Home » घटते वन, बढ़ते प्रदूषण ने अनमोल जिंदगी कर दी कम

घटते वन, बढ़ते प्रदूषण ने अनमोल जिंदगी कर दी कम

  • डॉ. प्रितम भी. गेडाम
    मनुष्य के मूलभूत जीवनावश्यक घटकों से खिलवाड़ करके अन्य भौतिक सुख-सुविधा प्राप्त करना ही अब उद्देश्य बन गया है, तो हम किस आधार पर इस आधुनिक विकास को मनुष्य का सर्वांगीण विकास कहें? मनुष्य को स्वस्थ जीवन के लिए शुद्ध ऑक्सीज़न, स्वच्छ जल और स्वास्थ्यकर आहार सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, जिसके बिना जीवन की कल्पना बेमानी है। दुनिया में आज कितने प्रतिशत लोगो को यह आवश्यक घटक शुद्ध रूप में प्राप्त हो रहे हैं? हम सभी को पता है कि अमीर हो या गरीब सभी प्रदुषित वातावरण में जीने को मजबूर हैं। आज के समय में कोई नहीं बता सकता कि भोजन की थाली में खाद्यपदार्थ कितना शुद्ध है और यही कारण है कि गर्भवती माताओ के पेट में पल रहे शिशु से लेकर हर उम्र के व्यक्ति में जानलेवा बिमारियो में बेतहाशा वृद्धि हुई है, हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक, कैंसर जैसी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। आज हम जिस तरह के वातावरण में सांस ले रहे हैं, निश्चित ही भविष्य में नई-नई बीमारियों का साम्राज्य बढ़ना तय है। इस स्थिति के लिए केवल मनुष्य ही जिम्मेदार है। प्रकृति के साथ खिलवाड़, नीति-नियमों की अवहेलना और स्वार्थवृत्ति ने आमजन के जीवन की डोर को बेहद कमजोर कर दिया है।
    पेड़ सजीवों के लिए सबसे बड़ा जीवनदाता है, पेड-पौधो के बिना प्रकृति का अस्तित्व नहीं हो सकता और प्रकृति के बिना मनुष्य का अस्तित्व नहीं हो सकता। पेड़-पौधों के कारण ही हमें शुद्ध ऑक्सीजन, पानी, आहार प्राप्त होता है। प्रकृति मनुष्य की हर आवश्यकता पूरी कर सकती है, लेकिन उनकी लालच नहीं। हर साल 21 मार्च को वनों के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने “अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस” दुनिया भर में मनाया जाता है। इस वर्ष 2024 की थीम ‘वन और नवाचार’ है। हमारे जंगल कम हो रहे हैं, वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड रिपोर्ट अनुसार, 2022 में 6.6 मिलियन हेक्टेयर जंगल नष्ट हो गए। जनसंख्या और शहरीकरण में वृद्धि के कारण, अधिक भूमि की लगातार बढ़ती मांग के कारण, आवश्यकता पूर्ति के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन व अधिक वन क्षेत्रों को ख़त्म किया जा रहा हैं। पृथ्वी के तापमान में वृद्धि से भी वनों का क्षरण हो रहा हैं। डाउन टू अर्थ के अनुसार, भारत में वनों की कटाई साल 1990 और 2000 के बीच 384,000 हेक्टेयर से बढ़कर साल 2015 और 2020 के बीच 668,400 हेक्टेयर हो गई। जब जंगल ख़त्म होते है तो इसका सीधा असर पर्यावरण के हर घटक पर पड़ता है और वह जीवन को बुरी तरह प्रभावित करता है।
    वैश्विक बीमारी के बोझ का 12% कारण पर्यावरणीय जोखिम बनते हैं, जिसमें वायु प्रदूषण पहले स्थान पर है। बीएमजे अनुसार, सूक्ष्म कणों और ओजोन वायु प्रदूषण के कारण हर साल 83.4 लाख लोग जान गवांते है, जबकि प्रदूषण और स्वास्थ्य पर लांसेट कमीशन ने बताया कि 2015 में 90 लाख असामयिक मौतों के लिए प्रदूषण जिम्मेदार था, अर्थात दुनिया भर में छह में से एक मौत प्रदूषण से, और कुल 4-6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (वैश्विक आर्थिक उत्पादन का 6.2%) का आर्थिक नुकसान हुआ। जल प्रदूषण 14 लाख असामयिक मौतों के लिए जिम्मेदार था। सीसा और अन्य रसायन वैश्विक स्तर पर हर साल 18 लाख मौतों के लिए ज़िम्मेदार था। विषाक्त व्यावसायिक खतरे 8.7 लाख मौतों के लिए जिम्मेदार थे। अनुमान है कि मृदा प्रदूषण के प्रति मानव जोखिम हर साल वैश्विक स्तर पर 5 लाख से अधिक असामयिक मौतों का कारण बनता है। विकासशील देशों में खराब प्रबंधन वाले कचरे से जुड़ी बीमारियों और दुर्घटनाओं के कारण हर साल चार से दस लाख लोग मरते हैं। प्रदूषण से संबंधित 90% से अधिक मौतें कम आय और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। जीबीडी 2019 रिसर्च अनुसार, वायु प्रदूषण, सीसा प्रदूषण और व्यावसायिक प्रदूषकों से पुरुषों की मृत्यु होने की अधिक संभावना है, जबकि जल प्रदूषण से महिलाओं और बच्चों की मृत्यु की संभावना अधिक होती है। ओजोन और पार्टिकुलेट मैटर जैसे वायु प्रदूषक फेफड़ों, हृदय रोग और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की गंभीरता को बढ़ाते हैं।

Swadesh Bhopal group of newspapers has its editions from Bhopal, Raipur, Bilaspur, Jabalpur and Sagar in madhya pradesh (India). Swadesh.in is news portal and web TV.

@2023 – All Right Reserved. Designed and Developed by Sortd