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- दीपक वोहरा
कुछ स्वयंभू ‘विशेषज्ञ’ बता रहे हैं कि चीन महाशक्ति देश के रूप में अमेरिका की जगह लेना चाह रहा है, इसलिए उसके पास भारत के खिलाफ षड्यंत्र रचने का समय नहीं है। यह सरासर बकवास है। चीन यह बात अच्छी तरह से समझता है कि भारत को कमजोर किए बिना दुनिया पर वर्चस्व कायम करने की उसकी मंशा कभी पूरी नहीं हो सकती है। इसलिए सैन्य से लेकर आर्थिक और मानचित्रण तक-वह भारत के खिलाफ हर तरह की आक्रामकता आजमाने का प्रयास करता है। उसके योजनाकार भारत के खिलाफ साजिश रचने पर काफी समय खर्च करते हैं। चीन की ‘तीन युद्ध’ रणनीति का काफी विश्लेषण किया गया है, जो झाउ वंश के रणनीतिकार सन त्जु की पुस्तक द आर्ट ऑफ वार से प्रेरित थी, खासकर बिना लड़े जीतने की उसकी अवधारणा, क्योंकि वह चीनियों की सीमित शारीरिक क्षमता से वाकिफ थे। चीन अंतर राष्ट्रीय संस्थाओं को कमजोर करना, सीमाओं को बदलना और वैश्विक (खासकर सोशल) मीडिया को नष्ट करना चाहता है। उसके पास सूचनाओं में हेरफेर करने वाली एक सेना है, और वह जहां तक संभव हो सके, अपने विरोधियों को भ्रमित करने के लिए उसका उपयोग करने की कोशिश करता है।
आजकल एल्गोरिद्म एवं बॉट्स के साथ सोशल मीडिया में हेरफेर करना अपेक्षाकृत आसान हो गया है, जो इंटरनेट पर स्वचालित ढंग से असीमित ‘व्यूज’ और ‘लाइक्स’ पैदा कर सकते हैं, जिन्हें मानव गतिविधियों की तरह तैयार किया गया है। मौजूदा लोकसभा चुनाव के दौरान भी ऐसा देखने को मिला है। वर्तमान सरकार के कुछ विदेश-समर्थित सोशल मीडिया आलोचक हैं, जिनके ‘आधिकारिक’ रूप से लाखों फॉलोअर्स हैं। चीन ने सोशल मीडिया के जरिये ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अमेरिका में चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश की है। लेकिन वह पकड़ा गया और उसने आहत होने का नाटक किया। मेटा जैसी दिग्गज सोशल मीडिया कंपनी के सतर्क होने और दुर्भावनापूर्ण खातों को निष्क्रिय करने के बाद चीन (और उसका अनुयायी पाकिस्तान) सोशल मीडिया का दुरुपयोग करने वाले प्रमुख देश के रूप में उभरा है। यानी सोशल मीडिया को चीन ने पूरी तरह से एंटी-सोशल (असामाजिक) बना दिया।
वर्ष 2020 में गलवान की घटना (जो चीन की भयंकर भूल थी) के बाद उसकी चर्चित सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलएल) कागजी शेर साबित हुई। इसलिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी अब गैर-पारंपरिक युद्ध करने की कोशिश कर रही है। उसके निशाने पर विशेष रूप से विदेश में बसा सिख समुदाय का एक छोटा-सा वर्ग है, जो भारत को अस्थिर करने के बारे में सोच रहा है। अपने पुराने पिछलग्गू पाकिस्तान के उकसावे में आकर चीन ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद यही घिसी-पिटी रणनीति अपनाई। लेकिन कश्मीर में जब उसकी दाल नहीं गली और कश्मीर के लोगों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में जुड़ने के आर्थिक और राजनीतिक लाभ दिखने लगे, तो चीन ने अपना ध्यान विदेश में बसे कट्टरपंथी सिखों की तरफ लगाया। उसकी यह साजिश भी विफल होने वाली है, क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था आसमान छू रही है और दुनिया भारत के साथ दोस्ती के फायदे समझ रही है।
पिछले पांच वर्षों में चीन ने भारत पर काफी आर्थिक दबाव बनाया, उसके बावजूद महामारी पर काबू पाने में हमारी सफलता और आर्थिक सुधार से चीन चिंतित हो उठा है। हालांकि भारत और चीन के बीच खुले युद्ध की फिलहाल कोई आशंका नहीं है, लेकिन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर छिटपुट झड़पों और कभी-कभार जमीन हड़पने के प्रयासों से इन्कार नहीं कर सकते।