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- प्रोफेसर (डॉ.) साईराम भट्ट
न्याय तक पहुंच एक निष्पक्ष और न्यायसंगत समाज का आधार होता है। यह न केवल कानून के शासन का सार होता है, बल्कि लोकतंत्र की आधारशिला के रूप में भी कार्य करता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 22(1), और 39 ए के तहत मौलिक अधिकार के रूप में निहित, न्याय तक पहुंच का मतलब सिर्फ कानूनी व्यवस्था का मौजूद होना नहीं है। इसके विभिन्न आयाम होते हैं, जिनमें न्यायिक व्यवस्था की प्रभावशीलता, दूरी के संदर्भ में उचित पहुंच, त्वरित फैसले और किफायती कानूनी व्यवस्था शामिल हैं, जैसा अनीता कुशवाह बनाम पुष्पा सदन (2016) के ऐतिहासिक मामले में रेखांकित किया गया है।
हाल ही में ‘न्याय तक पहुंच’ को ‘न्याय में आसानी’ के बराबर माना गया है। ‘न्याय में आसानी’ शब्दावली को कई मंचों पर न केवल नैतिक अनिवार्यता के रूप में व्यक्त किया गया है, बल्कि इसका संदर्भ यह सुनिश्चित करने के लिए भी दिया गया है कि यह सभी के लिए एक जीवंत वास्तविकता है। भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के हीरक जयंती समारोह में ‘न्याय में आसानी हर नागरिक का अधिकार है’ का आह्वान किया है। न्याय में आसानी; बाधाओं को दूर करके, पहुंच में विस्तार करके, भौगोलिक पहुंच में सुधार करके, दक्षता बढ़ाकर, वैकल्पिक विवाद समाधान को बढ़ावा देकर और कानूनी साक्षरता को प्रोत्साहन देकर न्याय तक पहुंच के पूरक के रूप में कार्य करती है।
हालांकि, न्याय तक न्यायसंगत पहुंच की यह यात्रा बहुआयामी है, जिसके लिए न्यायपालिका, सरकार, कानूनी पेशेवरों, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र जैसे हितधारकों के ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। भारत सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए ठोस प्रयास कर रही है कि न्याय तक पहुंच प्रत्येक नागरिक का अधिकार बन जाए और यह कुछ लोगों का विशेषाधिकार न रह जाए। भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री डीवाई चंद्रचूड़ का कथन एकदम उचित है, पहुंच के बिना न्याय केवल एक अमूर्त विचार है।
इसे आगे बढ़ाते हुए, कानूनी सेवाओं का नागरिक-केंद्रित वितरण सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा 2021 में पहली बार न्याय तक पहुंच पर एक समर्पित योजना- ‘न्याय तक समग्र पहुंच के लिए अभिनव समाधान तैयार करना’ (दिशा) – की परिकल्पना की गई। मूल रूप से इस योजना का उद्देश्य प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर और अदालतों में मुकदमा दाखिल होने से पहले कानूनी पेशेवरों की शुल्क-मुक्त उपस्थिति के जरिये न्याय तक पहुंच की सुविधा सुनिश्चित करना है। नागरिकों को विभिन्न सरकारी सेवाएं प्रदान करने के लिए सरकार के नोडल केंद्र के रूप में कार्यरत सामान्य सेवा केन्द्रों पर उपलब्ध टेली-वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाओं के उपयोग और मोबाइल ऐप के माध्यम से, नागरिक अधिवक्ताओं से बातचीत करते हैं और एक औपचारिक मुकदमे की शुरुआत से पहले समय पर कानूनी सलाह लेते हैं। टेली-लॉ सेवा के रूप में लोकप्रिय, यह नागरिकों को एक वकील के साथ बातचीत करने और अपनी शिकायतों के निवारण के लिए सही रास्ता ढूंढने का अधिकार देती है।
