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- रमेश शर्मा
भारतीय स्वाधीनता संघर्ष में अनंत वीरों का बलिदान हुआ है। कुछ के तो नाम तक नहीं मिलते और जिनके नाम मिलते हैं उनका विवरण नहीं मिलता। नासिक में ऐसे ही क्रांतिकारियों का एक समूह था जिनमें तीन को फांसी और दो को आजीवन कारावास का वर्णन मिलता है। अन्य किसी का नहीं। इसी समूह में तीन बलिदानी अनंत लक्ष्मण कान्हेरे, कृष्ण गोपाल कर्वे और विनायक नारायण देशपांडे थे जिन्हें 19 अप्रैल 1910 में फांसी दी गई। इनमें विनायक नारायण देशपांडे और कृष्ण गोपाल कर्वे का विवरण न के बराबर मिलता है। उन दिनों नासिक में एक कलेक्टर जैक्सन आया। वह संस्कृत और भारतीय ग्रंथों का कथित जानकार था। वह चर्च से जुड़ा था। उसने प्रचारित किया कि वह पूर्व जन्म में संत था। उसका लक्ष्य भारतीय जनजातियों और अनुसूचित समाज पर था। वह ग्रंथों पर आधारित कथाओं के उदाहरण देता और उन्हें प्रभावित करने का प्रयत्न करता। उसके लिये अधिकारियों की एक टीम उस का प्रचार का कार्य कर रही थी। इससे क्षेत्र में सामाजिक दूरियां बढ़ने लगीं और धर्मान्तरण होने लगा। मतान्तरण रोकने और समाज में स्वत्व जागरण के लिये गणेश सावरकर जी ने युवकों का एक समूह तैयार किया। इसमें अनंत कान्हेरे, श्रीकृष्ण कर्वे और विनायक देशपांडे जैसे अनेक ओजस्वी युवक थे। जो सामाजिक और सांस्कृतिक जागरण में लग गये। गणेश सावरकर और इस टोली के काम से कलेक्टर सतर्क हुआ। तभी गणेश सावरकर जी ने कवि गोविंद की राष्ट्रभाव वाली रचनाएं संकलित कीं और सोलह रचनाओं का संकलन प्रकाशित कर दिया। कलेक्टर को यह पुस्तक बहाना लगी और राष्ट्रद्रोह के आरोप में सावरकर जी बंदी बना लिये गये।
इनमें अनंत कान्हेरे का जन्म 7 जनवरी 1892 को रत्नागिरी जिले के खेत तालुका के एक छोटे से गांव अयानी में हुआ था। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा निजमाबाद में और उनकी अंग्रेजी शिक्षा औरंगाबाद में हुई। 1908 में कान्हेरे औरंगाबाद लौट आए जहां उन्हें गंगाराम नामक एक मित्र ने क्रांतिकारी आंदोलन से जोड़ा था। दूसरे क्रांतिकारी कृष्णजी गोपाल कर्वे का 1887 में हुआ था । उन्होंने बीए ऑनर्स क पूरा किया था मुंबई विश्वविद्यालय में एलएलबी में प्रवेश ले लिया था। वे नासिक में अभिनव भारत से जुड़े थे। जैक्सन की हत्या की योजना बनी तो इसमें शामिल हो गये । तीसरे क्रांतिकारी का परिचय बहुत ढूँढने पर भी न मिला पर फांसी की सूची में उनका नाम है।
बॉम्बे कोर्ट में मुकदमा चला 29 मार्च 1910 को इन तीनों क्रांतिकारियों को हत्या का दोषी पाकर फांसी की सजा सुनाई गई और 19 अप्रैल 1910 को ठाणे जेल में तीनों को फांसी दे दी गई। अधिकारियों ने तीनों के शव परिवार को भी नहीं सौंपे। जेल में ही जला दिया और अवशेष समन्दर में फेंक दिये । जैक्सन हत्याकांड में दो अन्य क्रान्तिकारियों को आजीवन कारावास मिला। जिनकी जेल की प्रताड़नाओं से बलिदान हुआ।