हरीश मलिक
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का एक और लोकप्रिय कार्यक्रम ‘परीक्षा पे चर्चा’ करोड़ों देशवासियों के लिए कुछ नया करने को प्रेरित करने वाला उत्प्रेरक बन गया है। इसकी शुरुआत का पहला उद्देश्य भले ही स्टूडेंट्स का परीक्षाओं के दौरान स्ट्रैस मैनेजमेंट हो, लेकिन सात साल से चल रहे इस कार्यक्रम में रिश्तों के महीन धागों से बुने शब्द हर अभिभावक के दिल को छू जाते हैं। टीचर्स को उनकी जिम्मेदारी का अहसास कराते हैं और देश के स्कूली बच्चों को परीक्षा के तनाव के बीच मुस्कुराने की वजहें बताते हैं। यह कार्यक्रम सकारात्मकता के संदेश के साथ हर चुनौती का बहादुरी से मुकाबला करने का तब और शिद्दत से आह्वान करता है, जब पीएम कहते हैं- ‘मेरी प्रकृति है कि मैं हर चुनौती को चुनौती देता हूं।‘ इसे केवल शाब्दिक उद्घोष मानना बड़ी भूल होगी। उन्होंने बार-बार कई मौकों पर इसे साबित कर दिखाया है कि चुनौतियों से भी बड़ा उनका हौसला है।
पीपीसी को लेकर स्टूडेंट्स, पैरेंट्स और टीचर्स में अभूतपूर्व उत्साह : परीक्षा पे चर्चा (पीपीसी) कार्यक्रम की शुरुआत एनडीए सरकार के पहले कार्यकाल में 2018 में हुई. उसके बाद से हर साल इसका आयोजन हो जा रहा है। यहां तक कि स्कूली बच्चों के मन से परीक्षा के तनाव को दूर करने के लिए कोविड महामारी के दौरान भी इसका चौथा संस्करण ऑनलाइन किया गया। पांचवां और छठा संस्करण टाउन-हॉल प्रारूप में हुआ। इस साल पीपीसी का भव्य आयोजन 29 जनवरी को ‘भारत मंडपम’ में हुआ है। इसको लेकर छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों में कितना व्यापक उत्साह है, आंकड़े इसके गवाह हैं। पिछले साल पीपीसी में कुल 31.24 लाख छात्रों, 5.60 लाख शिक्षकों और 1.95 लाख अभिभावकों ने भाग लिया था। इस वर्ष MyGov पोर्टल पर करीब 2.26 करोड़ स्टूडेंट्स, 14.93 लाख टीचर्स और 5.69 लाख पेरेंट्स ने भी रजिस्ट्रेशन कराया. इसके अलावा करोड़ों देशवासी ऑनलाइन भी इस कार्यक्रम से जुड़े।
‘मोदी सर’ की क्लास में हर सवाल का सबको मिला सटीक जवाब : ‘मोदी सर’ की क्लास में विद्यार्थियों को उनके सारे सवालों, उलझनों और मुश्किलों का समाधान मिला। पीएम मोदी ने पारिवारिक संबंधों से लेकर टीचर-स्टूडेंट्स के रिश्तों और परीक्षाओं में तनाव प्रबंधन से लेकर इंस्पिरेशन तक की बातें बड़ी सहजता से अपने खास अंदाज में कीं। उन्होंने गहरी बात कही- “अभिभावक अपने बच्चों के रिपोर्ट कार्ड को अपना विजिटिंग कार्ड न बनाएं।” यह एक हकीकत है कि अपने जीवन में शैक्षिक व रोजगारपरक लक्ष्यों को हासिल न कर पाने वाले अभिभावक अपने बच्चों से आईएएस, डॉक्टर व इंजीनियर बनने की उम्मीद पाल बैठते हैं। जमीनी हकीकत को नजरअंदाज करते हुए यह नहीं सोचते कि बच्चे की क्षमताएं क्या हैं और हमारी उम्मीदों का बोझ वे किस सीमा तक बर्दाश्त कर पाएंगे। माता-पिता को भी बच्चों को ज्यादा समझाने से बचना चाहिए। इससे भी दबाव पड़ता है। कई बार कॉम्पिटिशन का जहर पारिवारिक वातावरण में ही बो दिया जाता है।
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