Home » भू-विरासत स्थल का सरंक्षण आवश्यक

भू-विरासत स्थल का सरंक्षण आवश्यक

  • प्रो. रवीन्द्र नाथ तिवारी
    सामाजिक विविधता के समान ही भारत की भू-विविधता, जो पर्यावरण की भूवैज्ञानिक और भौतिक विशेषताओं की एक श्रृंखला को समाहित करती है, अद्वितीय है। देश में विशाल पर्वत, गहरी घाटियाँ, सुंदर आकार की भू-आकृतियाँ, व्यापक समुद्र तट, भूतापीय रूप से तप्त खनिज झरने, सक्रिय ज्वालामुखी, विभिन्न प्रकार की मिट्टी, खनिजों से समृद्ध क्षेत्र और जीवाश्मों से भरपूर विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण स्थान हैं। भूवैज्ञानिक अनुसंधान के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में पहचाने जाने वाले भारत को लंबे समय से पृथ्वी की संरचना का अध्ययन करने के लिए एक प्राकृतिक प्रयोगशाला माना जाता है। जैव विविधता और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए भूवैज्ञानिक विरासत का संरक्षण भी अतिमहत्वपूर्ण है। वर्तमान में, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) भू-विरासत स्थलों / राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक स्मारकों की घोषणा तथा सुरक्षा एवं रखरखाव करता है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने शिवालिक जीवाश्म उद्यान, हिमाचल प्रदेश; स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल उद्यान, झारमार्कोट्रा रॉक फॉस्फेट डिपॉज़िट, उदयपुर ज़िला; आकल जीवाश्म उद्यान, जैसलमेर सहित 32 भू-विरासत स्थलों की घोषणा की है। इनमें राजस्थान में 10, आंध्र प्रदेश में 4, कर्नाटक में 4, तमिलनाडु में 4, केरल में 2 और गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, नागालैंड और सिक्किम में एक-एक भूवैज्ञानिक स्थल स्थित हैं। मध्य प्रदेश में घुघवा जीवाश्म उद्यान, डिंडोरी; डायनासोर जीवाश्म राष्ट्रीय उद्यान धार और विंध्य क्षेत्र के स्ट्रामेटोलाइट युक्त स्थल संभावित भू-विरासत स्थल हो सकते हैं। भू-विविधता के सरंक्षण और जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 6 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय भू-विविधता दिवस मनाया जाता है जिसकी घोषणा यूनेस्को द्वारा 2021 में 41वें आम सम्मेलन में की गई थी।
    भारत की चट्टानें और क्षेत्र उन भौगोलिक विशेषताओं और परिदृश्यों को संरक्षित करते हैं जो विवर्तनिक और जलवायु परिवर्तन के विभिन्न चक्रों के कारण कई अरब वर्षों में विकसित हुए हैं, जिससे वे देश की विरासत का अभिन्न अंग बन गए हैं। इसका एक उदाहरण गुजरात के कच्छ क्षेत्र में डायनासोर के जीवाश्मों की खोज है, जिसे जुरासिक पार्क के हमारे अपने संस्करण के रूप में देखा जा सकता है। इसी तरह, तमिलनाडु में तिरुचिरापल्ली क्षेत्र, जो कभी मेसोज़ोइक युग के दौरान एक महासागर था, में लगभग 60 मिलियन वर्ष पहले क्रिटेशियस काल के समुद्री जीवाश्मों का एक समृद्ध संग्रह मौजूद है।
    भू-विरासत स्थल प्राकृतिक खतरों, भूजल संसाधनों, मिट्टी प्रक्रियाओं, जलवायु परिवर्तन और जीवन के विकास जैसी विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं के बारे में हमारी समझ को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अतिरिक्त, वे पृथ्वी के इतिहास, खनिजों और ऊर्जा जैसे प्राकृतिक संसाधनों के बारे में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त, ये स्थल वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए अपार संभावनाएं रखते हैं, बाहरी शैक्षिक स्थानों के रूप में कार्य करती हैं, सार्वजनिक जागरूकता और विज्ञान के विकास में योगदान देती हैं, मनोरंजक अवसर प्रदान करती हैं और स्थानीय समुदायों को आर्थिक लाभ प्रदान करती हैं।
    भारत सरकार के माइनिंग (खान) मंत्रालय ने मसौदा भू-विरासत स्थल और भू-अवशेष (संरक्षण एवं रखरखाव) विधेयक, 2022 अधिसूचित किया है। इस विधेयक का उद्देश्य भूवैज्ञानिक अध्ययन, शिक्षा, अनुसंधान और जागरूकता बढ़ाने के लिये भू-विरासत स्थलों एवं राष्ट्रीय महत्त्व के भू-अवशेषों की घोषणा, सुरक्षा, संरक्षण तथा रखरखाव करना है। यह मसौदा विधेयक भू-विरासत स्थलों को “भू-अवशेषों और घटनाओं, स्ट्रैटिग्राफिक प्रकार के वर्गों, भूवैज्ञानिक संरचनाओं एवं गुफाओं सहित भू-आकृतियों, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय हित की प्राकृतिक रॉक-मूर्तियों वाली स्थलों” के रूप में परिभाषित करता है। इसमें इन स्थलों से लगे हुए भूमि का ऐसा हिस्सा शामिल भी है, जो उनके संरक्षण अथवा ऐसे स्थलों तक पहुँचने के लिये आवश्यक हो सकता है। इस मसौदे में भू-अवशेष को भूवैज्ञानिक महत्व या रुचि के किसी भी अवशेष या सामग्री के रूप में परिभाषित किया गया है, जैसे तलछट, चट्टानें, खनिज, उल्कापिंड, या जीवाश्म। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) के पास संरक्षण और रखरखाव के उद्देश्य से भूमि अवशेषों का अधिग्रहण करने की शक्ति होगी।
    भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण वर्तमान में देश में 100 से अधिक भू-विरासत स्थलों के विकास पर कार्य कर रहा है। भू-विविधता को जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं, शहरीकरण और प्रकृति के अत्यधिक दोहन जैसे विभिन्न खतरों का सामना करना पड़ रहा है। भू-विविधता के सरंक्षण के लिए यूनेस्को वैश्विक भू-पार्कों के विकास पर ध्यान देना आवश्यक है। ये पार्क जैव विविधता, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत, कला और इतिहास और जल विविधता सहित कई विशेषताओं को शामिल करते हैं। प्रकृति में छिपे भूवैज्ञानिक खजाने को बढ़ाने और संरक्षित करने के लिए, हम जो प्रकृति से प्राप्त करते हैं उससे अधिक वापस देने की आवश्यकता है। भू-विविधता हमें पृथ्वी के इतिहास के विभिन्न कालखंडों में पृथ्वी की उत्पत्ति, जीवन की उत्पत्ति एवं विकास, जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकी के प्रभाव के बारे जानकारी प्रदान करती है, साथ ही प्री कैंब्रियन से आद्य नूतन तक लगभग चार अरब वर्ष के भूवैज्ञानिक इतिहास पर भी प्रकाश डालती है।

Swadesh Bhopal group of newspapers has its editions from Bhopal, Raipur, Bilaspur, Jabalpur and Sagar in madhya pradesh (India). Swadesh.in is news portal and web TV.

@2023 – All Right Reserved. Designed and Developed by Sortd