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त्यागपूर्वक उपभोग

  • राजेश पाठक
    ‘ सोशल मीडिया पर अब तक इतने पेड़ लग गए कि गर्मी के तेवर आखिर ढीले पड़ ही गए !’ इस साल गर्मी ज्यादा क्या पड़ी कि सोशल मीडिया पर वक्त गुजरने वालों ने इसका कारण पेड़ों की बढ़ती कटाई और वृक्षारोपण के अभाव में ढूंढा। फिर जिसको देखो वो इसे पोस्ट की शक्ल में आगे बढ़ाते दिखा। इसकी प्रतिक्रिया में ही किसी ने इस लेख में उद्धृत प्रथम पंक्ति के रूप में लगे हाथ कटाक्ष भी कर डाला ।
    जीवन शैली के स्थान पर उसके परिणाम पर चिंतन केन्िद्रत होने से परिवर्तन के नाम पर हाथ में ज्यादा कुछ लगे इसकी गुंजाइश न के बराबर ही समझी जाये तो ठीक। बिजली विभाग ने अभी संचार पत्रों में एडवाइजरी जारी कर बताया कि बिजली की बचत और बढ़ते तापमान पर अंकुश लगाने में एसी (एयर कंडीशनर ) का सदुपयोग भी योगदान दे सकता है। 27 डिग्री के नीचे तापमान सेट करने पर कंप्रेसर को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। बिजली ज्यादा खर्च होती है। एयर फिल्टर को साफ भी करते रहें। ध्यान रहे कि चलता एसी दीवारों से घिरे कमरे के अन्दर जहां ठंडक प्रदान करता है, दीवारों के उस पार तापमान को अत्यधिक बढ़ाकर उन रहवासियों पर मुसीबत बनकर टूटता है। बिजली की बचत भी पेड़ों को बचा सकती है। पर्यावरणविदों के अनुसार एक यूनिट बिजली बनाने में 875 ग्राम कोयला जलता है।
    ‘ जिस हाल में हम बेृैठें हैं, यहां पांच एसी लगें हैं। हमने चार स्विच ऑफ कर रखें हैं और हम एक एसी के सहारे आराम से हैं ’- अपनी सभा में ये बात आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर चेतन सिंह रखते हैं। ‘सोलर स्वराज’ के अपने अभियान के अंतर्गत चेतन ने ‘AMG’ के तीन सूत्र – Avoid , Minimise, Generate के साथ नवम्बर 2020 से पदयात्रा शुरू की है। इसमें Avoid का अर्थ है जहां तक हो सके विद्युत के उपयोग से बचो; Minimize यानी सम्भव न हो तो न्यूनतम उपभोग का पालन करो ; साथ ही Generate अर्थात सौर ऊर्जा के माध्यम से इसको स्वयं पैदा करो। 
    जो चेतन कहते हैं, वही बात धर्मशास्त्र में इस प्रकार कही गयी है- ‘ ओउम ईशा वस्यमिदं सर्व यात्किंच्य जगत्यां जगत. तेन त्यक्तेन भुंजीथा माँ गृद्ध कस्यस्विद्धनम.’ अर्थात , ‘ईश्वर की सत्ता जगत के हर भाग में विद्यमान है, इसलिए सम्पदा भगवान की है और इसलिये सम्पदा का त्यागपूर्वक उपभोग करें। (ईशावास्योपनिषद)
    पिछले साल के आंकड़े के अनुसार दुनिया भर में 36 करोड़ से अधिक एसयूवी (स्पोर्ट यूटिलिटी व्हीकल) कारें इस्तेमाल हो रहीं थी। ये कारें 200 से 300 किलोग्राम ज्यादा वजनी होती हैं इसलिए इन्हें ज्यादा ईधन चाहिए। बताया जाता है कि इन कारों से 20 प्रतिशत कार्बन डायऑक्साइड अधिक वातावरण में घुलता है।
    सामान्य बोध कहता है कि प्रकृति आपकी आवश्यकता की पूर्ति तो कर सकती है, बेलगाम उपभोग की लालसा को नहीं। इसलिए हमें प्रकृति को बचाना है तो अपनी जीवनशैली को बदलना होगा। पश्चिम में कई लोगों ने प्रकृति की ओर लौटना शुरू किया है।

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