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- रमेश सर्राफ धमोरा
भारत में सबसे अधिक आबादी नवयुवकों की है। इसीलिए इसे युवाओं का देश कहा जाता है। युवा शक्ति के बल पर ही भारत विश्व का सिरमौर देश बनने का प्रयास कर रहा है। इतना होने के उपरांत भी आज भारत में बड़ी संख्या में बाल श्रमिक कार्यरत है। जो भारत की युवा शक्ति पर एक बदनुमा दाग लगाते हैं। युवा शक्ति वाले देश में बच्चों से काम करावाना जहां युवा शक्ति का अपमान है वहीं देश की छवि भी खराब करता है। इसके लिए सरकार व समाज को मिलकर देश में बाल मजदूरी की प्रथा को बंद करवाना होगा। तभी सही मायने में विकसित भारत बन पाएगा। बच्चों को जिस उम्र में खेलना-कूदना, पढ़ना चाहिए। उस नन्ही सी उम्र में वह अपने परिवार का पेट पालन के लिए विभिन्न कल-कारखानों, लोगों के घरों पर, खेत खलिहान में व अन्य स्थानों पर काम करते नजर आते हैं। छोटे-छोटे बच्चों को कठोर काम करते देखकर लोगों का हृदय द्रवित हो जाना चाहिए मगर ऐसा होता नहीं है। बहुत से घरों में छोटे बच्चों को घरेलू कामगार के रूप में काम करते देखा जा सकता है। जहां संपन्न परिवारों के बच्चे अच्छे और महंगे स्कूलों में पढ़ते हैं। वही उसी घर में एक गरीब मां बाप का छोटा बच्चा उनके घरेलू काम करता नजर आता है। एक देश में समाज की दो व्यवस्थाएं देखी जा सकती है। यह समाज ही नहीं देश के विकास की राह में भी सबसे बड़ी बाधा है।
बाल मजदूरी उन्मूलन के लिए दुनिया भर में 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है। बाल मजदूरी के खिलाफ जागरूकता फैलाने और 14 साल से कम उम्र के बच्चों को इस काम से निकालकर उन्हें शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से 2002 में द इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन की ओर से इस दिवस की शुरुआत की गई थी। बाल श्रम के खात्मे के लिए आज के दिन श्रमिक संगठन, स्वयंसेवी संगठन और सरकारें तमाम आयोजन करती हैं। इसके बावजूद बाल मजदूरी पर लगाम नहीं लग पा रही है।
बाल श्रम से तात्पर्य ऐसे काम से है जो मानसिक, शारीरिक, सामाजिक या नैतिक रूप से बच्चों के लिए खतरनाक और हानिकारक है। उनकी स्कूली शिक्षा में हस्तक्षेप करता है। उन्हें स्कूल जाने के अवसर से वंचित करने व उन्हें समय से पहले स्कूल छोड़ने के लिए बाध्य करता है।