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पर्यावरण में बदलाव खेती-बाड़ी के लिए खतरे की घंटी

  • मुकेश तिवारी
    बीती सदी में हमारे मुल्क का सालाना औसत तापमान 0,7डिग्री बढ़ गया है,हीट-वेव्ज की संख्या लगभग ढाई गुना बढ़ गई है, जलवायु परिवर्तन का असर ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ता तापमान शहरी क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में 2डिग्री अधिक गर्म हो चुके हैं, खाद्य उपयोग और खाद्य प्रणाली स्थिरता को प्रभावित करेगा कड़वी हकीकत तो यह है कि यदि धरातल का तापमान ऐसे ही बढ़ता रहा तो मनुष्य के समक्ष 2050 तक पेट भरने के लिए वर्तमान दौर में कृषि पर जलवायु परिवर्तन का बुरा असर पड़ रहा है, बदलते मौसम के प्रभाव से सिर्फ फसलों का उत्पादन ही प्रभावित नहीं हो रहा है , बल्कि उनकी गुणवत्ता पर भी असर पड़ रहा है ,यह बात देश की खाद्य सुरक्षा के लिए अहम चुनौती बन रही है, एक अनुमान के अनुसार यदि 2040 तक तापमान मैं 5 डिग्री तक इजाफा होता है तो फसलों की पैदावार पर इसका गंभीर असर पड़ेगा, इस चेतावनी को भविष्य की मह ज संभावना की तरह नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि अगर हम अभी से नहीं चेते तो यह खतरा निश्चित है, इस तरह जल उत्पादन पर पड़ रहा है तो अप्रत्यक्ष प्रभाव आमदनी की हानि और अनाजों की बढ़ती दरों के रूप में परिलक्षित हो रहा है ज्ञात रहे कि कृषि की उत्पादकता बढ़ाने में उपजाऊ मृदा, जल, अनुकूल वातावरण किट पतंगों से बचाव आदि की भूमिका रहती है प्रत्येक फसल को विकसित होने के लिए उचित तापमान उचित प्रकार की मृदा वर्षा तथा आंध्र की जरूरत होती है लेकिन इनमें से किसी भी मान क में फेरबदल होने से फसलों की पैदावार काफी हद तक प्रभावित होती है, जबकि आने वाले दिनों में देश की जनसंख्या में इजाफा होगा, ऐसे में प्रथक प्रथक फसलों की मांग बढ़ेगी ,मगर जलवायु परिवर्तन इस राह में मुश्किल उत्पन्न करेगा, लिहाजा कृषि नीति को जलवायु परिवर्तन के जोखिम से निबटने के लिए फसल उत्पादकता में सुधार और सुरक्षा जाल विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा तभी हम खाद्यान्न असुरक्षा जैसे संकटों से मुकाबला कर सकते हैं ।

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