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- डाॅ. मनमोहन प्रकाश
विज्ञान एवं तकनीकी युग में आज मनुष्य एक ओर तो प्रकृति पर विजय प्राप्त करना चाहता है, कई वर्षों तक जीवित रहना चाहता है, बुढ़ापे को दूर भगाना चाहता है, जिंदगी को आराम दायक बनाना चाहता है, वहीं दूसरी ओर अपनी बढ़ती महत्त्वाकांक्षा से चालित प्रकृति को जाने-अनजाने में तरह-तरह से हानि पहुंचा रहा है। साथ ही समय-समय पर विभिन्न देशों के मध्य होने वाले युद्ध, युद्धाभ्यास, आतंकी हमलों में प्रयुक्त घातक हथियार और उनकी टेस्टिंग जल (समुद्र), वायु ,थल,नभ को बुरी तरह से प्रभावित कर रही हैं, प्रदूषित कर रही है। आजकल जो युद्ध हो रहे हैं वे इतिहास की किताबों में दर्ज परम्परागत युद्ध जैसे नहीं हैं,जिनमें तलवार, धनुष और तोपखाने का उपयोग किया जाता हो।
उन्नीसवीं शताब्दी से युद्ध में उपयोग होने वाले हथियार और सामग्री में बहुत बदलाव आया है। कम्प्यूटरीकृत प्रणाली तथा सूचना तंत्र का उपयोग हथियारों में बढ़ा है। युद्धक विमान, मिसाइल, राॅकेट लांचर, तोप, बम और उनमें उपयोग होने वाले तरह-तरह के विस्फोटक और उनकी सटीक मारक क्षमता ने युद्ध को मनुष्य और पर्यावरण के लिए पहले से ज्यादा घातक और नुकसान दायक बना दिया है। उदाहरण के लिए लगभग पिछले दो वर्ष से जारी रुस-यूक्रेन युद्ध में तरह-तरह के घातक हथियारों का उपयोग हो रहा है यथा – विस्फोटक हथियार जो अपने विखंडन, विस्फोटक, आगजनी के प्रभाव से प्रकृति और मानव को बेतहाशा नुकसान पहुंचा रहे हैं। रासायनिक हथियार (क्लोरोपिक्रिन जैसे दम घुटने वाले ऐजेंट आदि) जो मनुष्य सहित विभिन्न जीव-जंतुओं के फेफड़ों, आंखों, त्वचा में जलन पैदा करके तथा उल्टी,मतली,दस्त का कारण बन हथियार के प्रभाव क्षेत्र में आने वाले हर व्यक्ति और जीवों को मौत के घाट उतार रहे हैं,इनका वनस्पतियों पर क्या प्रभाव पड़ा है युद्ध समाप्ति पर होने वाले शोध से ही अवज्ञत हो सकेगा।
कुछ हथियार ऐसे भी उपयोग में लायें जा रहे हैं जो आगजनी तथा धुआं फैला कर जन-धन को हानि पहुंचा रहे हैं (नेपान,थर्माइट,सफेद फास्फोरस आदि) तथा कुछ हथियार ऐसे हैं जिन्हें ईंधन वायु विस्फोटक(थर्मोबेरिक हथियार) कहा जाता है (एरोसोल बम या वैक्यूम बम) जो उच्च तापमान वाले विस्फोट को उत्पन्न करने के लिए हवा से आक्सीजन का उपयोग करते हैं। इन विस्फोटक से उत्पन्न गर्मी इंसान को झुलसा देती है। इसके घातक प्रभाव को देखते हुए इन हथियारों को गैर परमाणु हथियार में सबसे ख़तरनाक माना जाता है। परमाणु हथियार को अभी होल्ड पर रखा है जो बड़े क्षेत्र में सामुहिक विनाश का कारण बन सकता है। रुस-युक्रेन युद्ध में इस विनाशक हथियार के उपयोग की आंशका बनी हुई है।
इन हथियारों के प्रभाव को जानकर इतना तो स्पष्ट है कि ये प्रकृति/पर्यावरण और उसके जैविक और अजैविक घटकों को बहुत ज्यादा क्षति पहुंचा रहे हैं और युद्ध विराम के बाद भरपाई करने या यूं कहें युद्ध के पहले की स्थिति में लाने में वर्षों लग सकते हैं। आज विश्व के देशों में गुटबाजी स्पष्ट दिखाई देती है।एक तरफ रूस, चीन, उत्तरी कोरिया जैसे देशों का समूह है तो दूसरी तरफ अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी जैसे नाटों देशों का समूह है तो तीसरी ओर भारत जैसे वे देश है जो अभी किसी गुट में नहीं है तथा विश्व शांति के पक्ष में है और उन्हें अपने देश में पर्यावरण की रक्षा करते हुए विकास की रफ्तार को तेज करना है, विकसित राष्ट्र बनना, अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है तथा अपने नागरिकों की समस्याओं का समाधान करना है।
विश्व में कुछ ऐसे भी देश है जो सीधे तौर पर तो युद्ध में शामिल नहीं है पर युद्ध करने के लिए देशों को उकसा रहे हैं, उन्हें घातक हथियारों की आपूर्ति कर रहे हैं, शांति-वार्ता को किसी परिणामदायक स्थिति में पहुंचने से अप्रत्यक्ष रूप से रोक रहे हैं। वास्तव में युद्ध विराम न होना या यूं कहें युद्ध का लंबा खिंचना वर्तमान में चल रहे युद्ध और उससे उपजे पर्यावरणीय संकट की स्थिति को और भयावह बना रहा है, परमाणु हमले की आशंकाओं को जन्म दे रहा है। ऐसा लगता है जिन देशों के मध्य युद्ध (इजराइल-हमास,रुस-यूक्रेन आदि) जारी है वे शांति, युद्ध विराम जैसे शब्द अपने शब्दकोश से मिटा चुके हैं।