना वातावरण इसका गवाह बन रहा है। देश प्रथम डॉ मुखर्जी का ध्येय वाक्य था। इसी भावना से काम करते हुए मोदी सरकार ने सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास, सबका विश्वास के नारे को साकार कर दिया। भारत के महान राष्ट्रवादी और दूरदर्शी नेता डॉ मुखर्जी की जयंती पर कोटिशः नमन।

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