Home » भारत में उच्च शिक्षा के विकास का एक दशक

भारत में उच्च शिक्षा के विकास का एक दशक

  • प्रो.हिमांशु राय
    भारत की प्रगति के चित्रपट में, बीता दशक उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव की कहानी का जीवंत सूत्रधार रहा है। यह अवधि बदलाव को दर्शाती है, जहां शैक्षणिक संस्थान केवल ज्ञान के मंदिर भर नहीं रहे, बल्कि शिक्षण और समाज को समान रूप से आकार देते हुए नवाचार की आजमाइश बन गए। वैश्विक स्‍तर पर हो रहे परिवर्तनों के बीच, भारत का उच्च शिक्षा क्षेत्र उत्‍तरोत्‍तर विकसित हो रहा है, धूप में कमल की तरह खिल रहा है, यह केवल संख्या में वृद्धि का ही नहीं, बल्कि क्षमता की जागृति का भी प्रतीक है, जो भविष्य को ज्ञान, कौशल और विजन के सूत्र से बुन रहा है। अब जबकि भारत विश्‍व के लिए मानव संसाधनों का सबसे बड़ा उत्पादक बनने की दिशा में क्रमिक रूप से आगे बढ़ रहा है, हम भविष्य के संभावित घटनाक्रमों का अनुमान लगाते हुए बीते दशक में उच्च शिक्षा के परिदृश्य में भारत द्वारा की गई प्रगति पर विचार करते हैं।
    संभावनाओं से भरपूर दशक की शुरुआत- प्रारंभिक वर्ष (2013-14) भारतीय उच्च शिक्षा परिदृश्य वर्ष 2013-14 में बड़े बदलाव की ओर अग्रसर होने के कारण एक अहम पड़ाव पर था। हालांकि उसकी प्रगति स्पष्ट थी, लेकिन पहुंच बढ़ाने, गुणवत्ता सुनिश्चित करने और समावेशिता को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण चुनौतियां यथावत थीं।18-23 वर्ष आयु वर्ग के लिए लगभग 23 प्रतिशत सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) के साथ पहुंच और नामांकन सीमित थे, जिनसे नितांत क्षेत्रीय असमानताएं एवं सामाजिक-आर्थिक बाधाएं प्रकट होती थीं। 723 विश्वविद्यालयों और 36,634 कॉलेजों सहित संस्थागत परिदृश्य, बुनियादी ढांचे की बाधाओं से विशेष कर ग्रामीण क्षेत्रों में जूझ रहा था। वित्‍त पोषण एक और महत्वपूर्ण मुद्दा था, जीडीपी के 3.84 प्रतिशत के कुल शैक्षिक व्यय में से उच्च शिक्षा को सीमित आवंटन प्राप्त हो रहा था। यद्यपि एमओओसी जैसी डिजिटल पहल (एनपीटीईएल के एक प्रमुख उपलब्धि होने के नाते), उभर चुकी थी लेकिन असमान इंटरनेट कनेक्टिविटी और ढांचागत चुनौतियों के कारण उसकी पहुंच सीमित थी। ऑनलाइन शिक्षा, हालांकि संभावनाएं दर्शा रही थी, लेकिन मुख्यधारा के शिक्षण अनुभवों में पूर्ण एकीकरण के सामर्थ्‍य के साथ वह अपनी प्रारंभिक अवस्‍था में थी। इन चुनौतियों के बावजूद, वर्ष 2013-14 आत्मनिरीक्षण और सुधार का दौर भी रहा। इसने भविष्य में आगे बढ़ने की महत्वपूर्ण प्रेरणा का कार्य किया, जहां भारतीय उच्च शिक्षा पहुंच के अंतर को पाटने, गुणवत्ता बढ़ाने और परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकियों को अपनाने का प्रयास करेगी।
    गति को बनाए रखना : प्रमुख सुधार और पहल (वर्ष 2014-23)
    2014 के बाद के वर्ष भारतीय उच्च शिक्षा को परिवर्तनकारी पथ पर आगे बढ़ाने की दिशा में हुए ठोस प्रयासों के साक्षी रहे। शिक्षा तक पहुंच को व्‍यापक बनाने, उसकी गुणवत्ता बढ़ाने और तकनीकी प्रगति को अपनाने के प्रति लक्षित सुधारों और पहलों ने इस परिदृश्य को नया आकार दिया।
    नए विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की विशेषकर वंचित क्षेत्रों में स्थापना से संस्थागत नेटवर्क में महत्‍वपूर्ण वृद्धि हुई। साथ ही श्रेयस योजना, प्रधानमंत्री उच्चतर शिक्षा योजना, सब्सिडी के माध्यम से छात्र ऋ ण को किफायती बनाने के प्रयास (केंद्रीय क्षेत्र ब्याज सब्सिडी योजना 2009 को मजबूत करना) और क्रेडिट गारंटी फंड आवंटन (सीसीएफ योजना 2015) करने आदि जैसे लक्षित छात्रवृत्ति कार्यक्रमों के साथ हाशिये पर मौजूद समुदायों तक इस पहुंच का विस्तार हुआ और देश भर में महत्‍वाकांक्षाओं