88
- उमेश चतुर्वेदी
मौजूदा आम चुनाव संविधान के अनुच्छेद 370 के अप्रभावी किए जाने के बाद का पहला निर्वाचन है। संविधान के इस अनुच्छेद को निष्प्रभावी किए जाने को लेकर संसद से बाहर जिस तरह कश्मीर के अलावा कुछ राजनीतिक दलों ने रूख अपना रखा था, उम्मीद की जा रही थी कि मौजूदा आम चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बनेगा। लेकिन कश्मीर की विशेष स्थिति की बहाली स्थानीय कश्मीरी राजनीतिक दलों को छोड़ दें तो मौजूदा चुनावों में बड़ा मुद्दा नहीं है। ऐसे में क्या यह मान लिया जाय कि कश्मीर की मौजूदा स्थिति को देश के उस वर्ग ने भी मन से स्वीकार कर लिया है, जिनके राजनीतिक अस्तित्व और एक खास वर्ग के समर्थन के लिए जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति बड़ा मुद्दा रही है। हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के एक चुनावी बयान के बाद लगा कि अनुच्छेद 370 को हटाना बड़ा मुद्दा बन सकता है। लेकिन जिस तरह भारतीय जनता पार्टी और गृहमंत्री अमित शाह इसे लेकर कांग्रेस पर हमलावर हुए, उसकी वजह से खुद कांग्रेस ही इस मामले को तूल देने से बच रही है।
जयपुर की एक सभा में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कह दिया कि संविधान के अनुच्छेद 371 को हटाना मोदी-शाह का गेम प्लान है। यहां जान लेना चाहिए कि अनुच्छेद 371 क्या है? दरअसल अनुच्छेद 371 के प्रावधान राज्य विशेष को विशेष अधिकार देते हैं, जिनके तहत राज्य अपने कुछ धार्मिक और सामाजिक समूहों को प्रतिनिधित्व देने के साथ ही सरकारी हस्तक्षेप के बिना स्वायत्त तरीके से अपनी परंपराओं आदि को निभा सकते हैं। संविधान के इस अनुच्छेद के तहत नगालैंड, सिक्किम, मिजोरम, मणिपुर, अरूणाचल प्रदेश और लद्दाख को अपने धार्मिक और सामुदायिक मामलों में स्वायत्ता मिली हुई है। जैसे ही खरगे ने यह बयान दिया, बीजेपी ने इन राज्यों के संदर्भ में कांग्रेस की मंशा पर सवाल उठा दिया अमित शाह ने तो यहां तक कह दिया कि कांग्रेस की ऐसी गलतियों से देश दशकों से परेशान है। बाद में कांग्रेस की ओर से सफाई पेश की जाती रही। जयराम रमेश ने सफाई देते हुए यहां तक कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष के बयान का अभिप्राय अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने को लेकर था। लेकिन बीजेपी ने कांग्रेस को राज्यों की विशेष स्वायत्ता के मुद्दे पर कांग्रेस की मंशा को घेरने की कोशिश जारी रखी।
बीजेपी के पलटवार के चलते चाह कर कांग्रेस अनुच्छेद 370 को मुद्दा बनाने में कामयाब नहीं रही।
वैसे कांग्रेस ने अनुच्छेद 370 के मुद्दे को लेकर अपने घोषणा पत्र में चुप्पी साध रखी है। कांग्रेस का ने अपने घोषणा पत्र को ‘न्याय पत्र -2024’ नाम दिया है। इस न्याय पत्र में सिर्फ अनुच्छेद 370 ही नहीं, भारतीय जनता पार्टी के कोर मुद्दे समान नागरिकता संहिता के मुद्दे पर भी चुप्पी साध रखी है। भाजपा के लिए अनुच्छेद 370 का खात्मा पुराना मुद्दा रहा है। पार्टी इसके लिए कांग्रेस और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू की नीतियों को जिम्मेदार ठहराती रही है। जनसंघ के जमाने से पार्टी इस अनुच्छेद का विरोध करती रही है। भारतीय जनता पार्टी का गठन छह अप्रैल 1980 को हुआ। लेकिन अपने चुनाव घोषणा पत्र में पार्टी ने अनुच्छेद 370 को हटाने का मुद्दा साल 1984 के आम चुनावों में किया था। इसके बाद से तकरीबन हर चुनाव में पार्टी का यह प्रमुख मुद्दा रहा है। साल 2014 में जब पार्टी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई तो बहुत लोगों को उम्मीद था कि पार्टी इस अनुच्छेद को अपने पहले ही कार्यकाल में खत्म कर देगी। लेकिन मोदी सरकार ने इसे अपने दूसरे कार्यकाल की शुरूआत में ही खत्म कर दिया। जब अगस्त 2019 में संसद ने इस अनुच्छेद को निष्प्रभावी किया, तब कांग्रेस और वामपंथी दलों ने इसका पुरजोर विरोध किया था।
