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केरल सरकार द्वारा ‘विदेश सचिव’ नियुक्ति को लेकर विवाद

  • डा समन्वय नंद
    केरल में कम्युनिस्ट सरकार अलग- अलग समय पर विभिन्न विवादों को लेकर हमेशा चर्चा में रहती आयी है। लेकिन इस बार एक अलग तरह के मुद्दे को लेकर केरल सरकार विवादों में है। केरल सरकार ने हाल ही में ए महिला अधिकारी के. वासुकी को ‘विदेश सचिव’ के पद पर नियुक्ति प्रदान करे के बाद इस पर विवाद शुरु हो गया है।
    इस नये नियुक्ति के बाद चारों और से सवाल उठाये गये। इस बात पर बहस शुरु हो गई कि क्या कोई राज्य किसी को विदेश सचिव के पद पर नियुक्ति दे सकती है। संविधान में इसे लेकर क्या प्रावधान है। संविधान में इसे लेकर स्पष्ट व्यवस्था है। भारत के संविधान में राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार के मध्य मुद्दों अथवा अधिकारों के बंटवारे के लिए विभिन्न अनुसूचियाँ परिभाषित की गयी हैं। भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची राज्यों और संघ के मध्य के अधिकारों को उल्लिखित करती है। इसमें तीन सूचियाँ हैं: 1) संघ सूची, 2) राज्य सूची और 3) समवर्ती सूची। संघ सूची के अंतर्गत आने वाले विषयों पर किसी भी प्रकार का नियम केन्द्र सरकार ही बना सकती है। इसी तरह राज्य सूची के अंतर्गत आने वाले विषयों पर नियम कानून बनाने का अधिकार राज्यों का होता है। समवर्ती सूची यानी कनकरेंट लिस्ट के अंतर्गत आने वाले विषयों पर केन्द्र व राज्य सरकार कानून बना सकते हैं। संविधान निर्माताओं ने केन्द्र व राज्य सरकारों के अधिकारों का स्पष्ट विभाजन किया है।
    विदेश मामला या फिर अन्य देशों के साथ संबंध का मामला संघ सूची में शामिल है । इसका सरल मतलब यह है कि इस मामले में केन्द्र सरकार ही कोई निर्णय ले सकती है । केन्द्र सरकार ही विदेश मंत्रालय में किसी प्रकार की नियुक्ति कर सकती है । राज्य सरकार के पास इस तरह के नियुक्ति देने का कोई अधिकार ही नहीं है। इस कारण केरल सरकार द्वारा विदेश सचिव पर नियुक्ति को संविधान का उल्लंघन माना जा रहा है ।
    केरल सरकार को इस तरह के नियुक्ति को चारों ओर से विरोध होना था और हुआ भी । सभी ने इसका विरोध किया तथा संविधान के प्रावधानों के खिलाफ बताया । विवाद बढता देख केरल सरकार ने इस मामले में स्पष्टीकरण देने का प्रयास किया । केरल सरकार की ओर से कहा गया है कि महिला अधिकारी वासुकी को विदेश सचिव के रुप में नियुक्ति नहीं दी गई है । उन्हें एक्टरनल कोआपरेशन यानी बाहरी सहयोग विभाग की जिम्मेदारी दी गई है । वह भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के साथ विभिन्न विषयों पर चर्चा करेंगी।
    संविधान के बारे में य़ह साधारण सी बात को क्या केरल के कम्युनिस्ट सरकार व मुख्यमंत्री विजयन नहीं जानते थे । विजयन पुराने व अनुभवी राजनेता हैं। केरल में अनेक सालों से मुख्यमंत्री हैं । इसलिए उन्हें यह बात नहीं मालूम थी, ऐसा सोचना ठीक नहीं होगा। तो फिर उन्होंने ऐसा क्यों किया था ? क्या इसके पीछे कोई विशेष कारण है ?
    विपक्षी भाजपा दवारा केरल के विजयन सरकार पर इस मामले को लेकर गंभीर आरोप लगाये गये हैं। पार्टी की ओर से कहा गया है कि कम्युनिस्ट सरकार के मुखिया अर्थात पी. विजयन व अन्य नेताओं पर विदेश से सोना स्मगलिंग करने व विदेश से धन एकत्रित करने के ढेरों आरोप हैं । कम्युनिस्ट सरकार के लोग क्या उनके इस गैर कानूनी कार्यों को आसानी से करने के लिए इस तरह का कदम उठाया है ? इस घटना ने इस तरह के सवालों को जन्म दिया है।
    केरल के कम्युनिस्ट सरकार से जुडे लोगों पर इस तरह के क्या क्या आरोप हैं और वे कैसे जांच का सामना कर रहे हैं, उस पर ब एक बार नजर डालते हैं। केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन पर युएई कनसुलेट के जरिये सोने की स्मगलिंग व विदेशों से पैसे इकट्ठा करने का गंभीर आरोप है । उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी तथा विधानसभा अध्यक्ष पर भी प्रोटोकाल का उल्लंघन को लेकर शिकायतें हैं तथा विभिन्न एजेंसियों द्वारा इनकी जांच भी की जा रही है । केवल इतना ही नहीं पूर्ववर्ती विजयन सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री थामस आईजैक के कार्यों को लेकर प्रवर्तन निर्देशालय द्वारा जांच जारी है । उन पर एफसीआरए कानून का उल्लंघन व अन्य आरोपों में जांच चल रही है ।
    इस तरह के आरोपों से घिरने वाली केरल की कम्युनिस्ट सरकार के इस कदम पर सवाल उठना स्वाभविक है। इसमें यह सवाल उठ रहा कि क्या विदेश सचिव की नियुक्ति खाड़ी देशों में मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन व उनके सहयोगियो के वित्तीय लेन-देन और हितों की सुरक्षा के लिए की जा रही थी? क्या इसके कारण केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने पहले विदेश सचिव व बाद में विवाद बढने के बाद एक्सटर्नल कोआपरेशन के पद पर नियुक्ति दी है । य़ह एक गंभीर मामला है तथा इसकी पूरी जांच किये जाने की आवश्यकता है ।

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