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स्वच्छता ही सेवा एक अतुलनीय वंदन

  • डॉ. सत्येन्द्र शरण
    स्वच्छता मनुष्याणां जीवने महत्वपूर्णा अस्ति ।यत्र स्वच्छता वर्तते तत्र लक्ष्मी भगवती निवसति, इति मन्यते।केचन जनाः स्वच्छतां न पालयन्तिसंस्कृत का यह श्लोक किसी भी शुभ कार्य या पूजा पाठ के शुरू करने से पहले अवश्य रूप से पढ़ा जाता है। इसका मूल आशय यह है कि स्वच्छता मनुष्य के जीवन का महत्वपूर्ण भाग है। जहां स्वच्छता होती है वहीं माता लक्ष्मी का वास होता है। माता लक्ष्मी को स्वच्छता ही पसंद है। इसी विश्वास को ध्यान में रखकर दीपावाली के पूर्व घरों में और आसपास विशेष रूप से सफाई की जाती है। स्वच्छता के चलते ही बीमारियां फैलाने वाले जीव नहीं पनपते और आर्थिक वैभव में विस्तार होता है।
    गणेश पुराण ,पतंजलि योग सूत्र, ऋग्वेद, अर्थववेद, दक्ष स्मृति जैसे प्राचीन ग्रंथों में स्वच्छता अपनाने के बारे में विशेष उल्लेख मिलता है। महात्मा गांधी ने जीवनकाल में कई बार स्वच्छता अपनाने के बारे में विशोष जोर दिया। गांधी जी ने कहा था स्वच्छता स्वतंत्रता से अधिक महत्वपूर्ण है। उनका सपना सभी के लिये सम्पूर्ण स्वच्छता था। नवजीवन समाचार पत्र के 2 नवंबर 1919 के अंक में प्रकाशित उनके विचार के अनुसार ‘‘ कोई भी व्यक्ति रास्ते पर नहीं थूके अथवा अपनी नाक साफ न करे, कुछ मामलों में थूक इतना नुकसानदायक होता है कि इसके जीवाणु दूसरे व्यक्ति को तपेदिक से संक्रमित कर देते हैं। कुछ स्थानों में सड़क पर थूकना एक अपराध माना जाता है जो व्यक्ति पान पत्ते अथवा चबाकर थूकते हैं, उनके पास दूसरे व्यक्तियों की भावनाओं के लिये कोई स्थान नहीं है। थूक-लार, नाक की बलगम आदि को भी मिट्टी से ढक देना चाहिये, गांवों और आवास स्थलों के आसपास कोई गड्ढा न हो, जिसमें पानी जमा हो , जहां जल जमाव नहीं होता है, वहां मच्छर नहीं होते, वहां मलेरिया के मामले कम पाये जाते है। एक समय में दिल्ली के आसपास जल-जमाव होता था गडढे भरे जाने के बाद मच्छर काफी कम हो गये और इसके फलस्वरुप मलेरिया के मामले भी कम हो गये।’’
    नवजीवन समाचार पत्र के 24 मई 1925 के अंक में प्रकाशित उनके एक अन्य विचार के अनुसार ‘‘ हमारे शौचालय की स्थिति और जहां-तहां तथा प्रत्येक स्थान पर मल त्याग करने की बुरी आदत हमारी अनेक बीमारियों के कारण हैं, इसलिये मैं मल-मूत्र त्याग के लिये स्वच्छ स्थान के साथ-साथ उस साफ-सुथरी वस्तुओं के इस्तेमाल में विश्वास करता हूं, मैंने इसे अपना लिया है और यह चाहता हूं कि अन्य सभी व्यक्ति भी इसे अपनायें। मुझमें यह आदत इतनी इतनी पक्की हो चुकी है मैं चाहकर भी इसे नहीं बदल सकता, न ही इसे बदलना चाहता हूं।’’
