आचार्य विष्णु हरि
हलद्वानी हिंसा के संदेश बहुत ही डरावने हैं, अमानवीय है, विखंडनकारी है, संविधान और कानून के शासन के लिए प्रतिकूल है, समानांतर सरकार के प्रतीक है, इससे तालिबानी हिंसा की आहट सुनाई देती है। ऐसी हिंसा पर सिर्फ उत्तराखंड की सरकार को ही चिंतन की जरूरत नहीं है, पूरे देश को चिंता करने की जरूरत है, न्यायालयों को भी चिंता करने की जरूरत है। ऐसी हिंसा के नियंत्रण पर ठोस नीति बनाने की जरूरत है। सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसी हिंसा सिर्फ अचानक घटती नहीं है बल्कि इसके पीछे साजिश होती है, तैयारी होती है।
खासकर मजहबी मानसिकताएं इसके परिधि में होती है। मजहबी आड़ में अवैध कब्जा और गुंडागर्दी की आदत अब आम बात हो गयी है। ऐसी घटनाएं सिर्फ उत्तराखंड की हलद्वानी मे ही नहीं घटी हैं बल्कि देश के कोने कोने में घट रही हैं। क्या आपको हरियाणा के मेवात में मजहबी भीड़ द्वारा थाना जलाने की घटना याद नहीं है? दुखद यह है कि ऐसी हिंसा पर वोट की राजनीति हावी हो जाती है, तुष्टिकरण की नीति हावी हो जाती है, लीपापोती का खेल शुरू हो जाता है, हिंसक लोग ही अपने आप को पीड़ित घोषित कर देते हैं, पुलिस और प्रशासन को ही खलनायक और हिंसक घोषित कर देते हैं। इस साजिश में मीडिया भी शामिल हो जाता है। फिर हिंसक और अपराध के दोषी समूह अपने आप को और भी बलवान समझ बैठता है, वह समझ लेता है कि दंगा करना, हिंसा करना और कानून-संविधान का उल्लंघन ही नहीं बल्कि कब्र बना देना उसका जन्म सिद्ध अधिकार है।
सिर्फ हलद्वानी ही नहीं बल्कि पूरा उत्तराखंड ही राेहिंग्या-बांग्लादेशी घुसपैठियों और अन्य अवैध कब्जाधारियों के बारूद की ढेर पर बैठा हुआ है। देहरादून, हरिद्वार, काशीपुर, उधम सिंह नगर आदि में अवैध घुसपैठियों और कब्जाधारियों की सामानंतर सरकारें चलती हैं। वन भूमि के साथ ही साथ गौचारण भूमि, नाले और गैरमंजरूआ जमीन पर भी कब्जा कर बैठे हैं जहां पर अवैध कारोबार फलता-फूलता रहता है, हथियारों की अवैध फैक्टरियां के साथ ही साथ नशे का व्यापार जारी रहता है। जहां कहीं भी समानांतर सरकारें चलती हैं वहां पर पुलिस और प्रशासन का प्रवेश भी कठिन होता है।
हलद्वानी हिंसा कितनी भयावह थी? यह भी देख लीजिये। पूरे थाने को जला कर राख कर दिया गया। सैकड़ों वाहनों को जला कर राख कर दिया गया। कई बसों को आग के हवाले कर दिया गया। बर्बर भीड के सामने जो भी चल और अचल संपत्ति आयी उसे जला कर राख कर दिया गया। पुलिसकर्मियों पर गोलियां चलायी गयी, उन पर लाठियों से हमले किये गये। घरों के ऊपर से महिलाएं और बच्चे पत्थर बरसा रहे थे, पेट्रोल बम भी फेंके गये। सैकड़ों की संख्या में उपस्थित पुलिस कर्मियों की जान पर आफत आ गयी।
ऐसी हिंसक परिस्थिति कितनी जानलेवा होती है, यह भी जगजाहिर है। पुलिसकर्मियों के लिए जानलेवा स्थिति साबित हुई। कई दर्जन पुलिस गंभीर रूप से घायल भी हुए हैं। पुलिसकर्मी अपनी जान बचाने के लिए भागते नहीं तो फिर दर्जनों जान चली जाती और उनकी लाशें सड़कों पर बिछ जाती। हलद्वानी के डीएम के बयान को भी देख लीजिये। डीएम का साफ कहना था कि एक साजिश के तहत हिंसा हुई है, ऐसी हिंसा उन्होंने कभी भी नहीं देखी थी, हिंसा की पूरी तैयारी हुई थी, पत्थर इकट्ठे किये गये थे, हथियार जुटाये गये थे और पुलिसकर्मियों पर किस तरह के हमले करने हैं उससे संबंधित प्रशिक्षण भी दिये गये थे।
अवैध कब्जा प्रशासन हटा रहा था, सरकार का निर्देश था। लेकिन इसमें हिन्दू आबादी की क्या भूमिका थी? हिन्दू आबादी कहां दोषी थी? फिर हिन्दू आबादी को हिंसा का शिकार क्यों बनाया गया? हिन्दू आबादी को घेर कर गोलियां क्यों चलायी गयीं। अजय नामक एक दलित हिन्दू युवक को मुस्लिम भीड़ ने घेर कर गोलियां मारी, गोली उसके शरीर को चीरते हुए बाहर निकल गयी, वह हिन्दू युवक जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है। एक हिन्दू युवक की हत्या कर उसकी लाश रेलवे पटरी पर फेंक दी गयी।
वाल्मीकी हिन्दू बस्ती पर भी मुस्लिम दंगाइयों ने हमला किया, वाल्मीकी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया गया। मुस्लिम भीड़ को भड़काने और पुलिसकर्मियों पर हमले कराने की साजिश के प्रमाण तौकीर रजा है। तौकीर रजा मुस्लिम मजहबी नेता है। अपने भाषणों में उसने साफ कहा है कि वैध या अवैध हमारे घरों को जो उजाड़ेगा, हमारे मजहबी स्थलों पर जो हमले करेगा उसको हम नहीं छोड़ेंगे। पुलिस, प्रशासन और सरकार में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह हमसे नाराजगी मोल ले सके। इससे जाहिर होता है कि दंगा कराने और हिंसा फैलाने की करतूत और साजिश तौकीर रजा की थी।
हलद्वानी में मुस्लिम समूहों द्वारा सरकारी जमीन पर कब्जे की बहुत ही लोमहर्षक कहानी है। रेलवे की जमीन को भी नहीं छोड़ा गया। रेलवे पिछले कई सालों से अवैध कब्जे को मुक्त कराने के प्रयास में हैं। फिर भी उसे सफलता नहीं मिल रही है। हलद्वानी की मुख्य सड़कों पर अतिक्रमण कर घर बना दिये गये हैं, जंगलों को काट कर घर बना दिये गये हैं। हिन्दू पूजा स्थलों और गौचारण भूमि पर कब्जा कर बैठे हैं। कहा तो यह जा रहा है कि रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या यहां पर बहुत बड़ी है। पुलिस और हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा में रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों की भूमिका भी थी। यह प्रश्न उठता है कि रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिये आये तो कैसेे?
74