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- ऋतुपर्ण दवे
पुणे हिट एण्ड रन मामले के बाद एक बार फिर पूरे देश में इस संबंधी कानून और नियंत्रणपर नई बहस छिड़ गई है।इस दर्दनाक घटना के आरोपी को नाबालिग बताकर कानून की खामियों या कमियां, दोनों का भरपूर लाभ दिया गया। वह तो देश व्यापीजन आक्रोश को देखकर फैसला बदला गया वरना जिम्मेदारों ने तो अपना फर्ज निभा ही दिया था। निश्चित रूप से ऐसे मामले चर्चाओं में क्यों आते हैं बिना कुछ कहे सब एकदम साफ है।
अब एक बार फिर कानून में सुधार पर नए सिरे से सोचना होगा। आरोपी की मंशा और दुर्घटना की परिस्थितियों तथा यदि उपलबध है तो डिजिटल साक्ष्य को ध्यान में रखकार्रवाई के लिए प्रभावीव पारदर्शी सुधारों की दरकार महसूस होने लगी है। यह यकीननबड़ी चुनौती है लेकिन दोष-निर्दोष और अनजाने हुई दुर्घटना के बीच की महीन लकीरों को बिना मिटाए या प्रभावित किए, प्रभावी कार्रवाई चुनौती भी हैऔर जरूरी भी।
पुणे दुर्घटना में अकाल मृत्यु के आगोश में समाए 24-24 बरस के अनीस अवधिया और अश्विनी कोस्टा तो वापस नहीं आएंगे लेकिन दुर्घटना उपरान्त पूछताछ के नाम पर पुलिसिया सवालों से आहत पीड़ित परिवार का दर्द जरूर बड़ा सवाल है। जिम्मेदारों और माननीयों को इस पर भी सोचना होगा। वहीं बड़ा सवाल उस बिगड़ैल रईसजादे का है जिसे नाबालिग होते हुए भी पिता ने मंहगी गाड़ी चलाने कैसे दी? जबकि पता था कि न रजिस्ट्रेशन है और न औलाद के पास लाइसेंस। इसे अमीरी का रुतबा कहें या व्यवस्थाओं पर तमाचाजो पुणे जैसे शहर में पैसों की खुमारी से नाबालिग बिना नंबर की गाड़ी 200 किमी की रफ्तार सड़क पर चला नहीं उड़ा रहा था? आखिर दो बेकसूरों को उड़ाने का दोषी सिर्फ नाबालिग ही नहीं उसका पिता भी बराबर का है!
ऐसे हिट एण्ड रन देश में चर्चाओं मेंरहते हैं। दो-चार दिन हो-हल्ला के बाद शांत भी हो जाते हैं। लेकिन न तो दुर्घटनाएं रुकती हैं और न ही सड़कों पर वाहन दौड़ाने वाले रईसों में कोई डर दिखता है। हां, साधारण लोग जरूर कानून, कायदे के जंजाल में फंस जाते हैं या फंसा दिए जाते हैं क्योंकि वो रईस नहीं होते।
यहां कानपुर के उस मामले के भी चर्चा जरूरी है जिसमें एक नामी डॉक्टर के केवल 15 बरस के नाबालिग औलाद ने अक्टूबर 2023 में तेज रफ्तार गाड़ी चलाते हुए सागर निषाद और आशीष रामचरण नाम के दो बच्चों को रौंद मार डाला। कानून का माखौल कहें या जिम्मेदारों की छत्रछाया जो दोबारा 31 मार्च 2024 को इसी बिगड़ैल ने 4 लोगों के ऊपर फिर कार चढ़ा दी। तब भी कानूनी खानापूर्ति में मामूली धाराओं में पुलिस ने प्रकरण बनाया और आरोपी बेलगाम घूमता रहा। लेकिन पुणे की घटना के बाद शायद पुलिस की आत्मा जागी या डरी पता नहीं,दोनों मामलों पर एकाएक सख्त कार्रवाई करते हुएआरोपी नाबालिग और उसके डॉक्टर पिता को भी 6-7 महीने बाद आरोपी जरूर बना लिया।
हैरानी की बात है कि तब भी यही कानून थे और अब भी वही कानून हैं। लेकिन पुलिस का रवैया अलग-अलग विचारणीय है?पुणे घटना का एक दूसरा पहलू भी है। आरोपी नाबालिग ने दोस्तों संग दो पबों में 69 हजार रुपयों का जाम छलकाया जिसके सबूत भी मिले। लेकिन हैरानी है कि मेडिकल रिपोर्ट निगेटिव आई? अब पुणे में अवैध पब ढ़हाए जा रहे हैं यह जिम्मेदारों को पहले क्यों नहीं दिखे? कैसे नाबालिगों को शराब परोसी गई? कानून की धज्जियों उड़ाने वाले सवालों की शृंखला में कई कड़ी हैं।
दुर्घटना करने वाली 2 करोड़ से ज्यादा की पोर्स कार के रजिस्ट्रेशन के बारे में महाराष्ट्र ट्रांसपोर्ट विभाग का हैरान कर देने वाला खुलासा सामने आया। महज 1,758 रुपये की फीस नहीं चुकाने से कार का रजिस्ट्रेशन मार्च से पेंडिंग था और विभाग खामोश। अब कहा जा रहा है कि आरोपी का ड्राइविंग लाइसेंस उम्र 25 साल पूरा तक नहीं बनेगा। लेकिन यह क्यों नहीं कोई बताता कि बिना लाइसेंस रईसजादा कैसे सड़क पर बेखौफ होकर फर्राटे भर रहा था? क्या रईसजादोंको लाइसेंस की जरूरत नहीं होती? क्या रईसजादों पर उम्र का बंधननहीं होता? कानून के रक्षकों के शायद इसी दोहरे रवैये से रईस नाबालिगों के हिट एण्ड रन के हैरान करने वाले मामले सामने आते हैं जो आम लोगों से भेदभाव करते हैं।