    महात्मा गांधी के इस मर्म को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने बहुत पहले ही मन में रख लिया था और जैसे ही प्रधानमंत्री बने तो 15 अगस्त 2014 को लाल किले की प्राचीर से स्वच्छ भारत मिशन की घोषणा की । यह स्वच्छता के लिये एक स्पष्ट सन्देश दिया था। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के इस सन्देश का नागरिकों ने स्वागत किया और स्वच्छता के लिये सक्रिय हो गये। वे इतने प्रेरित हुये कि इससे पहले जो कचरा जगह-जगह पड़ा मिलता था अब वह हर जगह नहीं मिलता । आज दुकानों और घरों में कूडादान मिलता है। छोटी छोटी दुकानों में ग्राहक और दुकानदार छोटा सा कचरा भी कूड़ेदान में ही डालने में सुख का अनुभव करते हैं।
    कचरा कहीं भी फेंकने की आदत अब स्वयमेव खत्म हो गई है और स्वच्छता एक आदत बन गई है। इस स्वच्छता की आदत को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने एक आंदोलन का रुप दिया हैं। अब स्वयं के कचरे को कूड़ेदान में डालने के स्वभाव से ही स्वच्छता पूरी नहीं होगी। अन्यत्र मिलने वाले कचरे को साफ करने में प्रत्येक नागरिक की भागीदारी से ही स्वच्छता की मंशा पूरी होगी । प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं आगे बढ़कर सार्वजनिक स्थान से कचरा उठाकर सफाई में अपनी भूमिका निभा कर एक आदर्श प्रस्तुत किया है।
    देश के नागरिकों ने भी आगे बढ़कर अपनी भागीदारी निभाना आरम्भ कर दिया है। स्वच्छता आदोलन में भागीदारी के लिये प्रधानमंत्री की अपील का जनमानस स्वागत किया है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने समय समय पर स्वच्छता को एक आंदोलन बनाने और इसके लिये अभिनव प्रयासों के लिये पहल करने वालों की तारीफ की और उनसे बात भी की । इसका परिणाम यह हुआ कि करोड़ों लोग स्वच्छता आंदोलन के लिये आगे आये और गांव, कस्बे, मुहल्ले और षहर में सफाई की बयार चल पड़ी । प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ओजपूर्ण उदबोधन से प्रेरित होकर अब लोग स्वयमेव स्वच्छता को गौरव मानने लगे हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने लोकप्रिय कार्यक्रम ‘‘मन की बात’’ में देशवासियों से बात करते हुये 26 जून 2016 को महाराष्ट्र के पुणे जिले के चिंचवड़ के निवासी चंद्रकान्त कुलकर्णी का जिक्र करते हुये कहा कि जिन्हें सिर्फ 16 हजार रुपये की पेंशन मिलती है वह अपनी पेंशन से हर पांच हजार रुपये स्वच्छता अभियान के लिये स्वेच्छा डोनेट करना चाहते है और इतना ही नहीं उन्होंने मुझे 52 पोस्ट-डेटेड चेक भेज दिये हैं।
    स्वच्छता अभियान से जुड़े हुए लोगों के लिये चंद्रकान्त कुलकर्णी से बड़ा उत्तम उदाहरण नहीं हो सकता। ’’ इसी क्रम में अक्टूबर 2017 में ‘मन की बात’ कार्यक्रम में एक एनजीओ द्वारा स्वच्छता के लिये किये गये प्रयासों का उल्लेख किया था। उन्होंने कहा कि ‘‘इकोलॉजिकल प्रोटेक्शन ऑर्गनाइजेशन नाम के एक एनजीओ ने चंद्रपुर किले में सफाई का अभियान चलाया। उन्होंने सफाई अभियान से ‘पहले और बाद में’ शीर्षक से फोटो मुझे भेजे हैं। स्वच्छता का ये भगीरथ प्रयास सौन्दर्य, सामूहिकता और सातत्यता का एक अद्भुत उदाहरण है।’’ (क्रमशः)

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