बलबीर पुंज
आज मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल का अंतिम बजट (अंतरिम) प्रस्तुत करेगी। बजट केवल भारतीय आर्थिकी के स्वास्थ्य को ही नहीं, साथ ही राष्ट्रीय अर्थ-नीति, लक्ष्य और उसकी दिशा को भी चरितार्थ करता है। चूंकि यह आम चुनाव से छह सप्ताह पहले लोकसभा के पटल पर रखा जाएगा, इसलिए राजनीतिक सूझबूझ के हिसाब से यह लोकलुभावन होना चाहिए। क्या ऐसा होगा?
मई 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनकल्याणकारी योजनाओं के साथ भारतीय आर्थिकी को स्थायित्व देने हेतु दीर्घकालीन नीतियों को धरातल में क्रियान्वित कर रहे हैं। यही कारण है कि देश का जो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) स्वतंत्रता से 67 वर्षों (1947-2014) में दो ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर था, वह बीते 10 वर्षों में दोगुना बढ़कर लगभग चार ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर पहुंच चुका है। इसका परिणाम यह हुआ कि वित्तवर्ष 2014-15 में केंद्रीय बजट का आकार, जो 18 लाख करोड़ रुपये था, वह ढाई गुना बढ़कर वित्तवर्ष 2023-24 में बढ़कर 45 लाख करोड़ रुपये से अधिक का हो गया। यही नहीं, वित्तवर्ष 2013-14 में सकल प्रत्यक्ष कर के अंतर्गत, लगभग सात लाख करोड़ रुपये का राजस्व एकत्र हुआ था, वह वित्तवर्ष 2023-24 में 10 जनवरी 2024 में (दिसंबर माह तक) 17 लाख करोड़ रुपये हो चुका है। उल्लेखनीय बात यह है कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के भीषणकाल (2020-21) में भारत का सकल प्रत्यक्ष कर राजस्व, वित्तवर्ष 2013-14 की तुलना में अधिक— अर्थात, 9.45 लाख करोड़ रुपये था।
पिछले कुछ वर्षों में प्रतिकूल स्थितियों, जिसमें रुस-यूक्रेन युद्ध और अमेरिका-यूरोप में मंदी की आहट इत्यादि शामिल है- उस बीच इस उपलब्धि का श्रेय मोदी सरकार की जिन नीतियों को जाता है, उसमें 2017 से देश में लागू ‘वस्तु एवं सेवा कर’ (जीएसटी) प्रमुख उपक्रमों में से एक है। अपनी उत्पत्ति के समय जीएसटी पंजीकरण की संख्या 65 लाख थी, वह छह वर्ष में बढ़कर लगभग डेढ़ करोड़ हो गई है। बात यदि जीएसटी संग्रह की करें, तो यह प्रत्येक माह नए-नए उपलब्धि प्राप्त कर रहा है। वर्तमान वित्तवर्ष (दिसंबर 2023 तक) में सात बार प्रति माह 1.6 लाख करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व, जीएसटी के रूप में प्राप्त हुआ है।
चूंकि सुदृढ़ वित्तीय योजनाओं, कड़वी दवा रूपी आर्थिक सुधारों और भ्रष्टाचार मुक्त सतत राजकीय क्रियान्वन से राजकीय खजाना बढ़ रहा है, तब उसका एक बड़ा हिस्सा आधारभूत ढांचे के अति-वांछनीय विकास में व्यय किया जा रहा है। इसी कारण देश में बंदरगाह से लेकर एयरपोर्ट और सड़क से लेकर बिजली व्यवस्था स्वतंत्र भारत में पहली बार कहीं अधिक चुस्त और गुणवत्ता से भरपूर दिख रही है, जिससे उद्मियों की लागत घट रही है और विदेशी-घरेलू निवेश को कहीं अधिक बल मिल रहा है। पिछले कुछ वर्षों में मोदी सरकार अपने पूंजीगत व्यय में वृद्धि कर रही है। वित्तवर्ष 2021-22 में अपनी पूंजीगत व्यय 5.9 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर मोदी सरकार ने इसे वर्तमान 2023-24 में 10 लाख करोड़ रुपये कर दिया है। वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, सार्वजनिक क्षेत्र का कुल पूंजीगत व्यय 2014-15 में 5.6 लाख करोड़ रुपये था, जो 2023-24 में 18.6 लाख करोड़ रुपये हो गया है, अर्थात— तीन गुना से अधिक की वृद्धि।
