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- आर.के. सिन्हा
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपनी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक के पद से हटा दिया है। छह महीने पहले ही उन्होंने आकाश को धूमधाम से अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। उन्होंने कहा कि आकाश तब तक उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी नहीं बन सकते, जब तक वे पूरी तरह परिपक्व नहीं हो जाते। आकाश आनंद बीते उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के शुरुआती दो चरणों में बसपा के प्रचार अभियान का मुख्य चेहरा थे। उनके भाषणों में भाजपा और समाजवादी पार्टी (सपा) पर तीखे हमले किए गए थे। अप्रैल में सीतापुर में एक चुनावी रैली के दौरान कथित रूप से आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करने के लिए उनके खिलाफ मामला भी दर्ज किया गया था। मायावती को लगता है कि ये भाषण पार्टी द्वारा निर्धारित नियमों और नीतियों से भटक गए थे।
मायावती के इस तरह के अचानक फैसले पहले भी देखे गए हैं लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इसका पार्टी और उनके दलित आंदोलन पर क्या असर होगा। बसपा के संस्थापक कांशीराम ने अपने परिवार को पार्टी से दूर रखा था और मायावती को उनके नेतृत्व कौशल के कारण ही अपना उत्तराधिकारी चुना था। इस रणनीति ने पार्टी को 2007 में उत्तर प्रदेश में अपने दम पर सत्ता दिलाई, जहाँ दलित समाज आबादी का लगभग 21 फीसदी हिस्सा हैं।
हालांकि, मायावती बसपा को एक व्यापक बहुजन समाज की पार्टी के रूप में विकसित करने में विफल रहीं। पार्टी के कई संस्थापक नेता, जो ओबीसी, अल्पसंख्यक और दलित समुदायों का प्रतिनिधित्व करते थे, मायावती के नेतृत्व शैली से असंतुष्ट होकर पार्टी छोड़ गए। आज बसपा अपने पुराने अखिल भारतीय दलित संगठन के रूप में अपनी पहचान लगभग खो चुकी है, भले ही मायावती कहने को तो आज भी देश की सबसे बड़ी दलित नेता बनी हुई हैं।
मायावती द्वारा बसपा के आंदोलनकारी चरित्र को नजरअंदाज करने और अपने परिवार के भीतर नेतृत्व को मजबूत करने के उनके फैसले ने पार्टी के विकास को नुकसान तो पहुँचाया ही है। दुर्भाग्य से, कई अन्य क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने भी यही रास्ता अपनाया है, जिनमें वे दल भी शामिल हैं जो वैचारिक रूप से शक्तिशाली आंदोलनों से उभरे थे। बसपा के मामले में पार्टी के पतन को नए दलित नेताओं के उदय ने भी तेज किया है। पार्टी का वोट शेयर लगातार गिर रहा है।