केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में कर्मचारियों के शामिल होने पर लगे प्रतिबंध को हटाकर नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा की है। अब कर्मचारी संघ की गतिविधियों में सामान्य नागरिकों की भाँति शामिल हो सकेंगे। नि:संदेह, सरकार का यह निर्णय लोकतंत्र और संविधान की भावना को मजबूत करनेवाला है। भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार देता है कि वह विविध सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक संगठनों में शामिल हो सके। एक सामान्य नागरिक की भाँति यह अधिकार कर्मचारियों को भी प्राप्त है कि अपने कार्यालयीन समय के बाद सामाजिक गतिविधियों का हिस्सा हो सकते हैं। परंतु, लोकतंत्र और संविधान की दुहाई देनेवाली कांग्रेस की सरकार ने 58 वर्ष पहले 1966 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इतना ही नहीं, सरकारी कर्मचारी के आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर विरुद्ध कठोर कार्रवाई का विधान भी रखा गया था। यह एक प्रकार से राष्ट्रीय विचार के प्रति झुकाव रखनेवाले लोगों को हतोत्साहित करने का प्रयास ही था। कांग्रेस की नीयत को समझिए कि उसने ऐसा कोई प्रतिबंध इस्लामिक, ईसाई, कम्युनिस्ट और अन्य प्रकार के संगठनों की गतिविधियों में शामिल होने पर नहीं लगाया था। यानी कर्मचारी इस्लामिक एवं ईसाई संगठनों से जुड़ सकता था लेकिन हिन्दू संगठन की गतिविधियों में शामिल नहीं हो सकता था। कांग्रेस की इस तानाशाही एवं द्वेष का उत्तर संघ ने तो कभी नहीं दिया लेकिन समाज ने अवश्य ही कांग्रेस को आईना दिखाने का कार्य किया। कांग्रेस एवं अन्य ताकतों ने संघ को दबाने एवं समाप्त करने के लिए अनेक प्रयत्न किए। इस आदेश के अतिरिक्त तीन बार पूर्ण प्रतिबंध भी लगाया। संघ की छवि खराब करने के लिए बड़े-बड़े नेताओं की ओर से मिथ्या प्रचार भी किया गया। अपने समर्थक बुद्धिजीवियों से पुस्तकें भी लिखवायी गईं। लेकिन संघ विरोधियों के ये सब धतकरम विफल हो गए। निस्वार्थ भाव से देश और समाज के लिए कार्य करनेवाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कोई रोक नहीं सका। अपनी 99 वर्ष की यात्रा में संघ ने लगातार प्रगति एवं विस्तार ही किया है। अपने विचार, आचरण एवं सेवाकार्यों से संघ ने समाज का विश्वास जीता, जिसके कारण समाज सदैव संघ के साथ खड़ा रहा। कांग्रेस सरकार का यह आदेश भी सरकारी कर्मचारियों को संघ कार्य में सहभागी होने से रोक नहीं सका। कई ऐसे उहाहरण हैं, जिनमें संघ गतिविधि में शामिल होने पर कांग्रेस की सरकारों ने सरकारी कर्मचारी के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई की। लेकिन वे सभी मामले न्यायालय में टिक नहीं सके। संघ के स्वयंसेवक न्यायालय से जीतकर आए। उनकी छोटी-छोटी जीतों की शृंखला ने भी यह साबित किया कि संघ की गतिविधियों में शामिल होने से रोकने के लिए लगाया गया कांग्रेस सरकार का आदेश निरर्थक और संविधान एवं मौलिक अधिकारों की मूल भावना के विरुद्ध था। अपने राजनीतिक स्वार्थों के चलते कांग्रेस की तत्कालीन सरकार द्वारा शासकीय कर्मचारियों को संघ जैसे रचनात्मक संगठन की गतिविधियों में भाग लेने के लिए निराधार ही प्रतिबंधित किया गया था। कहना होगा कि शासन का वर्तमान निर्णय समुचित है और भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को पुष्ट करने वाला है।वैसे तो इस प्रतिबंध का कोई औचित्य नहीं रह गया था लेकिन फिर भी केंद्र सरकार ने इसे हटाकर अच्छा ही किया।
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