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- वीर सिंह लोधी (योगी)
जम्मू कश्मीर राज्य की शीतकालीन राजधानी जम्मू नगर से 240 किलोमीटर दूरी पर भारत पाकिस्तान नियंत्रण रेखा से सटे पुंछ जिला मुख्यालय पुंछ नगर जिसका प्राचीन नाम पुलस्त नगरी है वहां से 22 किलोमीटर की दूरी पर पांचाल पहाड़ी श्रृंखलाओं की गोद में बसे कस्बे के राजपुरा में स्थित भगवान भोलेनाथ का अत्यन्त प्राचीन मन्दिर है जो कि बूढ़ा अमरनाथ के नाम से प्रसिद्ध है। मनोरम दृश्य प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण क्षेत्र में स्थित इस स्थान के बारे में यह कहा जाता है कि यहां पर भगवान शंकर भोलेनाथ ने पहली बार अपनी पत्नी देवी पार्वती को अमरता प्रदान करने के लिए अमर कथा सुनाई थी। परन्तु पार्वती के कथा सुनते-सुनते सो जाने के कारण वह कथा नहीं सुन पाई थी। कहते हैं कि जब माँ शक्ति ने पर्वत राज हिमाचल के घर देवी पार्वती के रूप में अपना 109वां जन्म लिया तो पहले के 108 जन्मों की ही तरह इस जन्म में भी देवी ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए हिमालय में वर्षों तक घोर तप किया जिससे प्रसन्न होकर भोले नाथ ने देवी पार्वती से विवाह रचाया और कैलाश में निवास कर रहे थे कि एक दिन देवी पार्वती भगवान भोलेनाथ से बोली हे प्रभु मैने आपको अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए 109 बार इस पृथ्वी पर जन्म लिया है। हे नाथ अब आप मुझे भी अमर कथा सुनाकर अमरत्व प्रदान करें ताकि मैं भी आवागमन के चक्कर से मुक्त हो जाऊँ। इतना कहने के बाद देवी पार्वती भोले नाथ से अमर कथा सुनाने की हठ करने लगी। जब देवी अमर कथा सुनने का बार-बार हठ करने लगी तो भगवान शंकर देवी सहित नंदी पर सवार हो कर किसी निर्जन स्थल की तलाश करने लगे तो वह घूमते हुए इस स्थान पर आ पहुँचे जहां पर ऊंचे-ऊंचे देवदार के वृक्षों से भरा निर्जन स्थल जिसके साथ ही कलकल करते हुए निर्मल जलधारा बह रही थी। भगवान को यह स्थल अच्छा लगा और उन्होंने यहां पर देवी पार्वती को अमर कथा सुनानी शुरू कर दी और वे ध्यान मगन हो कथा सुना रहे थे। जब अमर कथा समाप्त हुई तो भगवान भोले नाथ ने पार्वती से पूछा हे प्रिये कैसी लगी अमर कथा तो इस पर देवी बोली हे नाथ मुझे क्षमा करें क्योंकि मैंने तो पूरी अमर कथा सुनी ही नहीं कथा सुनते-सुनते मैं गहरी निद्रा में चली गई थी। इस पर भगवान को क्रोध आ गया और वह कहने लगे कि अगर तुम सोई हुई थी तो जब मैं कथा सुना रहा था तो हूं हूं की ध्वनि कौन कर रहा था। कहते हैं कि, इतना कहने के बाद जब भगवान शंकर ने अपनी दिव्य दृष्टि दौड़ाई तो उन्होने देखा कि पास ही एक पेड़ के खोखल में कबूतर के दो बच्चे बैठे हुए थे जो हूं हूं की ध्वनि निकाल रहे थे। जिसे कथा सुनाते हुए भगवान भोले नाथ ने पार्वती की आवाज समझ कर पूरी सुना दी थी। कबूतर के बच्चों की इस हरकत पर जब क्रोध से भोले नाथ ने उन्हें भस्म करने के लिए त्रिशूल उठाया तो देवी पार्वती ने उन्हें शान्त करते हुए कहा हे नाथ आप व्यर्थ में इन पर क्रोध न करें। आपने ही इन्हें अमर कथा सुना कर अमरता प्रदान की है ऐसें में भस्म करना धर्म के विरूद्ध है। देवी के इस आग्रह पर भोले नाथ शांत हुए और उसके बाद कश्मीर में उस स्थान पर जहां आप अमरनाथ गुफा में हिमलिंग के दर्शन करते हैं वहां पर देवी पार्वती को अमर कथा सुनाकर अमरता प्रदान की थी। कहते हैं आज भी कश्मीर स्थित अमरनाथ गुफा में भगतों को कबूतरों का वह जोड़ा दिखाई देता है जिसने श्री बूढ़ा अमरनाथ में अमरकथा सुन कर अमरता पाई थी। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि कबूतरों का वह जोड़ा कभी-कभी बूढ़ा अमरनाथ में भी शिव भक्तों को दर्शन देता है। श्री बूढ़ा अमरनाथ के बारे में यह कथा भी प्रचलित है कि इस स्थल को लंका महाराजा रावण के दादा महा ऋषि पुलस्त ने धार्मिक महत्व प्रदान करवाया है। यह कहा जाता है कि सतयुग में एक दिन जब महाऋषि पुलस्त ध्यान में बैठे हुए थे तो उन्हें अंतर आत्मा से इस बात का बोध हुआ कि कश्यप देश में पांचाल पहाड़ी श्रृंखला की गोद में वह स्थान है, जहां पर भगवान शिव ने पहली बार देवी पार्वती को अमरकथा सुनाई थी। इस बात का बोध होने के बाद महाऋषि पुलस्त अगले ही दिन वर्तमान श्री बूढ़ा अमरनाथ में आ पहुंचे जहां उन्होने पत्थर की एक शिला में बनी इस छोटी सी गुफा में देवो के देव महादेव शम्भू भोलेनाथ के दर्शन प्राप्त करने के लिए घोर तप शुरू कर दिया।