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बिहार ने निकाली महागठबंधन की हवा, दी ये बड़ी चेतावनी

देश में यह जो हवा बनाई जा रही है कि अगर सभी विपक्षी दल मिल कर चुनाव लड़ें, तो 2024 में नरेंद्र मोदी की पटखनी दी जा सकती है| उसका एक ट्रेलर बिहार में मिल गया है| बिहार विधान परिषद की पांच सीटों के चुनाव थे, राजद-जदयू-कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों ने मिल कर चुनाव लडा था| चुनाव नतीजों से बिहार में होने जा रहे बड़े उलटफेर के संकेत आने शुरू हो गए हैं| नीतीश कुमार ने जब भाजपा का साथ छोड़कर दुबारा लालू यादव के परिवार का दामन थामा था,तो लुटियन जोन का मीडिया नीतीश कुमार के लिए लट्टू हुआ घूम रहा था| उनके समर्थन में उसी तरह के हवाई किले बना रहा था, जैसे 2022 में कांग्रेस ने पंजाब में अमरेन्द्र सिंह को हटा कर चरनजीत सिंह चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाए जाने पर बनाए थे| चन्नी को मुख्यमंत्री बनाए जाने को कांग्रेस का तुरप का पत्ता बताया गया था| इस की वजह उन्होंने यह बताई थी कि वह मजहबी सिख है, और मजहबी सिख कांग्रेस के साथ जुड़ेंगे, तो कांग्रेस को कोई नहीं हरा सकता| पर हुआ क्या, कांग्रेस तो बुरी तरह हारी ही, चरनजीत सिंह चन्नी को दो सीटों से टिकट दिया गया, वह दोनों ही जगह हार गए| इसी तरह नीतीश कुमार ने जब भाजपा का साथ छोड़कर लालू यादव का दामन थामा, तो नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री मेटीरियल बताया गया| लुटियन जोन की सर्वेक्षण एजेंसियों ने बिहार में फर्जी सर्वेक्षण करके बताया था कि आरजेडी-जेडीयू गठबंधन बिहार में भाजपा का सूपड़ा साफ़ कर देगा|इस सर्वेक्षण में बताया गया था कि राजग-जदयू-कांग्रेस गठबंधन 40 में से 25 लोकसभा सीटें जीतेगा| भाजपा और लोजपा के दोनों गुट मिलकर15 सीटें जीत सकती है| यानी एनडी को 14 सीटों का नुक्सान होगा, क्योंकि 2019 में एनडीए के घटक दलों भाजपा को 17, जदयू को 16 और लोजपा को छह सीटें मिली थीं| क्योंकि अब जदयू भाजपा छोड़कर राजद के साथ है, इसलिए यह बड़ा उलटफेर होगा| लेकिन विधान परिषद के चुनाव नतीजों ने तस्वीर का दूसरा रूख दिखाया है| पांच विधान परिषद सीटों के चुनाव हुए थे,चुनाव से पहले इनमें से चार जदयू के पास थीं और एक भाजपा के पास थी| राजद-जदयू-कांग्रेस-और वामपंथियों ने मिल कर चुनाव लडा और यह गठबंधन पांच में से सिर्फ दो सीटें जीत सका| जबकि भाजपा भी दो सीटें जीत गईं| एक सीट सारण से पीके यानी प्रशांत किशोर का समर्थक अफाक अहमद जीत गया| हालांकि इस में पीके की कोई भूमिका नहीं है,अफाक अहमद ने क्योंकि पीके की जनसुराज यात्रा का समर्थन किया था, इसलिए उनकी जीत का श्रेय पीके को दिया जा रहा है|अफाक अहमद ने महागठ्बन्धन के वामपंथी उम्मीदवार पुष्कर आनंद को हराया| यानी महागठबंधन पांच में से तीन सीटें हार गया|यहाँ महत्वपूर्ण यह है कि एमएलसी के इन पांच सीटों के चुनावों में बिहार के कुल 38  जिलों में से कोसी , सीमांचल और पूर्वी बिहार के 14 जिलों के शिक्षक वोटरों ने वोट किया| इसे अगर 2024 के लिए चुनाव सर्वेक्षण मान लिया जाए तो यह इंडिया टुडे के हाल ही में किसे गए उस सर्वेक्षण को पूरी तरह गलत ठहराता है, जिसमें महागठबंधन को 25 और एनडी को 15 सीटें मिलने की बात कह रहा था| एमएलसी वोटरों की संख्या को अगर सर्वेक्षण का सेंपल माना जाए, तो यह निश्चित ही इंडिया टुडे के सेम्पल से बड़ा था| इस का मतलब सिर्फ यह निकलता है कि लोकसभा चुनावों में एनडी का पलड़ा भारी रहेगा,खासकर तब जब इस साल के आखिर तक जदयू में भगदड़ म्च्मने के आसार हैं| खबरें तो इस तरह की आ रही हैं कि जदयू के कम से कम आठ लोकसभा सदस्य और 25 विधायक भाजपा के संपर्क में हैं| कब वे जदयू छुद कर भाजपा में शामिल होंगे तो बिहार की तस्वीर ही बदल जाएगी|

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