हमारे नेताओं में हिन्दू धर्म को लेकर किस प्रकार का संकोच रहा है, यह इस बात से पता चलता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करनेवाले पहले प्रधानमंत्री हैं। यानी उनसे पहले कोई प्रधानमंत्री श्री कृष्ण की जन्मभूमि पर बने मंदिर में दर्शन करने नहीं गया है। हम जानते हैं कि जिस प्रकार मुस्लिम आक्रांताओं ने भगवान श्रीराम की जन्मस्थली पर बने राममंदिर को तोड़कर वहाँ मस्जिद का ढांचा बनाया और काशी में भगवान विश्वनाथ मंदिर पर भी हमला करके वहाँ भी अतिक्रमण किया, उसी तरह मथुरा में भी श्री कृष्ण की जन्मभूमि पर मंदिर को नुकसान पहुँचाकर अतिक्रमण किया गया है। हिन्दू समाज लंबे समय से मुस्लिम समुदाय से प्रार्थना कर रहा है कि ये तीन स्थानों से अपने अतिक्रमण हटा ले लेकिन कट्टरपंथी एवं हिन्दू विरोधी तत्वों के कारण मुस्लिम समाज कभी यह उदारता दिखा नहीं सका। तीनों ही स्थानों पर विवाद बना रहा। संभवत: इसीलिए पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री अपनी सेकुलर छवि को बचाने के लिए यहाँ नहीं आए होंगे। इस बात को समझने के लिए सोमनाथ मंदिर का उदाहरण हमारे सामने हैं, जहाँ तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्वयं भी आने से परहेज किया और तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को भी सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार समारोह में शामिल होने से रोकने का प्रयास किया। बहरहाल, वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस प्रकार का ढोंग नहीं करते हैं। वे जैसे हैं, वैसे ही दिखते हैं। उनका जीवन हिन्दू संस्कृति में रचा-बसा है और वे उस पर गर्व करते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी मंदिर-मंदिर जाते हैं और विधिपूर्वक पूजा-अर्चना भी करते हैं। यही नहीं, प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों से अयोध्या और काशी का कायाकल्प हो गया है। मोदी सक्रियता के कारण सर्वोच्च न्यायालय से श्रीराम जन्मभूमि के मामले में वर्षों से अटका हुआ निर्णय हो सका और उसके बाद सरकार ने बिना देरी किए वहाँ भव्य मंदिर निर्माण की प्रक्रिया भी शुरू करा दी। इसी तरह काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनाकर भगवान विश्वनाथ मंदिर को भव्यता प्रदान करने के साथ ही श्रद्धालुओं को सुविधाएं उपलब्ध करा दी हैं। हिन्दू समाज को विश्वास है कि जिस प्रकार अयोध्या और काशी के मंदिरों का विकास हुआ है, उसी तरह मथुरा में श्रीकृष्ण मंदिर का निर्माण भी होगा। ये तीनों स्थान एवं देवता, हिन्दू समाज के आराध्य हैं। इस कारण हम कह सकते हैं कि तीनों ही स्थान भारतीय स्वाभिमान के मानबिन्दु भी हैं। विदेशी आक्रांताओं ने इसलिए ही इन तीनों स्थानों को अपनी सांप्रदायिकता का निशाना बनाया। मथुरा का प्रकरण न्यायालय में लंबित है। विश्वास है कि इस प्रकरण में भी हिन्दुओं के पक्ष में निर्णय आएगा। क्योंकि सच तो यही है कि मथुरा में वर्षों से श्रीकृष्ण की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर था। उल्लेखनीय है कि आजकल कांग्रेस हिन्दू हितैषी दिखने का प्रयास कर रही है लेकिन हिन्दुओं को विश्वास नहीं होता है। कांग्रेस चाहे तो मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर की मुक्ति के लिए आंदोलन चला सकती है। हालांकि इसकी गुंजाइश शून्य ही है कि कांग्रेस ऐसा कोई निर्णय ले पाएगी। हिन्दू हित में आवाज बुलंद करने का साहस तो भाजपा में ही दिखायी देता है। बहरहाल, मोदी सरकार के नेतृत्व में भारत में जिस प्रकार तेजी से सांस्कृतिक अभ्युदय की लहर चल रही है, उसे देखकर यह भी विश्वास होता है कि न्यायालय का निर्णय जब आएगा, तब आएगा, लेकिन उससे पहले महाकाल लोक और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तरह श्रीकृष्ण लोक का निर्माण हो जाएगा।
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