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ब्रज की विश्वप्रसिद्ध लट्ठमार होली

  • अशोक प्रवृद्ध
    वैसे तो सम्पूर्ण भारत में होली का पर्व अत्यंत धूमधाम के साथ मनाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश में वृन्दावन और मथुरा की होली का अपना अलग ही विशिष्ट महत्त्व है। मथुरा, वृन्दावन आदि क्षेत्रों में खेली जाने वाली इस अनोखी और परंपरागत होली- लठमार होली की बात ही निराली है। लट्ठमार होली भारत का एक प्रमुख त्योहार है। और यह राधा और श्रीकृष्ण के निवास स्थान के रूप में प्रसिद्ध क्रमशः बरसाना और नंदगांव में विशेष रूप से मनाया जाता है। विश्वप्रसिद्ध बरसाना की लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इस दिन नंदगांव के ग्वाल बाल बरसाना होली खेलने आते हैं और अगले दिन फाल्गुन शुक्ल दशमी को ठीक इसके विपरीत बरसाना के ग्वाल बाल होली खेलने नंदगांव जाते हैं। इस दौरान इन ग्वालों को होरियारे और ग्वालिनों को हुरियारीन के नाम से सम्बोधित किया जाता है। परंपरा के अनुसार फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को बरसाने में मनाई जाने वाली लट्ठमार होली के दिन नंदगांव के ग्वाल बालों के बरसाना होली खेलने आने के अवसर पर बरसाने की महिलाओं के हाथ में लट्ठ (लाठी) रहता है, और नंदगांव के पुरुष (गोप) राधा के मन्दिर लाडलीजी पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें बरसाना की महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है। मान्यता है कि इस दिन सभी महिलाओं में राधा की आत्मा बसती है और पुरुष भी हंस- हंस कर लाठियां खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए श्रीकृष्ण और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होरी गाई जाती है। महिलाएं पुरुषों को लट्ठ मारती हैं, लेकिन गोपों को किसी भी तरह का प्रतिरोध करने की इजाजत नहीं होती है। उन्हें सिर्फ गुलाल छिड़क कर इन महिलाओं को चकमा देना होता है। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है या महिलाओं के कपड़े पहनाकर, श्रृंगार इत्यादि करके उन्‍हें नचाया जाता है। अगले दिन फाल्गुन शुक्ल दशमी को बरसाना के ग्वाल बाल होली खेलने नंदगांव जाते हैं। वहां भी यही प्रक्रिया दुहराई जाती है। पौराणिक मान्यता है कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण को बरसाना की गोपियों ने नचाया था। यह भी मान्यता है कि होली पर रंग खेलने की परंपरा राधा व श्रीकृष्ण द्वारा ही शुरू की गई थी। दो सप्ताह तक चलने वाली इस होली का माहौल बहुत मस्ती भरा होता है। यहां पर सिर्फ प्राकृतिक रंग-गुलाल का प्रयोग किए जाने के कारण माहौल बहुत ही सुगन्धित रहता है। अगले दिन यही प्रक्रिया दोहराई जाती है, लेकिन इस बार नंदगांव में, वहां की गोपियां, बरसाना के गोपों की जमकर धुलाई करती है। लट्ठमार होली की उत्पत्ति के विषय में पौराणिक कथाएं मूलतः राधा-कृष्ण के प्रेम प्रसंगों से जुड़ी हुई हैं। कथा के अनुसार भगवान कृष्ण और उनके मित्र नंदगांव से अपनी प्रेमिका राधा और उनकी सखियों पर रंगों का छिड़काव करने के लिए बरसाना आते हैं। लेकिन जैसे ही श्रीकृष्ण और उनके मित्र बरसाना में प्रवेश करते हैं, तो वहां राधा और उनकी सखियां उनका लाठियों से स्वागत करती हैं। इसी हास्य विनोद का अनुसरण करते हुए प्रतिवर्ष होली के अवसर पर नंदगांव के ग्वाल -बाल बरसाना आते हैं और वहाँ की महिलाओं द्वारा रंग और लाठी से उनका स्वागत किया जाता है। नंदगांव के पुरुषों पर बरसाना की महिलाओं द्वारा रंगों का छिड़काव किए जाने का यह उत्सव, चंचलता से लाठियां चलाना, नृत्य इत्यादि देखते ही बनता है। यह त्योहार लगभग एक सप्ताह तक चलता है और रंग पंचमी के दिन समाप्त हो जाता है। लट्ठमार होली ब्रज क्षेत्र में अत्यंत प्रसिद्ध त्योहार है। होली आरंभ होते ही सबसे पहले ब्रज रंगों में डूबता है। और यहां की लोकप्रिय बरसाना की लट्ठमार होली की तैयारियां भी शुरू हो जाती हैं। बरसाना राधा का जन्मस्थान है। इसलिए मथुरा के पास स्थित बरसाना में होली कुछ दिनों पहले ही रंगनी आरंभ हो जाती है। मथुरा, बरसाना और नंदगांव के समीपस्थ क्षेत्रों में होली का उत्सव बसंत पंचमी से ही शुरु हो जाता है। और यह उत्सव लगभग 40 दिनों का होता है, जो रंग पंचमी के दिन तक चलता है।

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