- लद्दाख में सियाचिन ग्लेशियर में ऑपरेशन मेघदूत के 40 साल पूरे होने के मौके पर एक वीडियो जारी किया है।
नई दिल्ली । भारतीय सेना ने दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र लद्दाख में सियाचिन ग्लेशियर में ऑपरेशन मेघदूत के 40 साल पूरे होने के मौके पर एक वीडियो जारी किया है। जिसमें दिखाया गया कि दुर्गम इलाकों में सेना के जवान बड़ी मुस्तैदी के साथ वहां डटे हुए हैं। वीडियो में सफेद चादर से ढके ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ते हुए भारतीय सेना के जवानों को दिखाया गया है। सियाचिन ग्लेशियर में ऑपरेशन मेघदूत के 40 साल के सफर को वीडियो में दिखाया गया है। दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र लद्दाख में सियाचिन ग्लेशियर में फहराए गए तिरंगे को भी साझा किया गया है।
ऐसे हुई ऑपरेशन मेघदूत की शुरुआत
इसकी वजह से उन्होंने सबसे पहले अपनी सेना भेजने का फैसला कर लिया। इसके लिए पाकिस्तान लंदन के एक सप्लायर को ठंड से बचने वाले कपड़ों का ऑर्डर दे दिया। लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि वही सप्लायर भारत को भी ठंड से बचने वाले कपड़ों की आपूर्ति करता है।
भारत ने पाकिस्तान के पर्वतारोहण कार्यक्रमों पर रोक लगाने के लिए उत्तरी लद्दाख में सेना और ग्लेशियर के कई अन्य हिस्सों में पैरामिलिटरी फोर्स की तैनाती का फैसला किया। इसके लिए 1982 में अंटार्कटिक में हुए एक अभियान में हिस्सा ले चुके सैनिकों को चुनाव किया गया, जो ऐसी विषम परिस्थितयों में रहने के लिए अभ्यस्त थे।
पाकिस्तान सेना को मात देने के लिए भारतीय सेना ने 13 अप्रैल 1984 को ग्लेशियर पर कब्जा करने का फैसला किया। जो पाकिस्तान के तय तारीख 17 अप्रैल से चार दिन पहले ही था। इसे ऑपरेशन का कोडनेम ‘ऑपरेशन मेघदूत’ रखा गया। इस ऑपरेशन की अगुवाई की जिम्मेदारी लेफ्टिनेंट जनरल प्रेम नाथ हून के कंधों पर दी गई। वे उस वक्त जम्मू कश्मीर में श्रीनगर 15 कॉर्प के जनरल कमांडिंग ऑफिसर थे। भारतीय सेना के कर्नल नरिंदर कुमार उर्फ बुल कुमार की अगुवाई में चढ़ाई की शुरुआत हो गई।
इस दल की अगुवाई कर रहे लेफ्टिनेंट कर्नल (बाद में ब्रिगेडियर) डीके खन्ना ने पाकिस्तानी रडार से बचने के लिए आगे का रास्ता पैदल ही तय करने का फैसला किया था। इसके लिए सेना को कई टुकड़ियों में बांट दिया गया। ग्लेशियर पर कब्जा करने के लिए मेजर आरएस संधु की अगुवाई में पहली टुकड़ी को आगे भेजा गया।