देशभर में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पर जनता की ओर से माँग उठ ही रही थी कि अब न्यायालय ने भी इस आशय की टिप्पणी की है। तीन तलाक से जुड़े मामले की सुनवाई करते समय मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने समान नागरिक संहिता का पक्ष लेते हुए टिप्पणी की है कि “समय आ गया है कि अब देश समान नागरिक संहिता की आवश्यकता को समझे। समाज में आज भी आस्था और विश्वास के नाम पर कई कट्टरपंथी, अंधविश्वासी और अति-रूढ़िवादी प्रथाएं प्रचलित हैं। इससे अंधविश्वास और बुरी प्रथा पर रोक लगेगी”। समान नागरिक संहिता पर इससे बड़ी टिप्पणी नहीं हो सकती। न्यायालय की ओर से कहा जा रहा है कि देश को यह बात समझनी चाहिए कि समान नागरिक संहिता की माँग किसी संप्रदाय विशेष के विरुद्ध नहीं है अपितु यह तो सच्चे अर्थों में ‘सेकुलर स्टेट’ की पहचान है। जो लोग भारत की रक्षा करने का दंभ भरते हैं और आजकल संविधान की पॉकेट साइट प्रति को हाथों में लेकर लहरा रहे हैं, उन्हें भी यह पता होना चाहिए कि समान नागरिक संहिता का आग्रह संविधान की मूल भावना के अनुरूप है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद-44 समान नागरिक संहिता को लागू करने पर जोर देता है। अब समय आ गया है कि संविधान के इस आग्रह को धरातल पर उतारा जाए। ताकि देश के सभी नागरिकों को समान अवसर प्राप्त हों। यह देश की विडम्बना है कि स्वयं को प्रगतिशील एवं सेकुलर कहनेवाला बुद्धिजीवी खेमा ही समान नागरिक संहिता का सबसे अधिक विरोध करता है। ऐसा करने हुए उसके सेकुलर नकाब के पीछे से सांप्रदायिक और तुष्टीकरण की सोच झांकती हुई दिखायी देती है। जब हम संविधान, पंथ निरपेक्षता और सबको समान दृष्टि से देखने की बात करते हैं, तब कोई भी कारण नहीं रह जाता कि हम समान नागरिक संहिता का विरोध करें। मुस्लिम महिलाओं के साथ होनेवाले भेदभाव और अत्याचार के प्रति संवेदनाएं दिखाते हुए मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ के न्यायमूर्ति अनिल वर्मा ने तीन तलाक को गंभीर मुद्दा बतया और कहा कि “तीन तलाक में शादी को कुछ ही सेकेंड में तोड़ा जा सकता है और समय वापस नहीं लाया जा सकता। दुर्भाग्य की बात है कि यह अधिकार केवल पति के पास है और अगर पति अपनी गलती सुधारना भी चाहे तो निकाह हलाला के अत्याचारों को महिला को ही झेलना पड़ता है”। यकीनन, आज के आधुनिक समय में हलाला जैसी व्यवस्था महिलाओं पर किसी अत्याचार से कम नहीं है। ऐसी सभी प्रकार की कुप्रथाओं एवं अव्यवस्थाओं पर लगाम लग जाएगी, यदि समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया गया। विश्वास किया जा रहा था कि यदि प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा सरकार को लोकसभा चुनाव में जनता का भरपूर समर्थन मिला होता तो अब तक मोदी सरकार इस नेक कार्य को सम्पन्न करने की दिशा में आगे बढ़ चुकी होती। इसके बाद भी उम्मीद है कि संविधान की मूल भावना का सम्मान करते हुए देश में समान नागरिक संहिता को लागू कोई कर सकता है, तो वह प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार कर सकती है। उच्च न्यायालय की टिप्प्णी को आधार बनाकर केंद्र सरकार को इस दिशा में जल्द कोई ठोस पहल करनी चाहिए। समान नागरिक संहिता को अब और अधिक समय तक के लिए टाला नहीं जा सकता है।
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