लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले नेताओं का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कांग्रेस डूबता जहाज बन गई है, जिस पर कोई भी समझदार व्यक्ति रुकना नहीं चाहता है। स्थिति यह है कि छोटे-बड़े नेता ही नहीं अपितु मीडिया के माध्यम से देश की जनता के सामने तार्किक ढंग से कांग्रेस पक्ष रखनेवाले प्रमुख प्रवक्ता भी पार्टी को छोड़ रहे हैं। संभव है कि आनेवाले समय में कांग्रेस के पास कोई ढंग का प्रवक्ता भी न बचे। राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ के बाद अब रोहन गुप्ता ने भी कांग्रेस को विदा कह दिया है। जब भी कोई नेता अपनी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में जाता है, स्वाभाविक ही आरोपों की बौछार कर देता है। परंतु, कांग्रेस के संबंध में जिस प्रकार की टिप्पणी की जा रही हैं, उनमें नयापन कुछ भी नहीं है। देश की जनता उन आरोपों से परिचित है। सामान्य आरोप होने के बाद भी ये कांग्रेस को गंभीर नुकसान पहुँचा रहे हैं। उसका कारण है कि कांग्रेस को लेकर जनता का जो मानस पहले से बना है, ये आरोप उसको ही पुष्ट करते हैं। जैसे गौरव वल्लभ ने आरोप लगाए कि कांग्रेस ने उन्हें जबरन अदाणी के खिलाफ बोलने के लिए कहा था। कांग्रेस में नेताओं को इस बार के लिए कहा जाता है कि वे उद्योगपतियों को बुरा-भला बोलें। सनातन का पक्ष न लें। भाजपा की सदस्यता लेने के बाद गौरव वल्लभ ने खुलकर कहा कि उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा इसलिए दिया है क्योंक वे सनातन विरोधी नारे नहीं लगा सकते और ‘वेल्थ क्रिएटर्स’ को गाली नहीं दे सकते हैं। जनता के मन में भी यह बात पहले से बैठी हुई है कि कांग्रेस देश के उद्योगपतियों को निशाने पर ले रही है। गौरव वल्लभ के आरोपों ने इसी अवधारणा को और गहरा किया। वहीं, गुजरात के कांग्रेस नेता एवं प्रवक्ता रोहन गुप्ता ने भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद कहा कि “कितने विरोधाभास हो सकते हैं? एक संचार प्रभारी हैं जिनके नाम में ‘राम’ है, जब सनातन (धर्म) का अपमान हो रहा था तब उन्होंने हमको कहा कि आप चुप रहो। देश के नाम का उपयोग करके एक गठबंधन बनाया गया लेकिन उसमें ‘देश विरोधी ताकतों’ को जोड़ा गया”। रोहन गुप्ता ने जो आरोप लगाए उसकी अनुभूति पहले से देश की जनता को है। जब स्टालिन एवं अन्य लोग सनातन का अपमान कर रहे थे, तब कांग्रेस ने पूरी तरह चुप्पी साध रखी थी। अब तक कांग्रेस ने ऐसे नेताओं और पार्टियों से दूरी नहीं बनायी है। इसी तरह देश की आम जनता आज तक विपक्षी गठबंधन के नाम को स्वीकार नहीं कर पा रही है। जिस समय विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन का नामकरण ‘इंडिया’ किया था, उसी समय से कई राजनेताओं और राजनीतिक दलों के साथ ही आम नागरिकों ने भी इसका विरोध किया था। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गठबंधन में रहते हुए, इस नाम का विरोध किया था। जबकि उस समय गठबंधन को आकार देने में उसकी सक्रियता सबसे अधिक थी। दरअसल, सब यही कह रहे थे कि कांग्रेस ने विपक्षी गठबंधन के प्रति सहानुभूति जुटाने एवं उसकी नीतियों पर पर्दा डालने के लिए चालाकी से गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ चुना। कोई उनके गठबंधन की आलोचना करे तो उसके भारत विरोधी कहा जा सकते, यह भी एक मंशा थी। इसलिए समझदार लोग अभी भी कांग्रेसनीत गठबंधन को ‘इंडी’ या ‘आईएनडीआईए’ गठबंधन कहते हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो कांग्रेस को दोहरा नुकसान हो रहा है। एक, अच्छे नेता उसका साथ छोड़ रहे हैं। दूसरा, कांग्रेस के बारे में आम जनता की धारणा पक्की होती जा रही है। कांग्रेस में जो समझदार नेता हैं, उन्हें आगे आकर स्थितियों को संभालना होगा। पार्टी छोड़नेवाले नेताओं को बुरा-भला कहने से बात नहीं बनेगी अपितु उन्हें पार्टी के बारे में पुनर्विचार करना चाहिए। हालांकि, इसकी संभावना कम है क्योंकि कांग्रेस में इस समय कम्युनिस्ट विचारधारा के नेताओं का प्रभाव अधिक है। कांग्रेसी सोच का कार्यकर्ता एवं नेता हासिए पर धकेल दिए गए हैं।
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