को प्रेरणा मिली। एआईएसएचई वर्ष 2021-22 के अनुसार, उच्च शिक्षा में नामांकन वर्ष 2014-15 में 3.42 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 4.33 करोड़ हो गया। जीईआर वर्ष 2014-15 में 23.7 से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 28.4 हो गया, महिला जीईआर वर्ष 2014-15 में 22.4 से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 28.5 हो गया। इस विस्तार के परिणाम स्वरूप लाखों युवा उच्च शिक्षा में प्रवेश कर रहे हैं, जिसमें पहले से कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों के प्रतिनिधित्व में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
    राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 एक परिवर्तनकारी रोडमैप के रूप में उभरी है, जिसमें बहु-विषयक शिक्षा, कौशल विकास और उद्योग भागीदारी पर जोर दिया गया है। इस मूलभूत बदलाव का उद्देश्य स्नातकों को उपयुक्‍त कौशल से लैस करना और तेजी से विकसित हो रहे नौकरी बाजार में रोजगार क्षमता को बढ़ावा देना है। केवल मेट्रिक्स के संदर्भ में ही नहीं, बल्कि एनईपी ने, भारत में शिक्षा परिदृश्य को मौलिक रूप से फिर से परिभाषित करने के अपने प्रयासों की बदौलत इस क्षेत्र में हितधारकों के भीतर प्रेरणा और उत्थान की भावना जगाई है।
    विश्वविद्यालयों ने पाठ्यक्रम में संशोधन को अपनाया, लचीली क्रेडिट प्रणाली, पसंद-आधारित पाठ्यक्रम और उद्योग के अनुरूप विशेषज्ञता की शुरुआत की। घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों प्रकार के अग्रणी संस्थानों के साथ सहयोगपूर्ण अनुसंधान संबंधी पहल समृद्ध हुई, जिससे वैश्विक मंच पर भारत के अनुसंधान आउटपुट को बढ़ावा मिला। शिक्षक एवं शिक्षण पर पंडित मदन मोहन मालवीय राष्ट्रीय मिशन, गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम, नेशनल मिशन ऑन मेंटरिंग, अटल एफडीपी आदि जैसे शिक्षक प्रशिक्षण प्रयासों का संकाय विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। स्वयं (जिसे वर्ष 2016 में पाठ्यक्रमों के संदर्भ में विस्तारित और समृद्ध किया गया) और एमओओसी जैसे डिजिटल शिक्षा प्लेटफार्मों के उदय ने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच में क्रांति ला दी। ऑनलाइन डिग्री कार्यक्रमों ने विकल्पों का और अधिक विस्तार किया।
    राष्ट्रीय डिजिटल विश्वविद्यालय की स्थापना परिवर्तनकारी हो सकती है। देश भर में इंटरनेट कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने पर केंद्रित ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘भारतनेट’ जैसी पहलों ने डिजिटल शिक्षण उपकरणों को व्यापक रूप से अपनाने का मार्ग प्रशस्त किया। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारत की प्रगति उसके प्रभावशाली अनुसंधान आउटपुट और नवाचार से भी जाहिर होती है। जैसा कि यूएस नेशनल साइंस फाउंडेशन की 2022 की रिपोर्ट में कहा गया है, वैज्ञानिक प्रकाशनों के क्षेत्र में भारत वर्ष 2010 में वैश्विक स्तर पर सातवें स्‍थान से लंबी छलांग लगाते हुए वर्ष 2020 में तीसरे स्थान पर रहा। वर्ष 2017 और वर्ष 2022 के बीच अनुसंधान आउटपुट में 54 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो वैश्विक औसत से अधिक रही। इस अवधि में 1.3 मिलियन अकादमिक पेपर और 8.9 मिलियन उद्धरण देखे गए। नवाचार में, वर्ष 2016-17 से वर्ष 2020-21 तक पेटेंट फाइलिंग में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

Swadesh Bhopal group of newspapers has its editions from Bhopal, Raipur, Bilaspur, Jabalpur and Sagar in madhya pradesh (India). Swadesh.in is news portal and web TV.

@2023 – All Right Reserved. Designed and Developed by Sortd