लॉकडाउन और आवाजाही पर प्रतिबंध की अवधि के दौरान भी, टेली-लॉ ने कानूनी सेवाओं की निरंतरता सुनिश्चित की, क्योंकि इससे अधिवक्ता फ़ोन के जरिये लोगों से जुड़ने और उनके सामाजिक-कानूनी प्रश्नों का समाधान करने में सक्षम हुए। टेली-लॉ सेवा से 783 जिलों और 2.5 लाख ग्राम पंचायतों के 69 लाख से अधिक नागरिक लाभान्वित हुए हैं।
इसके अतिरिक्त, सरकार की न्याय बंधु (नि:शुल्क कानूनी सेवाएं) पहल कानूनी प्रतिनिधित्व की आवश्यकता वाले लोगों और उपलब्ध संसाधनों के बीच अंतर को कम करती है। 10,000 से अधिक स्वयंसेवी वकीलों के नेटवर्क के साथ, न्याय बंधु अपने मंच पर पंजीकृत आवेदकों को नि:शुल्क गुणवत्तापूर्ण कानूनी सहायता प्रदान करता है। विधि महाविद्यालयों में प्रो बोनो क्लब कानून से जुड़े युवाओं के बीच स्वयंसेवा और सामाजिक जिम्मेदारी की संस्कृति को विकसित करते हैं।
एक सचेत समाज के निर्माण के उद्देश्य से, सरकार का लक्ष्य कानूनी साक्षरता और कानूनी जागरूकता बढ़ाकर, वेबिनार आयोजित करके, अभियानों को बढ़ावा देकर और ज़मीनी स्तर पर कानूनी सशक्तिकरण कार्य में लगी एजेंसियों का समर्थन करके अपनी आउटरीच और शिक्षा पहल को प्राथमिकता देना है। यह दृष्टिकोण पोस्टर, पर्चा, ब्रोशर, कॉमिक्स, यूट्यूब वीडियो, पॉडकास्ट आदि के रूप में सरलीकृत कानूनी ज्ञान बैंक विकसित करते हुए प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से इसे प्रासंगिक तरीके से प्रसारित करने तथा मंत्रालयों, विभागों, संस्थानों, स्कूलों आदि के साथ साझेदारी करने पर जोर देता है। इससे मौजूदा अग्रिम पंक्ति के पदाधिकारियों या स्वयंसेवकों की क्षमता निर्माण में और समय-समय पर इसकी प्रगति की समीक्षा करने के लिए संकेतक विकसित करने में सुविधा मिलती है। 2021 से 15 कार्यान्वयन एजेंसियों से सिक्किम, मणिपुर, मेघालय, दिल्ली, अरुणाचल प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार और ओडिशा के क्षेत्रों में 7 लाख से अधिक लोगों को लाभ हुआ है। हाल ही में लॉन्च किए गए ‘हमारा संविधान हमारा सम्मान’ अभियान का उद्देश्य नागरिकों में संवैधानिक मूल्यों और सिद्धांतों को स्थापित करना तथा उन्हें कानूनी अधिकारों, कर्तव्यों और हकों के बारे में आकर्षक व रचनात्मक तरीके से शिक्षित करना है।
नागरिकों को एआई और अन्य उभरती प्रौद्योगिकियों के माध्यम से कानूनी जानकारी, कानूनी सलाह, कानूनी प्रतिनिधित्व की सुविधा प्रदान करने के लिए एकल एकीकृत इंटरफ़ेस, ‘न्याय सेतु’ विकसित किया गया है। टेली-कॉलर्स, विशेषज्ञ अधिवक्ताओं और परामर्शदाताओं से युक्त सीआरएम (ग्राहक संबंध प्रबंधन) प्रणाली को कानूनी प्रश्नों के उत्तर देने के लिए न्याय सेतु में शामिल किया गया है।
निष्कर्ष के तौर पर, पिछले दशक में, सरकार ने भारत में न्याय तक पहुंच में क्रांति लाने के लिए अभिनव रणनीतियों को लागू किया है, तकनीकी प्रगति को अपनाया है तथा संयोजन और सहयोग को बढ़ावा दिया है। नागरिक-केंद्रित दृष्टिकोण को प्राथमिकता देकर, एक सुलभ, न्यायसंगत और उत्तरदायी कानूनी सहायता इकोसिस्टम का निर्माण किया जा सकता है, जो शांति, न्याय और मजबूत संस्थानों से जुड़े सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी)-16 को हासिल करने में योगदान देगा।