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‘सियासत’ कीजिए पर देश, धर्म और संस्कृति के शत्रु न बनिए

  • डॉ. वंदना गाँधी
    इस समय राजनीति का स्तर कितना गिर रहा है कि सियासत करने वाले कुछ लोग सभी सीमा-रेखा और मर्यादाओं को तोड़ रहे हैं। अपने सामने वाले पक्ष का विरोध करते-करते वे सीमाएँ लांघ कर देश, संस्कृति और धर्म के ख़िलाफ़ ही बोलने लग जाते हैं। पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के विधायक रामेंदु सिन्हा राय ने भी यही किया। उन्होंने एक जनसभा को संबोधित करते हुए भाजपा और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का विरोध करते हुए अयोध्या में भगवान श्री राम के मंदिर को ही अपवित्र कह दिया।
    ऐसा कहते हुए वे यह भूल गए कि भगवान श्री राम विश्व के करोड़ों श्रद्धालुओं के आराध्य हैं। यद्यपि राजनीति की इस अतिहीनता को भारतीय समाज कभी स्वीकार नहीं करेगा। इस प्रकार की ‘सियासत’ करने वालों को ये ध्यान रखना ही चाहिए कि भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करते हुए वे उस सीमा को न लांघें कि देश, संस्कृति और धर्म की ही आलोचना करने लगें। विवादित बयान देने वाले रामेंदु सिन्हा राय पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के तारकेश्वर से तृणमूल कांग्रेस के विधायक हैं। इसके साथ ही वह पार्टी के आरामबाग ज़िले के संगठनात्मक जिला प्रमुख भी हैं। एक जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने अयोध्या में नवनिर्मित भव्य राम मंदिर को लेकर आपत्तिजनक बयान देते हुए अयोध्या के श्रीराम मंदिर को अपवित्र स्थान कहा। उन्होंने यह भी कहा कि “किसी भी भारतीय हिंदू को ऐसे अपवित्र स्थल पर पूजा नहीं करनी चाहिए।” वह यहीं नहीं रुके और आगे कहा कि ‘’मंदिर में तो भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा ब्राह्मण करते हैं। ठ
    ीक इसी तरह इमाम साहब मस्जिदों में सारे धार्मिक रीति-रिवाज को निभाते हैं, लेकिन पीएम मोदी ने ब्राह्मण न होते हुए भी राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की। इसलिए ‘वहां’ नहीं जाना चाहिए।” रामेंदु सिन्हा राय ने सवाल किया कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्राह्मण न होते हुए भी किस हैसियत से अयोध्या के राम मंदिर में भगवान राम की प्राण-प्रतिष्ठा की?” हालाँकि यह भी दुनिया ने देखा कि किस प्रकार अयोध्या में नवनिर्मित भव्य श्रीराम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा के लिए 5 दिन तक विधिवत और शास्त्रोक्त अनुष्ठान चला था। और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपने प्रधानमंत्री दायित्व पूरे करते हुए भी 11 दिन तक यम, नियम ,संयम और कठोर तपश्चर्याओं का शास्त्रों में दिये निर्देश अनुसार पालन करते हुए कठिन उपवास रखकर प्रतिदिन पूजा-अर्चना की थी। उन्होंने प्रतिदिन अलग अलग पवित्र नदियों में स्नान कर मंदिरों के दर्शन किए थे।
    यहाँ यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि प्रभु श्रीराम तो सबके हैं। वे तो पूरे लोक के हैं,जहां वे केवट के हैं, तो शबरी के भी हैं। केवल ब्राह्मण न होने को मुद्दा बनाने की कोशिश समाज को बाँटने वाली ही है। ऐसे में यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि सभी वर्णों के लोग पुजारी, संत, महंत सदैव से रहे हैं। मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में किसी भी जाति-वर्ग का व्यक्ति यजमान बन सकता हैं फिर प्रधानमंत्री मोदी के ब्राह्मण न होने को मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है। इसीलिए समाज को बाँटने की यह इनकी तुच्छ कोशिश भी सफल होने वाली नहीं है।
    इन आपत्तिजनक बयानों से पूर्व ज़रूरी था कि तृणमूल नेता रामेंदु सिन्हा राय भगवान श्रीराम की महिमा को समझ लेते। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार हैं, भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं। वे केवल भारतवर्ष के कोटि-कोटि हिंदूओं के ही नहीं बल्कि विश्व भर में उन्हें मानने वालों के पूज्य आराध्य देव हैं। भगवान श्रीराम का जीवन विश्व के प्रत्येक मनुष्य के लिए आदर्श है। सभी जानते हैं कि 500 वर्षों के संघर्ष के बाद हिंदू समाज ने शांतिपूर्ण आंदोलनों और लंबी कानूनी लड़ाई के बाद न केवल अपने प्रभु श्री राम के जन्म स्थान को प्राप्त किया बल्कि वहां भव्यतम मंदिर का निर्माण भी किया जा सका जो आज दुनिया के सामने है। तृणमूल कांग्रेस के विधायक भगवान श्री राम को नहीं समझ पाए हैं और संभवतः न ही करोड़ों-करोड़ों हिंदुओं की आस्था को समझ सके हैं। यदि वे समझ पाए होते तो ऐसा कुत्सित बयान न देते। उनके इस बयान से आहत समस्त हिंदू समाज इस बयान के लिए उनकी निंदा ही करेगा। पूरे विश्व में भारत की जय जयकार हो रही है। भारत का गौरव इस बात से और अधिक बढ़ा है कि रामलला अपने जन्म स्थान में बने भव्य मंदिर में विराजमान हुए हैं। प्रभु के दर्शन को देश और दुनिया से प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु अयोध्या पहुंच रहे हैं। तब भी तृणमूल कांग्रेस नेता और ऐसे ही कुछ अराजक तत्व इस ऐघटना को राजनीतिक चश्मे से देखने की भूल कर रहे हैं।

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