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- प्रहलाद सबनानी
पिछले कुछ वर्षों से निगमित अभिशासन को विभिन्न बैकों एवं कम्पनियों में लागू करने के भरपूर प्रयास किए जा रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी इस सम्बंध में विस्तार से दिशा निर्देश जारी किए हैं एवं इन्हें सहकारी क्षेत्र के बैंकों में लागू करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के पश्चात अमेरिका में लागू की गई पूंजीवाद की नीतियों के चलते कम्पनियों को अमेरिकी सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करने की खुली छूट दी गई थी ताकि अमेरिकी में बिलिनायर नागरिकों की संख्या तेजी से बढ़ाई जा सके ताकि अमेरिका एक विकसित राष्ट्र की श्रेणी में शामिल हो जाय। अमेरिका एवं अन्य देशों में व्यापार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अमेरिका में आर्थिक नियमों में भारी छूट दी गई थी। इस छूट का लाभ उठाते हुए कई अमेरिकी कम्पनियों ने अन्य देशों में भी अपने व्यापार का विस्तार करते हुए अपनी कई कम्पनियां इन देशों में स्थापित की और बाद में उन्हें बहुराष्ट्रीय कम्पनियां कहा गया। अमेरिका में स्थापित कम्पनियां दूसरे देशों में स्थापित अपनी सहायक कम्पनियों की अमेरिका में बैठकर देखभाल तो कर नहीं सकती थी अतः उन्होंने अन्य देशों में स्थापित कम्पनियों के बोर्ड में अपने प्रतिनिधि, निदेशक के तौर पर भर्ती किए। इस बोर्ड को चलाने के साथ ही इन देशों में इन कम्पनियों द्वारा व्यापार को विस्तार देने के उद्देश्य से इस सम्बंध में नियमों की रचना की गई, जिन्हें बाद में निगमित अभिशासन का नाम दिया गया। वर्ष 1970 के आसपास अमेरिका में एवं अन्य यूरोपीयन देशों में निगमित अभिशासन के सम्बंध में बहुत शोध कार्य सम्पन्न हुआ एवं निगमित अभिशासन के कई मॉडल एवं सिद्धांत विकसित हुए, जिन्हें भारत में भी लागू करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
हालांकि भारत में तो प्राचीन काल से ही आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन सम्बंधी नियमों का अनुपालन किया जाता रहा है। सनातन संस्कृति में कर्म एवं अर्थ को धर्म से जोड़ा गया है। अतः प्राचीन भारत में धर्म का पालन करते हुए ही आर्थिक गतिविधियां सम्पन्न होती रही हैं। इस प्रकार, आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन तो व्यापार में उपयोग होता ही रहा है। ब्रिटिश मूल के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं इतिहासकार श्री एंगस मेडिसिन द्वारा सम्पन्न किए के शोध के अनुसार एक ईसवी पूर्व से 1750 ईसवी तक वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत से 48 प्रतिशत के बीच रही है और भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इतने बड़े स्तर पर होने वाले व्यापार में अभिशासन की नीतियों का अनुपालन तो निश्चित रूप से होता ही होगा। परंतु, पश्चिमी देश निगमित अभिशासन को एक नई खोज बता रहे हैं। प्राचीन काल में भारत में आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन के अनुपालन का स्तर बहुत उच्च था। एक घटना के माध्यम से इसे सिद्ध भी किया जा सकता है। एक किसान ने एक अन्य किसान से जमीन के टुकड़ा खरीदा। उस किसान ने जब जमीन में खुदाई शुरू की तो उसे खुदाई के दौरान उस जमीन में सोने के सिक्कों से भरा एक घड़ा मिला। इस घड़े को लेकर वह किसान जमीन के विक्रेता किसान के पास पहुंचा और बोला आपसे जो जमीन का टुकड़ा मैंने खरीदा था उसमें सोने के सिक्कों से भरा यह घड़ा मिला है, मैंने तो चूंकि आपसे केवल जमीन खरीदी है अतः इस घड़े पर आपका अधिकार है। विक्रेता किसान ने उस घड़े को लेने से इसलिए इंकार कर दिया कि क्योंकि अब तो वह जमीन मैं आपको बेच चुका हूं अतः अब जो भी वस्तु अथवा पदार्थ इस जमीन से प्राप्त होता है उस पर जमीन के क्रेता अर्थात केवल आपका अधिकार है।