जातिगत जनगणना को लेकर देश में व्यापक स्तर पर बहस छिड़ी हुई है। इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कहा है कि जाति आधारित जनगणना लोगों के कल्याण के लिए सही है, लेकिन इसे चुनावों में राजनीतिक हथियार नहीं बनाया जाना चाहिए। सरकार को सिर्फ डेटा के लिए जातिगत जनगणना करवानी चाहिए। स्पष्ट है कि संघ जातिगत जनगणना का विरोध नहीं करता है। संघ का स्पष्ट मत है कि विभिन्न जाति वर्गों का उत्थान करने के लिए जातिगत डेटा का उपयोग किया जाना चाहिए। दरअसल, यह बात किसी से छिपी नहीं है कि जातिगत आंकड़ों का उपयोग अनेक राजनीतिक दल एवं ताकतें हिन्दू समाज को तोड़ने के लिए करती हैं। संघ की चिंता यही है कि जातिगत जनगणना के आंकड़ों का हिन्दू समाज को कमजोर करने के लिए दुरुपयोग न किया जाए। संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने स्पष्ट कहा है कि “हमारे हिन्दू समाज में जाति बहुत संवेदनशील मुद्दा है। जनगणना हमारी राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। इसे बहुत गंभीरता के साथ किया जाना चाहिए”। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि देश में जाति लंबे समय से संवेदनशील मुद्दा रहा है। यही कारण है कि अनेक बड़े राजनेताओं ने जातिगत जनगणना और जातिवादी राजनीति से किनारा किया है। याद हो कि देश में अंग्रेजों ने सबसे पहले 1931 में जातिगत जनगणना करायी थी, जिसे स्वतंत्र भारत में प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ही बंद कराया था। स्वतंत्रता के बाद जब 1951 की जनगणना की तैयारियां हो रही थीं, तब भी जाति जनगणना की मांग उठी। लेकिन तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने इसे खारिज कर दिया था। तब पटेल ने कहा था- “जाति जनगणना देश के सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ सकती है”। सरदार पटेल के इस कदम का समर्थन तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू, बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर और मौलाना आजाद ने भी किया था। जाति की गणना के मुद्दे पर पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक के विचार के ठीक उलट रवैया कांग्रेस के वर्तमान चेहरे राहुल गांधी ने अपनाया हुआ है। राहुल गांधी के साथ ही कांग्रेस को भी यह स्पष्ट करना चाहिए कि जातिगत जनगणना पर पंडित नेहरू, सरदार पटेल और राजीव गांधी के विचारों पर उसका क्या मत है? क्या राहुल गांधी अपने ही प्रेरणा पुरुषों को खारिज करने का साहस दिखाएंगे? बहरहाल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जातिगत जनगणना को लेकर अपने विचारों को स्पष्ट करके अच्छा ही किया। कम से कम अब हिन्दू समाज और राष्ट्रीय विचार के प्रति भ्रम पैदा करने के अवसर कम हो जाएंगे। यह सर्वविदित है कि हिन्दू समाज में विघटन पैदा करने की कोशिश करनेवाली ताकतें जातिगत जनगणना एवं आरक्षण इत्यादि विषयों पर भ्रम फैलाती हैं। विशेषकर भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दृष्टिकोण को लेकर मिथ्या प्रचार किया जाता है। जबकि झूठा विमर्श खड़ा करनेवाले इस पर कुछ नहीं बोलते कि जातिगत जनगणना पर कांग्रेस के प्रेरणा पुरुषों और पार्टी का अब तक क्या दृष्टिकोण रहा है? कांग्रेस आज तक इस पर तार्किक उत्तर नहीं दे सकी है कि जब उसकी सरकार ने 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जाति आधारित आंकड़े एकत्र किए थे, तब उन्हें जारी क्यों नहीं किया? दरअसल, कांग्रेस जातिगत जनगणना के मुद्दे को अपनी राजनीतिक जमीन को वापस पाने के लिए एक औजार की तरह उपयोग करना चाहती है, जिसके गंभीर दुष्प्रभाव भी सामने आ सकते हैं। इसलिए ही संघ ने चिंता जतायी है कि जाति आधारित जनगणना को राजनीतिक हथियार नहीं बनाया जाना चाहिए। लोगों के कल्याण के लिए ही जातिगत जनगणना के आंकड़ों का उपयोग किया जाना चाहिए। यही जातिगत जनगणना का उद्देश्य है।
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