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डूबतों को तिनका भी नसीब नहीं

  • विश्वास घुषे
    कितने लोग जानते हैं कि 25 जुलाई जल दुर्घटना रोकथाम का अंतर्राष्ट्रीय दिवस होता है?
    संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अप्रैल 2021 में इस दिवस का प्रस्ताव पारित किया, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी अपनाया। क्या शासन को इसकी कोई जानकारी है? यदि है, तो क्या उनकी ओर से कोई प्रभावी प्रयास देखे सुने जा रहे हैं? क्या ऐसी पहल की है, जिससे समाज सेवा कार्य में सहभागी बन सके? क्या नगर निगम एवं जल प्रबंधन आदि सरकारी विभाग, जिन पर लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है, इस विषय में कोई ठोस कार्य रहे हैं?
    ये प्रश्न किसी पर भी उंगली उठाने के लिये नहीं हैं। सभी को आत्मचिंतन की आवश्यकता है। स्वप्रेरणा से ही उत्कृष्ट कार्य संभव है ताकि उपेक्षा से होने वाले परिणामों पर ध्यान जा सके। दुनिया में प्रतिवर्ष 2,36,000 लोगों की डूबने से मौत हो जाती है। यानि 647 प्रतिदिन, या 27 प्रति घंटा। इनमें 1 से 14 वर्ष के बच्चों की संख्या 82,000 है। ये विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकडे हैं। और भारत की क्या स्थिति है? राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो देश में दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों का हिसाब रखता है। इनमें डूबने को भी एक मुख्य कारण माना गया है क्योंकि 2021 में दुर्घटना से हुई कुल मौतों में यह 9.30 प्रतिशत था। कुल 36,362 लोगों की इससे मृत्यु हुई। यानी प्रतिदिन 100, या हर घंटे 4 मौतें! महाराष्ट्र में यदि सबसे अधिक 5056 मौतें होती हैं, तो मध्यप्रदेश भी पीछे नहीं है, जो हर साल 4719 डूबने से हुई मौतों का गवाह बनता है।
    सब कितना दु:खद, भयावह निराशाजनक है! अनेक परिवार उजड़ गए हैं। अपनों को जल दुर्घटनाओं में खोने की त्रासदी को भुगतने वाले कुछ परिवार, मित्रगण या रोटरी जैसी संस्थाएं इसमें कुछ कार्य कर रही हैं। भोपाल स्थित ‘मन्दार एंड नो मोर’ अभियान तो इसी कारण 2015 में अस्तित्व में आया और सुरक्षा के कार्यों को समर्पित हो गया है। केरवा जलाशय और पातालपानी में इस संस्था के कार्य करने के बाद दुर्घटनाएं अनेक सालों तक थम गईं। इनके जागरूकता कार्यक्रम ‘तिनका’ ‘कारवां सुरक्षा का’ नुक्कड नाटक और प्राथमिक उपचार, सीपीआर आदि के प्रशिक्षण कार्यक्रम बहुत सराहे जाते हैं।
    प्रत्येक नागरिक रोकथाम में सहयोग कर सकता है। हम अनेक तरह के जलाशयों से घिरे रहते हैं जहां कभी भी ऐसा हादसा हो सकता है। आधी बाल्टी पानी में भी छोटे बच्चों के डूबने के समाचार आते रहते हैं। गर्मी की छुट्टियों अथवा वर्षा ऋतु में जब अनेक स्थान जल भराव रूप ले लेते हैं और जलाशयों में भी पानी का स्तर एवं बहाव बढ़ जाता है, तब खेल-खेल में डूबने की दुर्घटनाओं की आशंका और अधिक हो जाती है। ऐसे ही समय में सभी को जागरूक एवं सचेत करना बहुत प्रभावी रहता है।
    साथ ही समाज को यह भी स्मरण दिलाना आवश्यक होता है कि हमेशा पीड़ित व्यक्ति ही किसी दुर्घटना के लिये जिम्मेदार नहीं होता। प्रत्येक हादसे को किशोर उम्र में की गई लापरवाही कहकर हम समस्या को नजरअन्दाज नहीं कर सकते। जनसामान्य की सुरक्षा के लिये सभी को मिलकर अनेक उपाय करने पड़ते हैं। विश्व जलदुर्घटना रोकथाम दिवस का संदेश है कि ‘डूबने की दुर्घटना किसी के साथ कभी भी हो सकती है। आशा है कि आज आप भी यह संकल्प लेंगे कि स्वयं सुरक्षित रहेंगे और अपने परिवार एवं मित्रों को भी सुरक्षा के प्रति सचेत रहने का स्मरण कराएंगे। यही इस दिवस का उद्देश्य है।

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