अंतरिम बजट प्रस्तुत होने से ठीक तीन दिन पहले वित्त मंत्रालय की ओर से भारतीय अर्थव्यवस्था पर विस्तृत रिपोर्ट जारी हुई थी। इसमें कहा गया है कि अगले तीन वर्षों में भारत पांच ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी, तो 2030 तक सात ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकता है। यही बात आईएमएफ और विश्व बैंक रूपी प्रामाणित-स्थापित वैश्विक ईकाइयों की रिपोर्ट में भी परिलक्षित होती है। चालू वित्तवर्ष में सरकार ने जीडीपी विकास दर 7.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। यदि अगले वित्तवर्ष में इसी अनुमानित दर से हम विकास करते है, तो कोरोनाकाल के बाद चौथे साल भी भारत सात प्रतिशत की दर से विकास करेगा। चालू वित्तवर्ष के अप्रैल-दिसंबर में देश की खुदरा महंगाई दर 5.5 प्रतिशत रही, जिसमें आने वाले महीनों में भी कमी आने का अनुमान जताया गया है। कृषि से लेकर विनिर्माण और डिजिटल सेवा की बदौलत सेवा क्षेत्र में मजबूती आई है।
आर्थिक क्षेत्र में आए आमूलचूल परिवर्तनों का लाभ सीधा जनता को मिल रहा है। इसका सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण देश की गरीबी दर में आ रही सतत गिरावट है। नीति आयोग के अनुसार, पिछले नौ वर्ष में 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी के दायरे से बाहर आ गए हैं। सबसे अधिक उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान के लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हैं। गत वर्ष आईएमएफ और विश्व बैंक अपनी-अपनी रिपोर्ट में भी इसी प्रकार का दावा कर चुके थे। इन संस्थाओं के अनुसार, मोदी सरकार द्वारा चलाई जा रही जनकल्याण योजनाएं देश में गरीबी घटाने में महती भूमिका निभा रही है। दिसंबर 2019 में घरों (हाउसहोल्ड) की शुद्ध वित्तीय संपदा जीडीपी के 52.8 प्रतिशत के बराबर थी, जो दिसंबर 2023 में जीडीपी के 65.5 प्रतिशत के बराबर हो गई। आधार को बैंक खाते से जोड़कर प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण पर मोदी सरकार के जोर देने से सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता बढ़ी है।
वर्ष 2014 में बैंकधारकों की संख्या 15 करोड़ थी, जो जनधन योजना के बाद बढ़कर 51 करोड़ हो गई हैं, इनमें 55 प्रतिशत हिस्सेदारी महिलाओं है। जनधन खातों में 2.1 लाख करोड़ की राशि जमा है। प्रधानमंत्री आयुष्मान योजना के अंतर्गत, पात्र परिवारों को 5 लाख रुपये तक की स्वास्थ्य गारंटी मिल रही है, जिसमें 12 जनवरी 2024 तक 30 करोड़ आयुष्मान कार्ड बनाए जा चुके है। 2018 में लागू होने के बाद से इस योजना ने सफलतापूर्वक छह करोड़ से अधिक अस्पताल प्रवेशों को पूरा किया है, जिसमें 79 हजार करोड़ रुपये से अधिक उपचार में व्यय हुआ है। इस प्रकार के सफल योजनाओं की एक लंबी सूची है।
जब विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं वित्तीय संकट, उच्च मुद्रास्फीति और निम्न विकास दर से जूझ रही हैं, उस समय भारत समृद्धि और स्थायित्व के साथ दुनिया के नक्शे में अंकित हो रहा है। मेरा अनुमान है कि चुनावी वर्ष होते हुए भी वित्तमंत्री द्वारा कोई नई लोकलुभावन योजना की घोषणा होने की संभावना कम है। आशा है कि वे वर्तमान जनकल्याणकारी योजनाओं के साथ आधारभूत ढांचे के विकास को और अधिक पुख्ता बनाने पर बल देंगी।
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