कांग्रेस के तत्कालीन सांसद कपिल सिब्बल ने तो राज्यसभा में इस प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सरकार को एक तरह से चेतावनी दी थी कि इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी भी गई। इस याचिका के प्रमुख चेहरों में कपिल सिब्बल भी थे। कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी जैसे दलों को उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने वाले विधेयक को खारिज कर देगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने संसद द्वारा पारित अधिनियम को खारिज करने से इनकार कर दिया। ऐसे में कांग्रेस जैसे दलों के सामने सबसे बड़ी जनता की अदालत में इस मुद्दे को ले जाने का विकल्प मौजूद था। 2019 के बाद हुए हर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेतृत्व ने अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर राज्य के विशेष दर्जे की बहाली को लेकर बयान दिए। कांग्रेस नेतृत्व तो कहता रहा है कि अगर पार्टी सत्ता में आई तो वह जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा बहाल करेगी। इसी वजह से उम्मीद जताई जा रही थी कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र में अनुच्छेद 370 की बहाली की चर्चा तो होगी ही। लेकिन कांग्रेस ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली है।
अनुच्छेद 370 को हटाने वाले अधिनियम पर चर्चा के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के हिस्से के लिए अपनी जान देने वाला बहुचर्चित बयान दिया था। तब विपक्षी दलों के एक हिस्से ने इस बयान की हंसी उड़ाई थी। तब से लेकर मौजूदा चुनावों के पहले तक जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे के समर्थक दल मौजूदा सरकार को कठघरे में खड़ा करते रहे। ऐसे में मौजूदा चुनाव में इस मुद्दे के उछलने की बहुत संभावना थी। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है। कांग्रेस की कोशिश भी कामयाब होती नजर नहीं आ रही है। मीडिया के एक वर्ग की ओर से भी इस मुद्दे को हवा देने की कोशिश हो रही है। चुनावी कवरेज के बहाने इस मुद्दे पर कश्मीर घाटी के लोगों से सवाल पूछे जा रहे हैं। लेकिन कश्मीरी अवाम की ओर से इसे लेकर कोई उत्साह नहीं दिख रहा है। बल्कि लोगों को विकास की बातें पसंद आ रही हैं। कश्मीर घाटी से अब महिलाओं की सेना, पुलिस या प्रशासनिक अधिकारियों के रूप में कामयाबी को तवज्जो मिल रही है। सीमा पार पाकिस्तान में भी कश्मीर में जारी विकास की गतिविधियों की सकारात्मक चर्चा हो रही है। शायद यही वजह है कि इस बार के चुनावों में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे की बहाली को लेकर कोई विशेष चर्चा होती नहीं दिख रही है। जम्मू-कश्मीर की राजनीति में सक्रिय रहे दल नेशनल कांफ्रेंस हों या पीडीपी, वे जरूर इस मसले को उछालने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें भी अहमियत मिलती नहीं दिख रही है। एक अखबार को दिए साक्षात्कार में जम्मू-कश्मीर के महाराजा रहे डॉक्टर कर्ण सिंह भी इस मुद्दे पर बोलने की बजाय कश्मीर में अमन-चैन और विकास की गति को बढ़ावा देने की बात कर चुके हैं।
जम्मू-कश्मीर और अनुच्छेद 370 पर राजनीति और आम लोगों के इस बदले रूख का असर भावी इतिहास पर पड़े बिना नहीं रहेगा। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इस मसले को तूल देने की कोशिश करने वाली पाकिस्तान जैसी ताकतें भी इससे हतोत्साहित होंगी। जिसकी वजह से कश्मीर में जारी विकास की गतिविधियों को रफ्तार मिलेगी और आतंकी ताकतों का मनोबल टूटेगा। जब हालात इस तरह बदलते हैं तो सियासत को इसका श्रेय मिलता ही है। कश्मीर में बहती इस नई हवा का श्रेय आने वाले दिनों में अगर मोदी-शाह की जोड़ी को मिले तो हैरत नहीं होनी चाहिए।