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चीन को कूटनीतिक तरीके से सबक सिखाना होगा!

  • डॉ. अनिल कुमार निगम
    भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव बना हुआ है। भारत और चीन के बीच हुई 19 वीं दौर की वार्ता के बावजूद दोनों के बीच सीमा विवाद का कोई समुचित हल नहीं निकल सका है।पिछले कुछ वर्षों में भारत और चीन के रिश्ते ख़राब रहे हैं। भारत की सीमा में चीनी सैनिकों की घुसपैठ बढ़ने से दोनों देशों के बीच सीमा पर कई इलाकों में विवाद कायम है। वहीं चीन ने जी-20 के लेटरहेड में प्रयोग होने वाले संस्‍कृत भाषा के श्‍लोक ‘‘वसुधैव कुटुम्‍बकम्ा’’ पर आपत्ति जताई है।
    हाल ही में भारत-चीन के बीच कोर कमांडर स्‍तर की 19 वें दौर की बैठक चुशुलमोल्‍डो में आयोजित की गई। वार्ता शांतिपूर्ण रही। भारत ने बैठक में देपसांग और डेमचोक समेत अन्‍य स्‍थानों से चीनी सैनिकों की वापसी की बात जोरदार तरीके से रखी लेकिन चीन टस से मस नहीं हुआ और समस्‍या का कोई समाधान नहीं निकल सका।
    दिल्‍ली में 9 और 10 सितंबर को जी-20 की बैठक होना प्रस्‍तावित है। लेकिन भारत और चीन के प्रतिनिधिमंडलों के बीच तनाव बढ़ रहा है। भारत के नेतृत्‍व में शंघाई सहयोग संगठन )एसीओ( की बैठक के पश्‍चात से ही चीन का विरोध तल्‍ख हो रहा है। दरअसल, दोनों देशों के बीच विवाद का प्रमुख कारण दोनों देशों के बीच 3440 किलोमीटर लंबी सीमा है। यह सीमा तीन सेक्टरों में बंटी हुई है। इनमें पूर्वी सेक्टर, पश्चिमी सेक्टर और मध्य सेक्टर शामिल हैं। भारत के पांच राज्यों जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश, चीन के साथ सीमा लगी हुई है। चीन पश्चिमी सेक्टर में जम्मू कश्मीर, शिनजियांग और अक्साई चिन की सीमा वाला इलाके को विवादित कहता रहा है। सीमा को लेकर दोनों देशों के बीच समय-समय पर झड़पें होती रही हैं। चीन अपनी साम्राज्‍यवादी प्रवृत्त्‍िा के चलते लाइन ऑफ एैक्‍चुअल कंट्रोल (एलएसी) का उल्‍लंघन करते हुए भारत की सीमा में प्राय: घुसपैठ करता रहा है।
    गौरतलब है कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है। पिछले वर्ष अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में चीनी सैनिकों ने भारतीय सीमा में घुसपैठ करने की कोशिश की थी। हालांकि भारत के जांबाज सैनिकों ने चीनी सैनिकों को खदेड दिया था। लेकिन यह बात सच है कि चीन तवांग, डोकलाम, गलवान अथवा लद्दाख में अपनी हरकतों से बाज नहीं आता। उसे जैसे ही मौका मिलता है, घुसपैठ की हरकत शुरू कर देता है।
    ध्‍यातत्‍व है कि भारत और पाकिस्‍तान के बीच वर्ष 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध हो चुका है। इस युद्ध में भारत को पराजय का सामना करना पड़ा था। हालांकि अब परिस्‍थतियां बदल चुकी हैं। जब चीनी सैनिकों ने तवांग जिले में घुसने की कोशिश की थी, भारतीय सेना ने उसे नाकाम कर दिया था। इसके पहले भी गलवान घाटी में चीन को मुंह की खानी पड़ी थी। लेकिन यह सच है कि भारत और चीन सीमा पर स्थितियां हर साल बिगड़ती जा रही हैं। यही कारण है कि सीमा पर दोनों देशों के बीच तनाव बना रहता है। सीमा में युद्ध जैसे हालात बने रहते हैं। आज अगर हम दोनों देशों के सैन्‍य बल की तुलना करें तो दोनों देश परमाणु शक्ति संपन्‍न हैं। संख्‍या और संसाधनों के लिहाज से चीन की सेना भारी पड़ सकती है परंतु अगर सेना के मनोबल और शक्ति की बात की जाए तो भारत का पलड़ा चीन से भारी है। लेकिन यहां सवाल यह नहीं है कि कौन सी सेना भारी या कमजोर है। यहां यह समझना जरूरी है कि आज आमने-सामने युद्ध करने के बहुत दूरगामी दुष्परिणाम होते हैं। आज यूक्रेन और रूस के युद्ध के कारण मानवता को होने वाली क्षति और आर्थिक खामियाजा ये दोनों देश ही नहीं बल्कि विश्‍व भी भुगत रहा है। इसलिए आवश्‍यक है कि भारत अपनी कूटनीति और रणनीति में बदलाव करे और चीन को वैश्विक स्‍तर एक्‍सपोज करे। वह विश्‍व को चीन की साम्राज्‍यवादी नीतियों और मंशा का न केवल संदेश दे बल्कि विश्‍व समुदाय को उसके खिलाफ खड़ा कर ऐसा सबक सिखाए ताकि वह एलएसी पर बार-बार अतिक्रमण न करे।

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