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राजनीतिक दुनिया में एआई एक बड़ा खतर

  • उमेश चतुर्वेदी
    नामी हीरोइनों के डीप फेक फोटो के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई के गलत इस्तेमाल से अभी दुनिया जूझ ही रही थी, कि इसका एक-एक और चेहरा सामने आ गया। गृहमंत्री अमित शाह के फेक वीडियो के जरिए चुनावी माहौल को बीजेपी के विरोध में मोड़ने की कोशिश एआई के बेजा इस्तेमाल का नया उदाहरण है। आरक्षण हटाने को लेकर अमित शाह के वीडियो को लेकर पुलिस सक्रिय हो गई है। गृह मंत्री अमित शाह का ‘डीपफेक’ वीडियो कथित तौर पर शेयर करने के लिए मुंबई पुलिस ने महाराष्ट्र युवा कांग्रेस के सोशल मीडिया हैंडल और 16 अन्य लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। ‘डीपफेक’ वह प्रौद्योगिकी है जिससे एक वीडियो में छेड़छाड़ कर किसी ऐसे व्यक्ति के चेहरे को उसमें फिट किया जाता है जो उस वीडियो का हिस्सा ही नहीं होता। इस तकनीक के माध्यम से छेड़छाड़ कर बनाए गए वीडियो में असली और नकली का अंतर बता पाना मुश्किल होता है। इस फर्जी वीडियो में बीजेपी के वरिष्ठ नेता और गृहमंत्री अमित शाह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण अधिकारों को खत्म करने की घोषणा करते हुए कथित तौर पर नजर आ रहे हैं। अमित शाह के जिस भाषण से छेड़छाड़ की गई है, वह 25 अप्रैल का है। उस दिन वह तेलंगाना के मेढ़क जिले के सिद्दीपेट में बीजेपी की चुनावी रैली में भाषण दिये थे। इस भाषण के वीडियो को कथित तौर पर छेड़छाड़ कर सोशल मीडिया पर शेयर किया गया था। फैक्ट चेक में ये वीडियो फेक साबित हुआ है। इसके बाद गृह मंत्रालय की शिकायत के आधार पर दिल्ली पुलिस कार्रवाई कर रही है। मामले में अहमदाबाद पुलिस दो लोगों को गिरफ्तार किया है। इससे पहले असम पुलिस ने भी इसको लेकर सोमवार को एक शख्स को गिरफ्तार किया था। दिल्ली पुलिस ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी समेत राज्य कांग्रेस के कुछ अन्य नेताओं को भी पूछताछ के लिए तलब किया है। इस मामले में बीजेपी की मुंबई इकाई के पदाधिकारी प्रतीक करपे ने भी सोमवार को बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स साइबर थाने में शिकायत दर्ज कराई है। शिकायत में कहा गया है कि अमित शाह का डीपफेक वीडियो बनाकर उसे पोस्ट किया गया और इंटरनेट पर शेयर किया गया, जिसके पीछे आरोपियों का मकसद बीजेपी नेता अमित शाह को बदनाम करना था। शिकायतकर्ता ने पुलिस से डीपफेक वीडियो को तुरंत हटाने और उन आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का भी अनुरोध किया, जिन्होंने विभिन्न जातियों में दुश्मनी और नफरत पैदा करने के लिए इसे कथित तौर पर शेयर किया था। शिकायत के आधार पर महाराष्ट्र युवा कांग्रेस के सोशल मीडिया हैंडल और 16 अन्य लोगों के खिलाफ साइबर थाने में आईपीसी और आईटी एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। मामले की जांच की जा रही है।
    लोकतांत्रिक व्यवस्था मोटे तौर पर संवैधानिक नियमों से चलती है। हालांकि संविधान की शायद ही कोई किताब होगी, जिसमें नैतिकता का जिक्र हुआ है। नैतिक आचरण की परिभाषा भी नहीं दी गई है। इसके बावजूद गतिशील लोकतंत्र की बुनियादी शर्त नैतिकता और शुचिता को स्वीकार करना है। बेशक राजनीति दांवपेच का खेल है। आज दुनिया ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को सबसे बेहतर शासन व्यवस्था के रूप में स्वीकार किया है। इसके बावजूद हकीकत यह भी है कि दुनियाभर में सियासी फायदे के लिए दांवपेच लगाए-चलाए जाते हैं। लेकिन इस उठापटक के खेल में भी न्यूनतम नैतिकता की उम्मीद दुनियाभर