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पर्यावरण पर मंडराते खतरे के बादल

  • नृपेंद्र अभिषेक नृप
    ‘पृथ्वी सभी मनुष्यों की ज़रुरत पूरी करने के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करती है , लेकिन लालच पूरा करने के लिए नहीं।’ महात्मा गाँधी का यह कथन आज भी चरितार्थ है। दुनियां को तबाह कर देने वाली समस्याओं में से ही एक है पर्यावरण समस्या जो मानव जीवन की दुर्दशा लिख रहा है और पृथ्वी का भविष्य अंधकार में करने पर उतारू है। पर्यावरण एक ऐसी समस्या है जो स्थानीय नहीं बल्कि विश्वव्यापी समस्या बन कर मानव जीवन में चुनौती बन कर खड़ी है, पूरा विश्व इस ज्वलंत समस्या के विनाशकारी प्रभाव से चिंतित है। हाल ही में भारत की पर्यावरण स्थिति रिपोर्ट 2023 को ज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र तथा डाउन टू अर्थ (DTE) पत्रिका ने जारी किया है, जिसमें जलवायु परिवर्तन, कृषि एवं उद्योग के साथ-साथ जल, प्लास्टिक, वन एवं जैवविविधता सहित विभिन्न विषयों के आकलन की एक विस्तृत शृंखला शामिल है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में 30,000 से अधिक जल निकायों पर अतिक्रमण किया गया है और भारत प्रतिदिन 150,000 टन नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (एम. एस. डब्ल्यू .) उत्पन्न कर रहा है, जिनमें से आधे से अधिक या तो लैंडफिल में फेंक दिया जाता है या अनुपयुक्त पड़ा रहता है। भारत में वायु प्रदूषण के कारण जीवन की औसत अवधि 4 वर्ष और 11 माह कम हो जाती है। वायु प्रदूषण से संबंधित स्वास्थ्य मुद्दों के कारण शहरी क्षेत्र की तुलना में ग्रामीण भारत में जीवन की औसत अवधि के अधिक वर्ष कम हो रहे हैं। पिछले कुछ दशकों से जंगलों का विनाश तेजी से किया जा रहा है, हवा और पानी में विषैली गैंसों और गंदगी झोंकी जा रही है। ऐटमी हथियारों से वातावरण में रेडियोधर्मी विकिरण और गरमी घोली जा रही है। भूमिगत संसाधनों की खोज के लिए धरती का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है। दशकों से वैज्ञानिक और पर्यावरणशास्त्री प्रकृति की इस दुर्दशा के खतरनाक नतीजों की तरफ संकेत करते आए हैं पर उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।
    धरती पर आच्छादित वनों का सब से बड़ा मक़सद पर्यावरण संतुलन को डगमगाने से बचाना ही है। लेकिन जिस रफ़्तार से वनों का विनाश हो रहा है, उससे पर्यावरण संकट बढ़ता ही जा रहा है। यूके स्थित फर्म यूटिलिटी बिडर के मुताबिक वन विनाश के मामले में भारत, ब्राजील के बाद दूसरे स्थान पर है, जहां पिछले पांच वर्षों में 668,400 हेक्टेयर में फैले जंगल काट दिए गए हैं। मार्च 2023 में जारी इस रिपोर्ट में डेटा एग्रीगेटर साइट अवर वर्ल्ड इन डेटा द्वारा 1990 से 2000 और 2015 से 2020 के लिए जारी आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार जहां भारत ने 1990 से 2000 के बीच अपने 384,000 हेक्टेयर में फैले जंगलों को खो दिया था। वहीं 2015 से 2020 के बीच यह आंकड़ा बढ़कर 668,400 हेक्टेयर हो गया है। मतलब की इन दो समयावधियों के दौरान भारत में वन विनाश में 284,400 हेक्टेयर की वृद्धि देखी है जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। देखा जाए तो इसके लिए कहीं न कहीं देश में बढ़ती आबादी जिम्मेवार है जिसकी लगातार बढ़ती जरूरतों के लिए तेजी से जंगल काटे जा रहे हैं।
    प्रकृति खुद से छेड़छाड़ तो बरदाश्त कर लेती है, पर एक हद तक। लेकिन इस के बाद भी मनुष्य उस के दोहन से बाज नहीं आता, परंपरानुसार विकास और प्रकृति का आंकड़ा छत्तीस का ही रहा है, विकास में जितनी तेजी आई, प्राकृतिक समीकरणों पर उतना ही विनाश हुआ, मनुष्य भी प्रकृति की बहुत छोटी सी रचना हैं, पर विकास ने आज उसे इतना क्षमतावान बना दिया है कि वह विशाल, अनंत प्रकृति को चुनौती दे सकता है, उसे नुकसान पहुंचा सकता है। प्रकृति का सब से बड़ा वरदान है जीवनदायिनी वायु, इसमें गैंसें इस तरह सन्तुलित हैं कि वे धरती पर रहने वाले जीव और वनस्पति जगत दोनों को उन की जरूरत के हिसाब से उपलब्ध हो जाती हैं और इस्तेमाल के बावजूद उन का अनुपात मनुष्य की तरफ से झोंके गए प्रदूषण के बिना लगभग स्थिर रहता है, लेकिन आज उद्योगों आदि की धौंकनियों से निकलने वाली Co2, Clf कार्बन और दूसरी गैसें वायु में घुल कर संतुलन बिगाड़ रही हैं। इस कृत्रिम गैंसों से वातावरण का तापमान बढ़ जाता है, वैज्ञानिक इसे ग्रीन हाउस प्रभाव भी कहते है, यह ग्रीन हाउस प्रभाव आज एक बड़ा खतरा बन चुका हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग के असर के चारों ओर ही जलवायु नीति की बहस तय होती है और इसके ख़तरों पर विशेषज्ञ हमें लंबे समय से चेतावनी देते रहे हैं । ‘ग्लोबल एनुअल टू डिकेडल क्लाइमेट अपडेट, 2023-2027’ शीर्षक से डब्ल्यूएमओ की नई रिपोर्ट में अगले पांच वर्षों के लिए जो भविष्यवाणियां की गई हैं, वे भयानक हैं : जैसे नए रिकॉर्ड तक तापमान का बढ़ना, समुद्र का गर्म होना, समुद्री जल का अम्लीकरण, ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना, समुद्र स्तर में वृद्धि, और मौसम में चरम स्तर तक परिवर्तन। रिपोर्ट में इस तरह के चरम परिवर्तनों की 98 प्रतिशत तक आशंका जताई गई है।

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