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जनसंख्या और संसाधन के अंतर्संबंध को ध्यान में रखकर विकास की बात हो

  • डॉ. मनमोहन प्रकाश
    भारत में जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है और हर छोटा-बड़ा गांव, कस्बा, शहर इसमें सह भागी बन रहा है। जनसंख्या का सही आकड़ा तो भारत की राष्ट्रीय जनगणना के बाद ही प्राप्त हो सकेगा।किन्तु कहा तो यहां तक जा रहा है कि भारत ने जनसंख्या के मामले में विश्व में चीन को पीछे छोड़ते हुए प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया है। प्रथम स्थान पर आना अच्छी बात है, सम्मान जनक है, पर जनसंख्या के मामले में भारत का प्रथम स्थान पर आना किसी भी दृष्टि से अच्छा नहीं माना जा सकता। क्योंकि भारत जैसे राष्ट्र के लिए अपने शत-प्रतिशत नागरिकों को अच्छा स्वास्थ्य, अच्छी शिक्षा, अच्छा रोजगार, अच्छा वातावरण, अच्छा रोटी- कपड़ा-मकान उपलब्ध कराना, अच्छी आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति करना उस समय भी भी मुश्किल था जब भारत जनसंख्या में चीन से पीछे था और आज जब भारत चीन से जनसंख्या में आगे है तो कितना मुश्किल होने वाला है? अनुमान लगाया सकते हैं। कारण स्पष्ट हैं, जिस अनुपात में जनसंख्या बढ़ रही है,उस अनुपात में संसाधन नहीं बढ़ रहे हैं, अपितु या तो कम हो रहे हैं,या दूषित हो रहे हैं। वहीं दूसरी ओर भारत का क्षेत्रफल सीमित है, साथ ही उपलब्ध जल, जंगल, ज़मीन तथा नाॅन-रिन्यूएबल संसाधन भी सीमित हैं। रिन्यूएबल संसाधनों का शतप्रतिशत रिन्यूएबल भी नहीं हो पा रहा है। भविष्य में जलवायु तथा विकास के लिए आवश्यक अन्य परिस्थितियों तथा वस्तुओं के हमेशा अनुकूल रहने की कोई गारंटी भी नहीं है।ऐसे में केन्द्र की सरकार तथा राज्यों की सरकारों का विवेक पूण धारीय विकास करना, संसाधनों के उपयोग में मितव्ययिता बरतना, गांव, कस्बों, शहरों, मेट्रोपोलिटन शहरों में बढते जनसंख्या के दबाव को ध्यान में रखते हुए आम-आदमी की आवश्यकताओं और पर्यावरण को ध्यान में रखकर विकास करना पहले भी कठिन था, वर्तमान में भी कठिन हो रहा है और भविष्य में भी कठिन रहने वाला है। क्योंकि जनसंख्या और संसाधनों के बीच एक स्थापित-सत्य यह है कि जिस देश में संसाधन अधिक हैं और जनसंख्या कम है तो उस देश में तीव्र गति से विकास होने की संभावनाएं हैं, वहीं दूसरी ओर यदि स्थितियां इसके विपरीत हैं अथार्त जनसंख्या ज्यादा है और संसाधन कम हैं तो विकास की रफ्तार धीमी रहने वाली है, प्रगति बाधित हो सकती है। विकास की बात करते समय, योजना बनाते समय, उन्हें क्रियान्वित करते समय ऐसे देखने में आता है कि चुनी हुई सरकारें और जनप्रतिनिधि गण अपने पसंद के स्थानों, शहरों, राज्यों को ध्यान में रख कर विकास की बात करते हैं और काम करते हैं। इससे विकास तो होता है पर कहीं कम और कहीं अधिक।

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