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- अजय सेतिया
कांग्रेस पिछले दो चुनावों से हिन्दू मुस्लिम ध्रुवीकरण का नतीजा भुगत रही है, इसके बावजूद उसे समझ नहीं आया कि उसकी यह गति क्यों बनी है। ए.के. एंटनी ने 2015 में ही बता दिया था कि पार्टी की छवि हिन्दू विरोधी और मुस्लिम पार्टी की बन गई है, इसे बदलना होगा। कांग्रेस नहीं बदली और उसके बाद 2019 का झटका भी झेल चुकी। इसके बावजूद उसे कोई समझ नहीं आई। उनकी रिपोर्ट के 9 साल बाद बहुत कुछ बदल गया है खुद उनका बेटा अनिल एंटनी भाजपा में शामिल हो कर भाजपा की टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। हैरानी यह है खुद की रिपोर्ट को रद्दी की टोकरी में डाल दिए जाने बाद भी ए.के. एंटनी अपने बेटे की हार की कामना कर रहे हैं।
इस बार तो कांग्रेस ने अपनी करनी और कथनी, दोनों तरीकों से बता दिया कि वह मुस्लिम पार्टी है।केरल में राहुल गांधी ने सिर्फ मुस्लिम लीग नहीं, बल्कि आतंकवादी मुस्लिम संगठन पीफआई का समर्थन भी ले लिया। हिन्दुओं की आँखों में धूल झोंकने के लिए मुस्लिम लीग और एसडीपीआई से कहा गया कि वे राहुल गांधी के रोड शो में हरे रंग के इस्लामिक झंडे न दिखाएं। तो इन दोनों मुस्लिम संगठनों ने शर्त रख दी कि अगर कांग्रेस अपने झंडों का प्रदर्शन नहीं करेगी, तो वे भी अपने झंडे नहीं दिखाएंगे। कांग्रेस ने मुस्लिम संगठनों की यह शर्त मान ली। मुस्लिम कट्टरपंथियों के तुष्टिकरण के लिए अब इससे ज्यादा कांग्रेस और क्या कर सकती है।
अब कांग्रेस की कथनी भी देख लीजिए। कांग्रेस को इतना भी नहीं पता कि वह जमाना चला गया, जब किसी पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र को कोई पढ़ता ही नहीं था। बारीकियों में जाना तो दूर की बात। घोषणा पत्र जारी करना एक फार्मेलिटी हुआ करती थी, जिसे सारे दल निभाया करते थे। अब एक एक लाईन की चीरफाड़ का जमाना है। कांग्रेस के घोषणा पत्र ने आज़ादी से पहले की मुस्लिम लीग की मांगों की याद ताज़ा कर दी। मुस्लिम लीग की वे सभी मांगे सेक्यूलरिज्म के खिलाफ थी। नेहरू, पटेल और गांधी ने भी वे बातें नहीं मानी थी, क्योंकि वे सारी बातें देश को इस्लामीकरण की ओर ले जाने वाली बातें थीं। लेकिन 75 साल बाद कांग्रेस का घोषणा पत्र मुस्लिम कट्टरपंथियों के आगे झुक गया है।
संविधान यूनिफार्म सिविल कोड की बात कहता है,जबकिकांग्रेस ने संविधान की भावना के खिलाफ अपने घोषणा पत्र में धार्मिक आधार पर पर्सनल कानूनों की वकालत की है। यानि कांग्रेस तीन तलाक, हलाला ही नहीं शरीयत भी लागू करेगी। एक देश में दो क़ानून होंगे, दो संविधान होंगे। मुसलमानों की अदालतें मुस्लिम खुद चलाएंगे। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड को कानूनी मान्यता दे कर मुसलमानों की कोर्ट मान लिया जाएगा।मुस्लिम लीग की इसी तरह की मांगों के कारण तो देश का बंटवारा हुआ था। कांग्रेस देश को बताए कि फिर उसने देश का बंटवारा क्यों करवाया, क्या सिर्फ इसलिए कि मोहम्मद अली जिन्नाह जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री बनने में बाधा बन गए थे।
कांग्रेस दलितों और आदिवासियों की तरह मुसलमानों को भी आरक्षण भी देना चाहती है। जो दलित लालच में ईसाई बन गए हैं, उन्हें भी आरक्षण का लाभ देना चाहती है। मुसलमानों और ईसाईयों को आरक्षण का लाभ देने के लिए आरक्षण का कोटा 50 प्रतिशत से बढाना चाहती है। क्या यह ईसाईयों और मुसलमानों को धर्म परिवर्तन को बढावा देने का वादा नहीं है। सुप्रीमकोर्ट उनके रास्ते में बाधा न बने, इसके लिए जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया भी बदल देगी। जिस कोलिजियम सिस्टम को मोदी बदलना चाहते थे, कांग्रेस उसके विरोध में खडी हो गई थी, लेकिन अब खुद कोलिजियम सिस्टम को बदलने की बात कर रही है। यह वही कांग्रेस है, जो मोदी पर संविधान बदलने का आरोप लगा रही है। संविधान और लोकतंत्र बचाने के नाम पर वोट मांग रही है। कांग्रेस की भारतीय संविधान में कितनी आस्था है, यह उसका चुनाव घोषणापत्र पढ़ कर समझा जा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब कांग्रेस के घोषणा पत्र का पोस्ट मार्टम कर डाला, तो कांग्रेस तिलमिला उठी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की टिप्पणियों से कांग्रेस इतनी आहत हो गई है कि चुनाव आयोग को शिकायत की है। जबकि इस राजनीतिक मुद्दे पर उसे उठाए गए सवालों का जनता को जवाब देना चाहिए। लेकिन कांग्रेस तिलमिला उठी है क्योंकि उसने तो अपना घोषणा पत्र सिर्फ मुसलमानों को पढाने के लिए बनाया था, हिन्दुओं को पढाने के लिए बनाया ही नहीं था। अपने घोषणा पत्र में कांग्रेस ने वे सभी मांगे स्वीकार कर ली हैं, जिन्हें संविधानसभा ने ठुकरा दिया था। जिस मुस्लिम लीग को राहुल गांधी सेक्यूलर बता रहे हैं, उसी मुस्लिम लीग के सदस्यों ने संविधानसभा में मुस्लिमों की अलग पहचान, अलग चुनाव क्षेत्रों, अलग कानूनों और अलग नियमों की मांग रखी थी, जिसे ठुकराते हुए सरदार पटेल ने कहा था कि भारत में भारतीय बन कर रहो। लेकिन वही कांग्रेस क्योंकि अब राहुल गांधी को लोकसभा पहुँचाने के लिए मुस्लिम लीग और मुस्लिम आतंकवादी सन्गठन पीएफआई की राजनीतिक ईकाई एसडीपीआई पर निर्भर हो गई है, तो उसी शरीयत वाली मुस्लिम लीग की हर बात मानने को तैयार हो गई है। कांग्रेस ने रामजन्मभूमि मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा का बहिष्कार भी तो मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए ही किया था।रामजन्मभूमि के मुद्दे पर पिछले दो महीनों से कांग्रेस के दर्जनों बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। पार्टी छोड़ने वाले नेताओं ने गांधी परिवार पर वामपंथी और मुस्लिम कट्टरपंथियों के हाथों में खेलने का आरोप लगाया है, लेकिन वही बात मोदी ने कह दी, तो कांग्रेस तिलमिला उठी है,वह चुनाव आयोग को शिकायत करने पहुंची है, लेकिन उसकी पोल चौराहे पर खुल गई है।