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सीएए लागू : देश में भ्रम फैलाकर तनाव पैदा करने का षड्यंत्र भी

  • रमेश शर्मा
    भारत में नागरिक संशोधन अधिनियम लागू हो गया। यह केवल उन पर लागू होगा जो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर प्रताड़ना से परेशान होकर भारत में शरण लेना चाहते हैं। इस विधेयक के लागू होने से एक ओर पीड़ित शरणार्थियों में प्रसन्नता है तो दूसरी ओर कुछ शक्तियां भ्रम फैलाकर अशांति पैदा करने के षड्यंत्र में जुट गई है।
    सीएए अर्थात नागरिकता संशोधन अधिनियम सोमवार से भारत लागू हो गया है। यह अधिनियम 10 दिसम्बर 2019 को लोकसभा में, अगले दिन 11 दिसम्बर को राज्यसभा में पारित हुआ और 12 दिसम्बर को राष्ट्रपतिजी की स्वीकृति मिल गई थी। 20 दिसम्बर 2019 को पाकिस्तान से आये 7 शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देकर इस अधिनियम को लागू होने की औपचारिकता भी पूरी हो गई थी । लेकिन बीच में विरोध के चलते इसका क्रियान्वयन शिथिल कर दिया गया था जो अब पुनः लागू किया है। और इसके लागू होने के साथ पुनः विरोध आरंभ हो गया है।
    विरोध की मानसिकता के तीन प्रकार
    इस कानून के लागू होने के साथ पुनः विरोध आरंभ हो गया है। विरोध के स्वर असम, हैदराबाद उत्तर प्रदेश और दिल्ली से उभरे हैं। असम में असम स्टूडेंट्स यूनियन ने बंद का आह्वान किया है तो हैदराबाद सै एआईएएमयू नेता ओबेसुद्दीन औबेसी ने इसे पक्षपातपूर्ण बताकर देश व्यापी आंदोलन की चेतावनी दी है। अभी तो संगठन और चेहरे इस कानून का विरोध करने के लिये सामने आये हैं वे तीन प्रकार के हैं। पहले वे हैं जो प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी के हर निर्णय का विरोध करते हैं, या प्रश्न उठाते हैं। नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राइक, चन्द्र अभियान, रक्षा सौदे, जीएसटी लागू करने पर, कश्मीर में धारा 370 हटाने पर और यदि मोदी जी अयोध्या में रामलला विराजमान प्राण प्रतिष्ठा समारोह में उपस्थित हुये तो उस पर भी प्रश्न उठाये गये। मोदीजी के निर्णय ही नहीं उनके नारों पर भी प्रश्न उठाये जाते हैं। उन्होंने स्वयं को चौकीदार कहने या देश को परिवार बताने पर भी कटाक्ष हुये। इसलिये मोदी विरोधी पूरा समूह इस विधेयक के विरोध में पुनः मैदान में आ डटा है। इस कानून का विरोध करने वाली दूसरी आंदोलन जीवियों की वह टोली है जो कोई न कोई आंदोलन में सदैव देखी जाती है। इन आंदोलन जीवियों के कुछ चेहरे भारत के टुकड़े होने के नारे लगाने वाले समूह में भी, शाहीनबाग में भी और किसान आंदोलन में भी समान रूप से देखे गये। वे इस कानून के विरोध में भी सक्रिय हैं। और तीसरा समूह वह है जो भारत के मुसलमानों को राष्ट्र की मूलधारा में जोड़ने की बजाय उन्हें भावनात्मक रूप से आवेशित करके अलग रखने का प्रयास करता है और अपनी राजनीति करता है । ये तीनों समूह अक्सर एकत्र देखे जाते हैं। इस कानून को लेकर यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि यह कानून स्थानीय मुसलमानों की नागरिकता पर प्रश्न उठाता है। जबकि इस कानून का यहां रहने वाले मुसलमानों की नागरिकता से कोई संबंध नहीं न ही किसी से पूछा जायेगा और न कोई प्रमाण मांगा जायेगा । और न सामान्य प्रक्रिया से भारत की नागरिकता के लिये आवेदन करने वाले किसी मुसलमान को बाधा बनेगा। अन्य देशों के किसी नागरिक के भारत में नागरिकता लेने की एक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत पाकिस्तान से भी कितने ही मुस्लिम समाज के लोग भारत आये और यहां के नागरिक बने। इनमें सामान्य जन के अतिरिक्त लेखक और फिल्म कलाकार भी शामिल हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुस्लिम नागरिकों को भारत की नागरिकता लेने की प्रक्रिया पहले भी थी और आगे भी रहेगी। यह कानून उस प्रक्रिया में बाधक नहीं है। यह कानून तो केवल पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक आधार पर प्रताड़ित होकर भारत आने वाले शरणार्थियों को राहत देने तक सीमित है।
    नागरिकता संशोधन अधिनियम का कारण
    इस अधिनियम को लागू करने का आश्वासन वर्ष 2019 में भाजपा के संकल्प पत्र में था। जिस संकल्प पत्र के आधार पर भाजपा को सरकार बनाने लायक बहुमत मिला, इस अधिनियम को उस वचन की पूर्ति का कदम माना जाना चाहिए। यह अधिनियम बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से धार्मिक आधार पर प्रताड़ित होकर भारत आने वाले हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के अनुयायी शरणार्थियों पर लागू होगा। इन तीनों देशों में धार्मिक आधार पर हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदायों की कितनी प्रताड़ना होती है इसके समाचार आये दिन मीडिया में देखने को मिल जाते हैं। इस प्रताड़ना की पुष्टि तीनों देशों इन समुदायों की घटती आबादी के आंकड़ों से भी की जा सकती है। धार्मिक आधार पर प्रताड़ित किये जाने से ही तो तीनों देशों में इन मतावलंवियों की आबादी निरंतर घट रही है। हिन्दू सिक्ख, पारसी ईसाई और बौद्ध साम्प्रदाय के लोग या तो मतान्तरण करने पर विवश हो रहे हैं अथवा भारत की शरण में आ रहे हैं। ऐसे हजारों परिवार भारत में रह रहे हैं अब इन सभी को इस अधिनियम के माध्यम से नागरिकता का अधिकार मिल सकेगा,नागरिकता लेकर भारत में ससम्मान निवास कर सकेंगे।
    इन पीड़ित और प्रताड़ित समूहों की बात समय-समय पर संसद में उठती रही है। नेहरूजी के प्रधानमंत्रित्व काल में उठी थी और इंदिराजी के समय भी। अटलजी के समय भी यह मुद्दा सामने आया था। हर सरकार ने सहानुभूतिपूर्वक विचार करके मार्ग बनाने का आश्वासन दिया था। यह सब संसद के रिकार्ड है। फिर भी मार्ग न निकल सका था। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संकल्प शक्ति से यह संभव हो सका।

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