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आदित्य-एल-1 : सूर्य को जानने की जिज्ञासा

  • प्रमोद भार्गव
    चंद्रयान-3 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतारने के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने आदित्य-एल-1 को सूर्य की कक्षा में पहुंचाने के अभियान में जुट गया है। इस यान को 2 सितंबर को प्रक्षेपित किया जाएगा। यदि इस अभियान में भारत सफल हो जाता है तो वह सूर्य का अध्ययन करने वाला चौथा देश हो जाएगा। इसके पहले अमेरिका, रूस और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी सूर्य पर शोध कर चुके हैं। इस अभियान का लक्ष्य सूर्य के प्रकाश मंडल (फोटोस्फेयर) और कोरोनामंडल (क्रोमोस्फेयर) के बीच की परत की गतिशीलता, तापमान, कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) और अंतरिक्ष मौसम समेत कई दूसरे पहलुओं का वैज्ञानिक अध्ययन करना है। आदित्य एल सात पेलोड विद्युत चुंबकीय और चुंबकीय क्षेत्र परखने वाले उपकरण अपने साथ लेकर जाएगा। ये उपकरण सूर्य के अध्ययन के उद्देश्य को पूरा करेंगे।
    यह अभियान षत-प्रतिषत स्वदेशी है और इसके प्रक्षेपण में करीब चार माह लगेंगे। यह पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर एक विशेष स्थान लैंग्रेज बिंदु-1 पर पहुंचेगा। यहां पृथ्वी और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल खत्म हो जाते हैं। अतएव यहां षोध के अध्यन के लिए आदित्य-एल को ज्यादा ऊर्जा की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसलिए इसे सूरज के विकिरण पराबैंगनी और एक्स किरणों तथा सूरज से निकलने वाली तीव्र ज्वलाओं का पृथ्वी के वायुमंडल पर क्या असर पड़ता है, यह जान लेना आसानी होगी। आदित्य जिन सात पेलोड को अपने साथ लेकर जाएगा उनमें से सात पेलोड सीधे सूर्य की गतिविधियों और कार्यप्रणाली पर नजर रखेंगे। तीन पेलोड सूर्य से निकलने वाली लपटों, उनमें अंतरर्निहित कणों, सौर्य विकरण का अध्यन करते हुए निश्कर्श व आंकड़े इसरो को भेजेंगे। एल-1 बिंदु पर अध्यन करने वाला यह विष्व का दूसरा अभियान है। इसके पहले 1995 में यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी ने सोलर तथा हीलियोस्पोरी आब्जर्वेटरी इसी लैंग्रेज बिंदु पर भेजा था।
    इसरो ने चांद के रहस्यों को जानने वाले अभियान का नाम चंद्रयान रखा हुआ है, लेकिन सूर्य के रहस्यों को ज्ञात करने वाले अभियान का नाम सूर्ययान नहीं रखा। इसे स्पश्ट करते हुए इसरो ने कहा है कि भारत का यह अभ्यिान सूर्य की सतह पर नहीं उतर रहा है। इस कारण इसके साथ सूर्य, सूरज या सौर्य षब्द नहीं जोड़ा गया। लेकिन आदित्य भी सूर्य का ही पर्यायवाची है। इसलिए इसे आदित्य एल-1 नाम दिया गया है। चूंकि यह सूरज की जिस कक्षा पर केंद्रित होकर अध्ययन करेगा उसे लैंग्रेज बिंदु कहा जाता है, इसलिए इस अभियान का नाम आदित्य एल रखा गया है। पृथ्वी से इसी लैंग्रेज बिंदु की दूरी 15 लाख किलोमीटर है। आदित्य एक उपग्रह की तरह सूरज के चारों तरफ चक्कर लगाएगा। यह लगभग पांच वर्ष तक सूरज से निकलने वाली किरणों का गहन अध्ययन करेगा। इस अभियान पर कुल 378 करोड़ रुपए की लागत आई है।
    सूरज की सतह पर प्रचंड रूप से गर्म तापमान होता है। इस तापमान की पृष्ठभूमि में सूरज की सतह पर उपलब्ध प्लाज्मा का विस्फोट है। इस विस्फोट की वजह से लाखों टन प्लाज्मा अंतरिक्ष में फैल जाता है। इसे सीएनई कहते है। इसे पूरे ब्रह्मांड में फैलाने का काम प्रकाश की गति करती है। कभी-कभी यह प्लाज्मा धरती के ओर भी आ जाता है। परंतु धरती के तीव्र चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव की वजह से यह धरती की कक्षा तक पहुंचने से पहले ही नष्ट हो जाता है। फिर भी धरती की तरफ आने के समय ही पृथ्वी की कक्षा में परिक्रमा कर रहे उपग्रहों को यह सीएमई हानि पहुंचाने का काम कर देती है। कई बार सीएमई धरती की परत को भेदकर धरती के वायुमंडल में भी प्रवेश कर जाती है। इसलिए आदित्य एल को सूर्य के निकट भेजकर पृथ्वी के वायुमंडल में जो तत्व नुकसान पहुंचाने का काम करते हैं, उनको जानकर उन्हें नियंत्रित करना भी है। इसलिए ऐसा भी माना जा रहा है कि आदित्य अंतरिक्ष में विचरण कर रहे उपग्रहों के की सुरक्षा के लिए वरदान भी साबित हो सकता है। दरअसल किसी भी ग्रह के पास पहुंचे बिना, उसके संपूर्ण रहस्यों को जानना असंभव है। इसलिए दुनिया के वैज्ञानिक सूर्य के निकट पहुंचकर उसके रहस्यों को उजागर करने के प्रयास में लगे हैं। भारत के आदित्य एल अभियान के पहले अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के पार्कर यान ने एक रिकाॅर्ड अपने नाम कर लिया है। वह सूर्य से 4.27 करोड़ किलोमीटर की दूरी से गुजरा। किसी यान के लिए यह सूर्य से अब तक की निकटतम दूरी है।

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