के मतदाता अपने राजनेताओं से रखते हैं। स्वाधीनता आंदोलन की कोख से उपजी भारतीय राजनीतिक दुनिया की पहली पीढ़ी की नैतिकता, ईमानदारी और आचरण की पवित्रता से जुड़े तमाम किस्से हम सुनते-पढ़ते रहे हैं। सही मायने में हमारा लोकवृत्त यानी पब्लिक स्फीयर भी उन मूल्यों और आचरण की पवित्रता की बुनियाद पर तैयार हुआ है। लेकिन दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आज की राजनीतिक पीढ़ी आचरण की पवित्रता, पेशेवर ईमानदारी और शुचिता के सिद्धांत को धीरे-धीरे तिरोहित करती जा रही है।
    गांधी जी की ओर जब हम देखते हैं तो पाते हैं कि वे अक्सर नई तकनीक का विरोध करते नजर आते हैं। उनका यह विरोध तकनीक के ऐसे ही नकारात्मक इस्तेमाल की आशंका के चलते था। यह आशंका रोजाना सही साबित हो रही है। सोशल मीडिया और सूचना क्रांति का जैसे-जैसे विस्तार होता गया, फेक न्यूज, फेक बयान, फेक नैरेटिव का भी विस्तार होता गया। लेकिन ज्यादातर मामलों में शरारती तत्व शामिल रहे। जिनकी कोशिश अराजकता या सनसनी फैलाना रही, वे ही आगे रहे। लेकिन एआई के इस्तेमाल से राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने की शायद यह पहली कोशिश है। अब तक अराजक तत्व दंगे फैलाने, गलत सूचनाओं को सही साबित करने आदि के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते रहे हैं। लेकिन एआई के जरिए फेक सूचना और बयान को तैयार करके सोशल मीडिया के जरिए प्रसारित करने का यह पहला मामला है।
    एआई से तैयार की जाने वाली सूचनाओं और बयान आदि की खासियत है कि ये हूबहू लगते हैं, सही लगते हैं। लेकिन चूंकि मौजूदा दौर नैरेटिव को प्रसारित करने का है, वह गलत है या सही है, बाद की बात है। अमित शाह का फेक बयान एआई के जरिए तैयार करके प्रसारित करने का मकसद यह है कि जब तक उसकी सचाई सामने आए, बीजेपी या अमित शाह चौंके, तब तक संदेश का नकारात्मक असर फैल चुका होगा। चूंकि यह मामला आरक्षण से जुड़ा है, लिहाजा उस कथित बयान में जिनके आरक्षण को खत्म करने की बात हो रही है, वे बीजेपी से नाराज हो जाएंगे। जब तक बीजेपी और अमित शाह सचेत होंगे, जवाबी कार्रवाई करेंगे, तब देर हो चुकी होगी। फिर सफाई को कितने लोग सुनते हैं। इन संदर्भों में देखें तो यह कार्रवाई बेहद शातिराना मानी जा सकती है। बहरहाल इस मामले की पुलिस जांच कर रही है। पुलिस ने जिस तरह राजनीति की दुनिया की बड़ी हस्तियों को जांच में शामिल होने के लिए समन भेजा है, उसे लेकर राजनीति होनी शुरू हो गई है। लेकिन यह भी सच है कि अगर एआई के इस बेजा और फेक इस्तेमाल में बड़ी मछलियां फंसी तो भारतीय राजनीतिक तंत्र के इतिहास में यह बड़ा मामला होगा। राजनीतिक नैतिकता की गिरावट का भी यह बड़ा उदाहरण होगा।
    राजनीति की दुनिया नैतिकता की सबसे ज्यादा बात करती है। राजनीति ही कानूनों और नियमों का आधार बनाती है। चूंकि फेक बयान के मामले में शक राजनीति पर ही है और प्रभावित राजनीति ही है, इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि एआई के उपयोग को वैधानिक दायरे में बांधने और उसे नैतिक बनाने की कानूनी कोशिश राजनीति ही करेगी। एआई के इस्तेमाल को इसे नियम संयत बनाने और इसके बेजा इस्तेमाल करने वालों के लिए समुचित दंड की व्यवस्था की सोच फेक बयान के इस उदाहरण के बाद मदद मिलेगी। एआई के इस्तेमाल के इस उदाहरण ने ना सिर्फ तकनीक, बल्कि राजनीति के भी विद्रूप चेहरे को उजागर किया है। इस मामले ने यह भी जाहिर किया है कि तकनीक को एक सीमा के बाद काबू में ही रखा जाना तो चाहिए ही, उसे नैतिकता के दायरे में भी कहीं ज्यादा कसा जाना चाहिए।

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