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- ललित गर्ग
अब लगभग यह तय हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को विपक्षी दलों एवं उनके नेताओं के द्वारा हल्के में लेने की स्थितियां उनके लिये कितनी भारी हो सकती हैं। दूसरा भारत की राजनीति में भाजपा अगर कुछ करने की ठान लेती है तो वह उसे पूरा करती ही है। बिहार में सत्ता का समीकरण बदलना इसी बात का द्योतक है। बिहार में मुख्यमंत्री और जेडीयू नेता नीतीश कुमार ने आरजेडी से अलग होने का फैसला कर लिया और एक बार फिर भाजपा के साथ मिलकर सरकार ली है। आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा की रणनीति का यह एक बड़ा दांव सफल होता हुआ दिख रहा है।
वैसे भाजपा एवं जेडीयू नेता नीतीश कुमार के बीच भीतर-ही-भीतर यह खिचड़ी विगत कुछ समय से पक रही थी। इसका पहला ठोस संकेत जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिये जाने की घोषणा पर उनके द्वारा पहले भाजपा सरकार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दिये धन्यवाद से सामने आया। दूसरा बड़ा संकेत कर्पूरी ठाकुर की सौवीं जयंती के मौके पर आय़ोजित समारोह में नीतीश कुमार ने तंज कस कर कि आजकल बहुत से लोग अपने परिवार के सदस्यों को ही आगे बढ़ाने में लगे रहते हैं, इस रूप में सामने आया। इसे सीधे तौर पर लालू प्रसाद यादव पर हमला माना गया, जिनकी पार्टी के साथ वह बिहार में सरकार चला रहे हैं। अब तक नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ बिखरे हुए विपक्ष को एकजुट करने की कवायद करने वाले नीतीश कुमार ही रहे थे। नीतीश कुमार ने ही पिछले साल जून में पटना में विपक्षी दलों की महाजुटान की थी।
उनकी पहल पर ही विपक्ष के तमाम दल मतभेदों के बावजूद एक प्लेटफॉर्म पर आने को तैयार हुए ताकि लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ ज्यादा से ज्यादा सीटों पर विपक्ष की तरफ से साझा उम्मीदवार उतारा जा सके। लेकिन जब चुनाव एकदम सिर पर आ गया तो नीतीश कुमार ही पाला बदल गए। तिनका-तिनका जोड़कर विपक्षी एकजुटता का ताना-बाना तैयार करने वाले जेडीयू चीफ ऐन वक्त पर खुद ही गठबंधन से दूर हो गए। ये विपक्षी इंडिया गठबंधन के लिए बहुत बड़ा आघात है।
लोकसभा चुनाव में अब दो-ढाई महीने का समय ही शेष हैं। भाजपा हर हालात में नरेंद्र मोदी को ही तीसरी बार सत्ता के सिंहासन पर बैठाना चाहती है। अयोध्या में भव्य राम मंदिर से पैदा हुई हिंदुत्व लहर पर सवार भाजपा जाति को साधने में भी पीछे नहीं है। कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान हो चुका है। दलितों को लुभाने के लिए बड़ा अभियान शुरू करने का प्लान भी तैयार हो चुका है। दूसरी तरफ विपक्ष खासकर उसके सबसे बड़ा गठबंधन इंडिया की नजर हर हाल में मोदी के विजय रथ को रोकने पर है। लेकिन लगभग टूट एवं बिखर चुके इंडिया किस तरह मोदी रथ को रोक पायेगी? क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले ही इंडिया गठबंधन हांफने लगा है। नीतीश कुमार का पाला पाला बदलना वैसे ही है जैसे युद्ध शुरू होने से ऐन पहले सारथी ही पाला बदल ले।
े नीतीश ही नहीं, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल भी कांग्रेस को आंख दिखा रहे हैं, जिससे गठबंधन की गाड़ी आगे सरकती नजर नहीं आ रही है। बिहार की उठापटक एवं बदलते राजनीतिक समीकरणों का सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा। बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं। अगर नीतीश कुमार भाजपा से मिलकर एनडीए गठबंधन का हिस्सा बनते हैं तो इनमें से अधिकाधिक लोकसभा सीटों पर एनडीए प्रत्याशियों की जीत की संभावना अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाएगी। बिहार में नीतिश की इसी भूमिका के कारण ही इंडिया गठबंधन में उनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही थी। की छवि अवसरवादी नेता की हो गयी है। दरअसल यह अवसरवादिता और मौकापरस्ती की हद है जिसका राजनीति में प्रतिकार होना चाहिए। वास्तव में बिहार का ही सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि इस राज्य में जातिवादी और परिवारवादी राजनीति ने इस प्रदेश की जनता के मौलिक अधिकारों से उनको वंचित किये हुए हैं और इस प्रांत के लोगों को भारत का सबसे गरीब आदमी बनाया हुआ है। जबकि बिहारियों का भारत के सर्वांगीण विकास में योगदान कम नहीं हैं, सबसे अधिक मेहनती एवं बुद्धिजीवी लोग यही से आते हैं।